अनन्तराम चौबे की एक कविता – लोकतंत्र का मंदिर

देश के नेता कहते है
देश की संसद लोकतंत्र का
सबसे बड़ा मंदिर है
जनता के चुने नेताओं का
बहुत बड़ा समुंदर है
जब भी जिसने भी बनाया
बड़े सोच समझ कर बनाया
लोकतंत्र के इस मंदिर मे
देश की महान हस्तियो ने जन्म लिया है
और देश का नाम रोशन किया है
कई महान हस्तीयो ने
देश का नाम भी डुबोया है
देश मे जितने भी बडे बड़े 
भृष्टाचारी घोटाले बाज़ हुये है
इसी मंदिर की शरण लेकर हुये है
एक नेता विहार का पूरा चारा 
खाकर चारा घोटाला किये है
एक नेता दो जी घोटाला किये है
एक नेता घोटाला  कर इतना
पैसा खाए विस्तर लगाकर सोये
नेताओं ने घोटाले पर घोटाले किये
कोयला घोटाला तोप घोटाला रक्षा 
घोटाला पनडुब्बी घोटाला ज़मीन 
घोटाला व्यापम घोटाला पानी टैंक
और न जाने देश मे कितने भृष्टाचारी
इसी लोकतंत्र के मंदिर की शरण से हुए है
लोकतंत्र के इस मंदिर मे जन समस्याएँ कम
नेताओं की निजी समस्याएँ हल होती है
अपनी सुविधा को चाहे जैसा कानून बना लें 
जब चाहे अपना बेतन मर्ज़ी से बड़ा लें
सरकारी आवासो मे अजीबन रहने का
कानून बना लेते है
रिटायरमेंन्ट की कोई उम्र नहीं है 
मरते मरते कुर्सी नहीं छोड़ते है
पत्नी भाई भतीजौ परिवार कुटुंब के
सदस्यौ को नेता बना देते है
राजनीति जो इसी मंदिर मे पली बड़ी होती है
यही राजनीति देश मे सबसे गंदी होती है
लोकतंत्र के मंदिर की क्या यही रीति है
रचनाकार
अनन्तराम चौबे
नर्मदा नगर ग्वारीघाट जबलपुर
मो.9770499027

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