बहराइच – आज हो रहा बंद किस्मत का फैसला ईवीएम में

बहराइच

बहराइच. बहराइच जिले में 27 फरवरी को होने जा रहे पांचवे चरण के चुनावी महासमर के मैदान में इसबार 7 विधानसभाओं से 69 प्रत्याशी अपनी जीत का झण्डा गाड़ने का गुणा गणित लगा रहे हैं। जिनकी किस्मत का फैसला जिले के 24 लाख 18 हजार 376 मतदाताओं की तर्जनी पर टिका हुआ है। इस बार सपा कांग्रेस के गठबंधन के चलते यहां की सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले का समीकरण बनता साफ झलक रहा है। जिसमें जिले की बहराइच सदर सीट मटेरा और बलहा सीट पर खड़े 3 प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुयी है। क्योंकि इस सीट पर सपा का झण्डा लहरा रहा है।

बहराइच सदर सीट का गणित
बहराइच सदर सीट पर पिछले 24 सालों से सपा के कद्दावर नेता डॉ. वकार अहमद शाह अपनी जीत दर्ज कराते रहे हैं। जिनका स्वास्थ खराब होने के चलते उनकी पत्नी रुबाब सईदा अपने शौहर की विरासत को बचाने के लिए सपा के टिकट से मैदान में हैं। स्वच्छ छवि के साथ ही मुस्लिम यादव समीकरण और पति की शाख के बल पर एक बार फिर रुबाब सईदा सपा की इस परम्परागत सीट को हासिल करने के लिए पूरी ताकत के साथ विरोधियों से मुकाबला कर रही हैं।
वहीं मुस्लिम बाहुल्य इलाके की इस सीट पर अपना कब्ज़ा जताने के लिए बसपा के अजीत प्रताप सिंह भी सेंध लगाने में पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं, जो दलित मुस्लिम और क्षत्रिय वोट बैंक के सहारे मिशन 2017 के जंग की चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। बीजेपी ने प्रदेश महामंत्री अनुपमा जयसवाल को एक बार फिर मैदान में खड़ा कर इस किले पर अपनी विजय पताका लहराने का दांव खेला है। जहां मोदी लहर का जादू इस इलाके में कहीं न कहीं वोटरों में तगड़ा ध्रुवीकरण कर रहा है।
मटेरा विधानसभा का हाल
मटेरा सीट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. वकार अहमद शाह के बेटे यासर शाह का कब्जा है, जो स्वयं कैबिनेट मंत्री हैं और दूसरी बार जीत के लिए मटेरा सीट से ताल ठोंक रहे हैं। इस सीट पर टक्कर देने के लिए इनके सामने भाजपा से अरुणवीर सिंह और बीएसपी से सुल्तान खां मैदान में दावेदारी कर रहे हैं। दोनों चेहरे जाति, वर्ग और धार्मिक समीकरण के हिसाब से इस बार मटेरा सीट पर कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
नानपारा सीट का समीकरण
नानपारा सीट से मौजूदा कांग्रेस विधायक माधुरी वर्मा इस बार मोदी लहर और कुर्मी वोट बैंक के सहारे अपनी नैया पार लगाने के लिए बीजेपी के टिकट से मैदान में हैं। वहीं सपा कांग्रेस गठबंधन में इस सीट से दावेदारी कर रहे पूर्व बसपा विधायक वारिस अली की इस बार कांग्रेस के टिकट से सीधी टक्कर दिखाई दे रही है। वहीं मुस्लिम दलित वोट के बल पर अपना झण्डा गाड़ने के लिए बसपा के टिकट से नगर पालिका चेयरमैन अब्दुल वहीद भी त्रिकोणीय संघर्ष में कांटें की टक्कर दे रहे हैं।
बलहा सीट का समीकरण
अब बात करते हैं बलहा विधानसभा की ये सीट सपा के खाते में दर्ज हैं। यहां से 2014 के उपचुनाव में जीते बंसीधर बौद्ध जीतकर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री बनें इस बार फिर पार्टी ने इन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है। जिनकी प्रतिष्ठा के सामने बीजेपी के अक्षयवर लाल बसपा से किरन भारती जातीय समीकरण और धार्मिक आधार पर शिकस्त देने के लिए कांटे की टक्कर दे रही हैं।
महसी विधानसभा का गणित
बाढ़ ग्रस्त इलाके महसी की सीट पर मौजूदा समय में बसपा का झण्डा लहरा रहा है। जहां से 2012 में केके ओझा ने जीत की माला पहनी थी। एक बार फिर केके ओझा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वहीं इस सीट पर अपना सिक्का जमाने के लिए बीजेपी के पूर्व विधायक सुरेश्वर सिंह मैदान में हैं। इन दोनों चेहरों के बीच सपा कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस प्रत्याशी अली अकबर भी ब्राम्हण मुस्लिम बाहुल्य इलाके में होने वाली त्रिकोणीय लड़ाई में अपनी सीट निकालने की जुगत में भिड़े हुए हैं।इस इलाके में भाजपा और बसपा के प्रत्याशियों की धरातल पर सीधी टक्कर दिख रही है।
कैसरगंज सीट का समीकरण
कैसरगंज सीट पर बीजेपी का झण्डा मौजूदा समय में फहर रहा है। 2012 में यहां से बीजेपी विधायक मुकुट बिहारी वर्मा जीते थे जो एक बार फिर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वहीं इस सीट पर बसपा नेता खालिद खान और पूर्व सपा विधायक रामतेज यादव की करारी त्रिकोणीय फाइट दिखाई दे रही है। मुस्लिम, कुर्मी यादव और ब्राह्मण सहित कई पिछड़ी जातियों का वोट बैंक अपने-अपने पाले में कैस कराने की जुगत में तीनों प्रत्याशियों की आपसी तगड़ी लड़ाई दिख रही है।
पयागपुर विधानसभा का चुनावी गणित
वहीं पयागपुर सीट पर 2012 में कांग्रेस के टिकट से जीतने वाले एमएलए मुकेश श्रीवास्तव एनआरएचएम योजना में करोड़ों अरबों रुपये के दवा और हॉस्पिटल यंत्रों की सप्लाई के मामले में घोटाले के मुख्य आरोपी जो की घोटाले के मामले में जेल की हवा तक खा चुके हैं और पैरोल पर बाहर हैं। इनके साथ ही इस महाघोटाले में इनका पूरा खानदान भी इनके कारनामें में बराबर के भागीदार हैं। एक बार फिर अपनी जमीन बचाने के लिए पार्टी का चोला बदल कर सपा के झंडे से ताल ठोंक रहे हैं।

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