सोनौली बाडर से नेपाली युवतियो को भारत भेजने मे सक्रिय है मानव तस्कर के दलाल

भारत सरकार के हस्तक्षेप के बिना नही रूक सकता है यह अमानवीय धंधा-माइतीनेपाल
महराजगंज/नेपाल 
नेपाल की खुली सीमा कई तरह के अपराध की जननी है। कई दशक पूर्व इस रास्ते नेपाल में उपलब्ध विदेशी वस्तुओं की तस्करी हुआ करती थी। बाद में तस्करी का रूख दो तरफा हुआ। यानी नेपाल में उपलब्ध सामान तस्करी के जरिए भारत के बाजार तक आने लगे तो भारत से जरूरी वस्तुओं की तस्करी नेपाल के लिए होनेे लगी। अब तो इस रास्ते का इस्तेमाल आतंकी संगठन भी धड़ल्ले से करने लगे हैं। भारतीय अर्थ व्यवसथा पर चोट पंहुचाने के लिए इस रास्ते भारतीय जाली नोटों का आना भी जारी है। कहना न होगा नए नए अपराधों की प्रयोगशाला बनी नेपाल सीमा के रास्ते मानव तस्करी भी खूब फल फूल रहा है। नेपाल के गरीब बस्तियों से युवतियों तथा किशोर बच्चों की तस्करी खूब हो रही है।
भारत के होटलों सहित बड़े घरानों में काम करने वाले अधिकांश नेपाली युवतियां व किशोर ही होते हैं। ये नेपाली भोले-भाले लोग नेपाल के खुली सीमा के रास्ते तस्करी कर उन तक पंहुंचाए जाते हैं। नेपाल में एक स्वयं सेवी संस्था है माइती। इस संस्था की इकाइयां नेपाल सीमा के हर नाके पर सक्रिय है। इनमें महिला और पुरूष दोनों होते है। यह संस्था नेपाल के रास्ते यवुक और युवतियों की तस्करी पर नजर रखती है। संस्था का कहना है कि केवल भारत के होटलों और कोठों पर नेपाल की करीब तीन लाख युवतियां नरकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं। पौने दो लाख दस साल से 15 साल तक के बच्चे होटलों पर अपना बचपन गंवा रहे हैं।
नेपाल से युवतियों तथा बच्चों की तस्करी कोई नया नहीं है। यह करीब चार दशक से चल रहा है जिसके पीछे केवल गरीबी है। नेपाल अब समृद्ध की ओर है लेकिन यह समृद्धि चुनिंदा कस्बों तथा शहरों तक ही है। पहाड़ के गांव तथा बस्तियां अब भी गरीबी तथा विपन्नता का दंश झेलने को मजबूर है। इन्हीं बस्तियों से गरीब युवतियां और बच्चों को भारत तथा खाड़ी देशों तक तस्करी के जरिए भेजने का धंधा बेरोकटोक चल रहा है। इसके लिए बाकायदे दलाल सक्रिय होते हैं। युवतियों तथा बच्चों की तस्करी में अमूमन उनके खाश ही दलाली की भूमिका में होते हैं। कोई मामा होता है तो कोई मौसा। ये खास लोग युवतियों के लिए 20 से 30 हजार रूपये तथा बच्चों के लिए दस हजार तक में सौदा तय कराते हैं। जो परिवार के सदस्य को देने पड़ते है।
दलाली का पैसा इन्हें अलग चाहिए होता है। ये रकम पांच से सात हजार रूपये तक होती है। युवतियों की तस्करी रोकने के यद्यपि कड़े उपाय हैं बावजूद इसके इस धंधे में लिप्त लोग अपनी मंशा में कामयाब हो ही जाते हैं। इसके लिए अजब गजब तरकीब है। उदाहरण के रूप में हाल ही बढ़नी बार्डर पर एक युवक और युवती को सीमा पार करते पकड़ा गया। उन्हें संदिग्ध हाल में देख एसएसबी ने पकड़ा था। दोनो ने अपना नाम हिंदू बताया था लेकिन जब कड़ाई की गई तब पता चला कि युवक मुस्लिम है और युवती नेपाली हिंदू। युवक उसे शादी का झांसा देकर दुबई ले जाने के फिराक में था। बाद में युवक को जेल भेज दिया गया और युवती को माइती के माध्यम से उसके घर वापस भेजवाया गया। नेपाल के सभी नाकों से करीब करीब हर रोज नेपाली यवुतियों की तस्करी हो रही है। इस काम में तेजी दरअसल नेपाल में भूकंप के बाद आई है जिसकी त्रासदी से हजारों बच्चे अनाथ हुए और गांव गांव गरीब हो गए। सोनौली तथा वीरगंज सीमा पर हर रोज तस्करी कर ले जाती हुई नेपाली युवतियां पकड़ी जा रही है। उन्हें माइती संस्था सीमा पार करने से पहले ही रोक लेती है। इनकी तस्करी करने वाले भाग खड़े होते हैं। नेपाली युवतियों की तस्करी करने वाले नेपाली लोगों ने सीमा पर सिथत भारत के कसबों में भी अपना घर बना लिया है। सिद्धार्थनगर में ऐसे ही एक मानव तस्कर की चर्चा साुर्खियों में रहती है। नेपाल के माइती संस्था की क्षेत्रीय प्रमुख माया देवी कहती हैं कि उनकी संस्था का पूरा प्रयास होता है कि यह धंधा हर हाल रूके लेकिन यह तबतक संभव नहीं है जबतक भारत सरकार इसमें दिलचस्पी न ले। उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच होने वाली उच्च प्रशासन अथवा राजनीतिक बैठकों में इसे अहम मुद्दा बनाए बिना इस समस्या का निजात आसान नही है|

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