नोट की चोट – बदल गई तारीखे मगर नहीं बदले हालात

रवि पाल 
मथुरा। केंद्र सरकार के फैसले के बाद 500 व 1000 के नोटों को बंद हुए एक महीना बीत गया है पर हालात हैं कि बदलने का नाम नहीं ले रहे हैं। रुपयों को लेकर बैंकों व एटीएम के बाहर अब भी कतारें बरकरार हैं। कैश की कमी से जूझ रहे बैंकों की परेशानी भी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। कैशलेस कारोबार की उम्मीदें कुछ जगी तो हैं पर इसके विकल्प पर भरोसा करना अब भी आम लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है।

कालाधन व नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवंबर की रात आठ बजे देश में 500 व 1000 के नोट बंद करने की घोषणा की थी। तब से इन नोटों को बदलने व जमा कराने के साथ ही जरूरत के लिए रुपये निकालने को लेकर बैंकों में जो भीड़ उमड़ रही थी वह अब भी वैसी ही है। गुरूवार को नोटबंदी का एक महीना पूरा हो गया है पर व्यवस्थाओं में अब भी कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। बैंकों व एटीएम के बाहर जो स्थिति नोटबंदी की घोषणा के बाद देखने को मिल रही थी वैसी ही स्थिति बुधवार को भी देखने को मिली। शहर के अधिकांश बैंकों में लोगों की भीड़ लगी रही तो एटीएम के बाहर भी लंबी कतारें लगी रही। एसबीआई, बैंक आफ बड़ौदा व अन्य बैंकों की शाखाओं में दिनभर भीड़ रही। कैश की कमी से लोगों को यहां दस हजार की रकम भी नहीं मिल सकी। भीड़ को देखते हुए किसी बैंक में लोगों को चार हजार मिले तो किसी में पांच हजार।

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