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आखिर कहा गए वो होली के रंग

फारुख हुसैन
लखीमपुर (खीरी) // होली का त्यौहार नजदीक आते ही जैसे लोगों में खुशियों की एक फूहार सी बरसने लगती थी बूढ़े हो या बच्चे महीलायें हो या लड़कियाँ  जिसे देखो होली के रंगीन त्योहार में सभी पर एक खुशियों का रंग चढ़ा दिखाई देने लगता था त्योहार के नजदीक आते ही हर घरों में यही गीत भी गुनगुनाने  लगता था। रंग बरसे भीगे चुनकर वाली रंग बरसे परंतु अब वह गीत कहीं सुनने को ही नही मिलता ।

अब तो जैसे सारी खुशियाँ रफूचक्कर हो गयी हो , लोगो मे   की रंगत होली आने कि खुशी में अपने आप चढने लग जाया करता था परंतु  बीते कुछ सालो से न जाने क्यो होली की रंगत फीकी पडने लगी है।अब जब होली के त्यौहार मे चंद दिन ही शेष रहे है मगर न तो कोई होली का हुडदंग है और न ही होली आगमन का उल्लास.. ।सच कहू तो वर्तमान पीढी के लिए यह पर्व एक दिन का ही पर्व बनने लगा है।अब न ही शहर मे होली की रंगत है और न ही अब गांवो मे वो होली का उल्लास है। एक जमाना वो भी था जब होली का आगमन  होते ही गांवो की गलियो मे लोग धमाल मचाने लग जाया करते थे।महिलाएं गांव के बीच मे अपनी सखियो के साथ देर रात तक लूर गाया करती थी तो गांव मे लोग ढोलक की थाप पर फागुनी मस्ती मे नृत्य किया करते थे और तो और गांवो मे देर रात तक लोग धमा चौकडी किया  करते थे।परंतु  आज की स्थिति विपरित हो गई है।भौतिक्ता एवं भागदौड की इस जिन्दगी मे लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे है।जानकार लोग बताते है कि एक तो टी.वी.संस्कृति के बढते प्रसार एवं लोगो मे सहनशीलता की कमी के कारण होली जैसे रंगीले त्यौहार को भूल रहे है।अब गांवो मे न तो कहीं ढोलक  की थाप सुनाई देती है और न ही महिलाओ की वो मधुर गीत ।पहले लोग एक दूसरे से मसखरी एवं मजाक भी करते तो कोई किसा का बुरा नही मानते थे,परंतु अब तो यह करना भी मंहगा साबित हो जाता है।पहले होली पर कौमी एकता की अनेको मिशाले देखने को मिलती थी जहां लोग एक दूसरो पर जमकर रंग-गुलाल उडेल देते तो कोई बुरा नही मानते थे मगर अब तो लोग होली के रंग से मारे डरके अपने घरो से बाहर निकलना भी पसंद नही करते है।न जाने ऐसा क्या हो गया जो अब होली का रंग फीका पड रहा है ।  आखिर और क्या कारण है जो इस होली के रंगीन त्योहार पर लोग  ध्यान नहीं दे रहें हैं  ।      
आइये हम बात करते हैं पलिया क्षेत्र के कुछ लोगों से रजत शाह (मनू ) निवासी  मोहल्ला अहिरान प्रथम ने बताया कि  यह त्योहार इस महँगाई के दौर में फीका पड़ता जा रहा है अब सभी रूपयों की दौड़ में शामिल हो चुके है उन्हे केवल अब भविष्य के बारे में सोचना   पड़ रहा है कि बस कैसे वह अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर सके ।   मोहल्ला अहिरान निवासी की ग्रहणी अंजना गुप्ता ने बताया की केवल होली का त्योहार ही नही वरन् ईद हो दीपावली हो या फिर  लोहड़ी हो सभी त्योहार इस आधुनिकता  के दौर में उलझे हुए है किसी के पास समय नहीं है पहले जहाँ बच्चे दादा दादी की कहानियाँ किस्से उनके पास बैठकर बड़े चाव से सुनते थे और वह लोग कैसे होली और ईद मनाते थे वो भी बताते थे परंतु बच्चे वह सब सुनना ही नहीं चाहते हैं  और यदि बात करें महिलाओं की तो वह इस भागमभाग जिंदगी के अधीन हो चुकी हैं तो फिर उन्हें बागों में झूला झूलने और त्योहारों पर मौजमस्ती  करने का वक्त कहाँ है ।  निवासी मोहल्ला इकराम नगर की ग्रहणी सकीना बानो ने बताया कि हर त्योहार मनाने का एक मकसद होता है फिर वह चाहे होली हो या ईद हो सभी त्योहारों में आपस में मेलजोल ही दिखाई देता था परंतु जब हम बड़े ही किसी भी त्योहारों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं लेते तो हमारे बच्चों में कहाँ त्योहारों के प्रति  दिलचस्पी दिखाई देगी । मोहल्ला बाजार की रहने वाली रीता गुप्ता जो कि शिक्षिका हैंउन्होंने होली के त्योहार के प्रति रूझान कम होने का मुख्य कारण पढाई का बताया कि आजकल बच्चे अपनी पढाई के प्रति ज्यादा वफादारी निभा रहें हैं साथ ही माता पिता भी होली के लगातार मिलावटी रंगो  को देखकर उससे होने वाली  समस्याओं की वजह से बच्चो को होली खेलने से मना करते हैं  ।               मोहल्ला बाजार प्रथम की मंजू गुप्ता ने बताया कि त्योहारो के प्रति दिलचस्पी न लेने का कारण अनेक प्रकार की समस्याये हैं जैसे  परिवार के आपसी मतभेद  और देखा जाये तो आजकल हर दूसरे घरों में स्वास्थ्य संबधी समस्याये हैं ।जिसके फल स्वरूप किसी को भी त्योहार के प्रति रूचि नहीं रह रही है । राजीव गुप्ता निवासी मोहल्ला बाजार द्वितीय ने त्योहारों को सही तरह से न मनाने की बात को काफी गंभीरता बतायी कि यदि ऐसे ही लोगों में यदि त्योहारो के प्रति अरूचिता बढ़ती गयी  तो एक जमाना ऐसा आयेगा जब हमारी एक दूसरे के प्रति आदर भाव देना और हमारी एकता को टूटते देर नहीं लगेगी परंतु इसके न मनाने का मुख्य कारण हमारे बड़ो  बुजुर्गों की लापरवाही ही है जो आने वाली युवा पीढ़ियों को त्योहारों से किसी न किसी बहाने से दूर कर रहे हैं पहले उन्हें बदलना चाहिए । हमारे नईमुद्दीन निवासी मोहल्ला माहीगिरान ने बताया कि त्योहारो के प्रति सभी की उदासीनता यह भी है कि पहले हमें हमें हमारे पहनने के लिए कपड़े  खाने के लिए अच्छे पकवान आदि केवल त्योहारों पर ही मिलते थे जिसके कारण हम त्योहारों का इंतजार करते थे  कि कब होली आये कब ईद आये परंतु अब ऐसा नही है जिसका जब मन करता है वह वस्तुऐ उसे तुरंत मिल जाती है अब रोज ही उनका त्योहार होता है ।इसके कारण अब उनकी नजर में त्योहारों का कोई महत्व नहीं  हैं । शुरेश गुप्ता (भोले) निवासी मोहल्ला रगरेजान ने बताया कि त्योहारो को न मनाने की सबसे बड़ी समस्या महँगाई की है जिसके चलते लोग त्योहारों की ओर ध्यान नहीं दे पाते है । रमाकान्त वर्मा निवासी मोहल्ला किसान ने भी त्योहारों के ठीक ढंग से न मना पाने का कारण  महँगाई बताया ।
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