प्रदेश सरकारें 50 वर्षो में नही बदल सकीं तिलहर की तस्वीर

 मुलायम सिंह यादव अपना लेते तो संवर सकती थी तिलहर की तस्वीर 
 खंण्डहर तहसील परिसर 

शाहजहाॅपुरः- देश की आजादी के पांच साल बाद सन 1952 में में उत्तर प्रदेश के बिधान में प्रथम बार चुनाव हुऐ और उसके बाद प्रदेश की राजनीति में भारी उथल पुथल रहने के दौरान 9 बार राष्टरपतिशासन भी लरागू किया गया । प्रदेश की राजनीति में 15 साल बाद तिलहर बिधान सभा सीट एैसी अभिशप्त हुई कि आज तक यहाॅ के बिधायक को सत्ता का सुख नसीब नही हो सका और साथ ही समूचे क्षेत्र के विकास में भी बाध्ंाा बनी रही। क्या कभी भविष्य में सत्तासीन पार्टी का सदस्य भी यहाॅ से चुना जायेगा, यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा अनुत्तरित प्रश्न है।

प्रदेश में तिलहर बिधान सभा की राजनीति को यदि प्रारंभ से देखे तो सन 1952 में तिलहर निवासी भगवान सहाय प्रथम बिधायक चुने गये। सन 1957 में बालक राम ने जीत हासिल की तो सन 1962 में पुनः भगवान सहाय इस सीट पर काबिज़ हो गये। सयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से रूम सिंह ने सन 1967 में तिलहर बिधान सभा सीट पर विजय श्री हासिल की उसके बाद सन 1969 में राजनीति में अनविज्ञय बाबू सत्यपाल सिंह यादव ने अपने कदम रखते हुये प्रथम बार जनसंघ से तिलहर बिधान सभा चुनाव में भारतीय राष्टरीय कांगे्रस के सुरेन्द्र बिक्रम सिंह से करारी मात खाई। 
 अधूरा पड़ा समुदायिक भवन 

पांच वर्षो में राजनीति के दांव पेंच सीख कर पूर्ण तैयारी के साथ बाबू सत्यापाल ंिसह किसी कुशल खिलाड़ी की तरह सन 1974 में पनः मैदान में उतरे और उन्होने सुरेन्द्र बिक्रम सिंह को भारी मतो से हरा कर तिलहर बिधान सभा सीट को जीत लिया और बिधायक बन गये। बाबू जी के नाम से प्रसिद्ध हुये सत्यपाल सिंह यादव ने इस क्षेत्र में अपनी एैसी पकड. बनाई कि वह लगातरा सन 1977 में भारतीय राष्टरीय कांग्रेस से फिर सन 1980 में जनता पार्टी से तथा 1985 में लोकदल से बिधायक चुने गये। 20 फरबरी 1987 से दिसम्बर 1989 तक सत्यपाल सिंह यादव नेता प्रतिपद्वा भी रहे। जनतादल से सन 1989 में प्रत्याशी रहे सत्यपाल सिंह यादव ने शाहजहाॅपुर से लोकसभा व तिलहर से बिधान सभा यानि दोनो ही सीटो पर चुनाव लड़ा और वह लोकसभा सीट जीत गये परन्तु कांग्रेस के सुरेन्द्र बिक्रम सिहं ने उन्हे तिलहर बिधान सभा सीट से पराजित कर दिया। सन 1991 के चुनाव में तिलहर सीट पर बिधान सभा तथा शाहजहाॅपुर लोकसभा के लिये सांसद सीट यानि दोनो ही सीटो पर सत्यपाल सिंह यादव ने जीत हासिल की लेकिन तिलहर बिधायक सीट से इस्तीफा देकर बाबू जी केन्द्रीय राज्यमंत्री के ओहदे पर पहुंच गये। सन 1991 में ही उप चुनाव हुये जिसमें समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायसम सिंह यादव जसंबत नगर बिधान सभा सीट के साथ साथ तिलहर बधान सभा सीट से भी बिधान सभा का चुनाव लड़ा और दोनो ही सीटो पर मुलायम सिंह यादव ने बड़ी जीत हासिंल की। तिलहर की जनता ने बड़ी उममीदो के साथ मुलायम सिंह को अपना बिधायक चुनते हुये जीत दिलाई लेकिन उन्होने तिलहर की जनता की भावनाओं के साथ खिलबाड़ करते हुये तिलहर को ठुकरा कर जसबंत नगर सीट को अपना लिया। वर्ष 1992 से 2007 तक, चार बार चुनाव में कांग्रेस पार्टी के बीरेन्द्र प्रताप सिंह मुन्ना सिंह का लगातार कब्जा रहा। राजनीति के मास्टर पिता सत्यपाल सिंह यादव की राह चलते हुये सन 2007 में बड़े पुत्र राजेश यादव ने समाजवादी पार्टी के टिकिट पर तिलहर सीट पर जीत हासिल की लेकिन वर्ष 2012 में परिसिमन बदला और निगोही क्षेत्र तिलहर सीट में मिला दिया गया जबकि प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही और तिलहर सीट से सपा बिधायक कटरा खुदागंज को एक कर दिया गया। इस बार राजेश यादव ने कटरा बिधान सभा से फिर समाजवादी पार्टी के टिकिट पर चुनाव लड़ा और बसपा के राजीब कश्यप् को मात देकर जीत गये जबकि इधर निगोही से बहुजन समाज पार्टी से बिधयक रहे रोशनलाल वर्मा ने तिलहर बिधान सभा सीट को समाजवादी पार्टी के अनबर अली को हरा कर पुनः कब्जा जमाया। इन सभी की तिलहर सीट पर जीत होने के काद भी प्रदेश की सत्ता ने लगातार बचित रखा।

 मंण्डी पोटरगंज गेट 

सन 1952 से अब क्षेत्र का पांच बार परिसिमन हो चुका है। एक बार बिधान सभा 84 तिलहर, तीन बार बिधान सभा 61 तिलहर, 8 बार बिधान सभा 63 तिलहर, दो बार बिधान सभा 47 तिलहर तथा वर्तमान में 133 तिलहर बिधान सभा का दर्जा दिया गया है। बिडम्बना यह रही कि सन 1967 के बाद से 2012 तक यहाॅ जो भी बिधायक चुना गया,दुर्भाग्य से वह प्रदेश में सरकार का बिधायक प्रतिपक्ष ही रहा जिस कारण क्षेत्र का समूचित विकास भी नही हो सका। वर्तमान में आगामी बिधान सभा चुनाव 2017 में भी क्या प्रदेश की सत्तासीन सरकार का तिलहर बिधान सभा सीट से बिधायक चुनकर अभिशप्तता से मुक्ति दिला सकेगा यह भविश्य के गर्भ में छिपा एक अनुत्त्ति प्रश्न है।

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