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नक्सलवाद बनाम आतंकवाद

माओवादी नक्सली समानांतर सरकार ही नहीं चला रहे हैं बल्कि उन्होंने अपनी सेना भी बना ली है।आदिवासियों की यह सेना जंगलों में रहती है और वहाँ तक पहुँच पाना आसान नहीं होता है।समस्या का निवारण जरूरी होता है लेकिन समस्या निवारण के नाम पर घात लगाकर हमारे सुरक्षा बलों की हत्या करना भारतीय संविधान के अनुसार गंभीर अपराध है।नक्सलियों के साथ उन्हें अपना मानकर रहम करने का फल ही नक्सलियों की गतिविधियाँ घटने की जगह चरम पर पहुँच गयी है।

अब वक्त आ गया है कि इन नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया कर दिया जाय।जब लंका में संगठित मजबूत टाइगर लिबरेशन का सफाया करके उसके प्रमुख प्रभाकरन को मारा जा सकता है तब काश्मीर में आजादी के तथाकथित मतवालों और नक्सलियों का सफाया क्यों नहीं किया जा सकता है।चार दिन पहले सुकामा में घात लगाकर की गयी हमारे सुरक्षा बलों की नृशंस हत्या हमारी अहिंसा नीति पर सीधा हमला है।माओवादी नक्सली हद पार कर गये हैं और अब इनके साथ रियासत करने का मतलब साँप को दूध पिलाने जैसा है।छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नित प्रतिदिन  खौफनाक अंदाज में पैर पसार रहे नक्सलवाद रूपी दैत्य का सर्वनाश करना अब समय की पुकार है।अगर अब भी इनके खिलाफ सरकार आर-पार की लड़ाई लड़कर समस्या का स्थायी समाधान नहीं करती है तो इस्लामिक आतंकवाद की तरह नक्सवाद लाइलाज बीमारी बन जायेगी।जो राष्ट्रहित में कतई नहीं होगा और नक्सलियों के साथ अब राजनीति नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें उनकी भाषा व कार्यशैली में जबाब में दिया जाना चाहिए ।जिस तरह सरकार ने गोरखा रेजीमेन्ट जैसी तमाम सैनिक रेजीमेन्टें सेना व सुरक्षा बलो की बना रखी हैं उसी तरह आजतक किसी ने आदिवासी रेजीमेन्ट बनाने की पहल क्यों नहीं की? आदिवासी रेजीमेन्ट बनाने से जहाँ बेरोजगार गरीब प्रताड़ित लोगों को रोजी रोटी मिल जाती वहीं उनके परिवारों का स्तर ऊपर उठ जाता।आदिवासी राजनेता बना दिये गये लेकिन आदिवासी सुरक्षा बल नहीं बन सका।आज शायद हमारी भूल का माओवादी उठाकर हमारे ही लोगों को हमारे सामने लाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ।हम चार दिन पहले सुरक्षा बल पर हुये हमले में शहीद हुये भारत माता के सच्चे बहादुर रणबांकुरो को नमन वंदना अभिनंदन व श्रद्धांजलि अर्पित कर ईश्वर से कामना करते हैं कि वह उनके परिजनों को इस अपार असहनीय कष्ट को सहने की क्षमता तथा उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।

एक तरफ तो देश इस्लामिक आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है और आम नागरिकों के साथ हमारे सुरक्षा बलों की जान जा रही है।इतना ही नहीं बल्कि जम्मू काश्मीर आजादी के बाद से आजादी के नाम पर हमारे सुरक्षा बलों को ही नहीं बल्कि काश्मीरी पंडितों की जान का दुश्मन बना बैठा है।आतंकवाद के साथ ही हमारा देश माओवादी नक्सली आतंकवाद की चपेट मे पिछले कई दशकों से आकर एक नयी समस्या खड़ी किये हुये है।जिस तरह से आतंकवादियों ने कुछ काश्मीरियों को अपने साथ मिला लिया है और उन्हें आगे करके अपना खेल उनकी कंधों पर बन्दूक रखकर खेल रहे हैं बिलकुल उसी तरह माओवादियों ने भी बिहार छत्तीसगढ़ बंगाल के आदिवासियों को अपने गिरोह में शामिल करके खूनी खेल खेला जा रहा है।
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