दालमंडी – पहलवानी के वर्चस्व से लेकर अपराध के वर्चस्व तक. भाग – 5,

साहब एक नज़र इधर भी

तारिक आज़मी.

वाराणसी. दालमंडी की हमारी यह सीरिज़ अपने अंत के तरफ झुक रही थी. मगर इस सीरिज़ ने कई लोगो कि कलई खोलने का शायद प्रयास किया होगा तभी तो काले मन के सफ़ेदपोशो ने हमको समझाने का प्रयास किया. थोड़ी आलोचना ही सही मगर शायद हमने काम अच्छा किया होगा तभी किसी को मिर्ची लगी. इस सीरिज़ के बढ़ते कदमो के कारण कुछ सफ़ेदपोशो ने मुझको यह समझाने की कोशिश किया कि हमारे भी बाल बच्चे है. तो श्रीमान जो जवाब आपको हमने मुह पर दिया था वही जवाब फिर देता हु कि जिसने दिया है तन वही देगा कफ़न. एक हमारे बड़े भाई जैसे पत्रकार साथी है उनका डायलाग थोडा मुझको पसंद आता है. उन्होंने कहा था कि एक जान है अल्लाह ले, बन्दा ले, या मोहल्ला ले. तो साहब बात उनकी सोलह आना सही है. एक जान अल्लाह ले बन्दा ले या मोहल्ला ले. वैसे पता है कि यह केवल आपके समझाने का तरीका है कोई ख़ास नहीं तो साहब सीरिज़ कुछ सीढ़ी अब और चढ़ेगी

दालमंडी में अपराध अपने पैर पसार चूका था. एक तरफ गैंग था तो दुसरे तरफ नशे का कारोबार था. इन सबके बीच यहाँ का व्यापारी वर्ग अपने व्यापार में ही मस्त रहता था. यह सबसे अच्छी आदत दालमंडी की हमेशा से रही कि अगली सुबह हमेशा नई सुबह होती रही दालमंडी के लिए. एक दिन पहले हुई घटनाओ का असर दालमंडी में दुसरे सुबह वहा के कारोबारी वर्ग को नहीं पड़ता है. शायद इस मार्किट के सफलता का यही एक मूल मंत्र भी है कि यहाँ लोग कारोबार से खिलवाड़ नहीं करते है. एक रात पहले मार्किट में क्या हुआ इसका असर इस मार्किट पर कभी नही पड़ा है.

दालमंडी एक बिजनेस हब बन चूका था तो वही अवैध कारोबार और अपराधिक छवि का एक हब और भी बन चूका था. यहाँ व्यापार मंडल भी स्थापित हुआ मगर व्यापार मंडल कभी भी इस क्षेत्र की समस्या हेतु मजबूती के साथ नही खड़ा हो पाया व्यापर मंडल कुछ समय बाद दो हिस्सों में तकसीन हो गया और नई सड़क व्यापार मंडल अलग बन गया. अब इन दोनों व्यापर मंडल में आपसी खीचातानी भी बढ़ गई कोई भी समाज सेवा के कार्यो को दोनों अपने नाम दर्ज करवाने का आज भी प्रयास करते है. दो व्यापार मंडल होने के बाद भी व्यापारी भले आपस में एकजुट रहे मगर उनका नेतृत्व नहीं मिल पा रहा है. यह सिलसिला आज भी जारी है. यह एक प्रमुख कारण है इस क्षेत्र में दबंगई के चमकने का.

देलुगली से शुरू हुआ नशे का कारोबार अपना पाँव पसारता हुआ दालमंडी तक आ चूका था. इस नशे के खेल में सबसे पहला योगदान यदि किसी का रहा तो मिर्ज़ापुर से आकर बसे मुन्ना घोडा का. मुन्ना घोडा नशा बेचते बेचते खुद भी नशे का शिकार हो गया. इस दौरान पुलिस ने कई बार मुन्ना घोडा पर कार्यवाही किया मगर नतीजा सिफर ही रहा और मुन्ना घोडा का कारोबार बंद होने के बजाय और लोग इस कारोबार में जुड़ने लगे, इन नशे के कारोबारियो को दालमंडी की सकरी और पेचीदा दलीलों सी गलियाँ मदद करने लगी. पुलिस लाख घेरेबंदी करके छापा मारे मगर कोई न कोई गली इन कारोबारियों के लिये बच जाती थी.

इसी दौरान दालमंडी के क्षेत्र में गैरविवादास्पद भवन अब आलिशान कटरो का रूप ले चुके थे. मगर इसके बावजूद भी काफी भवन ऐसे थे जो विवादस्पद थे और कोई भी बिल्डर इन भवनों को खरीदने और निर्माण में तैयार नहीं हो रहा था. यहाँ से सच मायने में सफेदपोशो द्वारा अपराध को संरक्षण मिलने का मामला सामने आने लगा. इस दौरान कई सफेदपोश जो किसी अन्य कारोबार में जुड़े थे रातो रात अचानक बिल्डर बन गये और भवन निर्माण के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाने लगे. कई ऐसे थे जिनके पास धनबल तो था मगर बाहुबल नहीं था तो उन लोगो ने बाहुबलियों को अपना सहयोगी बना लिया और कारोबार में कल तक असफल रहने वाले भी आज सफलता की ऊंचाई पर बैठ गये. यह सबसे मुख्य कारण बनकर उभरा जिसने दालमंडी में अपराध को संरक्षण दे डाला.

अभी तक दालमंडी में अपराध और अपराधी गैर संगठित रहा करते थे मगर अब वह एक संगठन के तरह काम करने लगे. इस प्रकार के संगठित अपराध को सबसे पहले शुरू करने का श्रेय था अन्नू त्रिपाठी और बाबु यादव गुट को. इसके बाद इस प्रकार से मुन्ना बजरंगी ने भी काम शुरू किया था जहा गुट में जुड़े लडको को बाकायदा वेतन के रूप में अच्छा खासा पैसा मिलता था और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने पर उनको वेतन के साथ बड़ा इंसेंटिव भी मिलता था. भले ही अन्नू त्रिपाठी इस क्षेत्र में हावी नहीं हो पाया था मगर संरक्षण में लेकर नई सड़क के कुछ कद्दावर और नामी व्यापारियों के साथ वह जुड़ चूका था. इन व्यापारियों ने आस पास के क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के खातिर इस गुट का दामन पकड़ रखा था और इनको इसके बदले मुफ्त के महंगे कपडे और वाहन उपलब्ध करवा देता था.

इस कड़ी में एक घटना का ज़िक्र करना चाहूँगा जो इस क्षेत्र के इन सफेदपोश व्यापारियों के दिमागी दिवालियापन को साबित कर सकेगा. कुख्यात मुन्ना बजरंगी का इस क्षेत्र में थोडा ही सही पकड़ बनी हुई थी. उसके संरक्षण में कई इस क्षेत्र के व्यापारी थे. इस दौरान कुख्यात मुन्ना बजरंगी की माँ का देहांत हो गया था. पुलिस ने सफ़ेदपोशो के शिनाख्त के खातिर अंतिम संस्कार में आये लोगो पर अपनी नज़र रख रखी थी. भले ही तब तक मुन्ना नहीं आया था मगर दालमंडी और नई सड़क के सफ़ेद कपड़ो में लिपटकर कई मुन्ना उसके गाव पहुच चुके थे. बड़ी बड़ी गाडियों का वहा ताँता लगा हुआ था और लोग अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में व्याकुल दिखाई दे रहे थे. इस दौरान दालमंडी और नई सड़क पर अपने नाम के बल पर जाने पहचाने एक सज्जन भी मौके पर गये थे. तत्कालीन प्रत्यक्षदर्शियो की माने तो भाई साहब गाडी से उतरते के साथ ही सीना पीट कर रोना शुरू कर दिये. शायद आंसू का संग्रहण उन्होंने कार में ही कर लिया होगा और जोर जोर से चिल्ला कर रोने लगे, हाय रे माई काहे छोड़ के चल गईलू रे माई. इस घटना से हसी के वह क्षेत्र में पात्र तो बने थे मगर अपनी पहचान वह किसी एक के संरक्षण में दिखाना चाहते थे. जिस प्रकार से वह रो रहे थे उसको देख कर लगता था कि मुन्ना कि नहीं बल्कि उनकी खुद की अम्मा उन्हें छोड़ कर दुनिया से अलविदा हो गई हो.

इस घटना को बताने का कारण हमारा किसी का उपहास बनाना नहीं है बल्कि उस सोच का अहसास करवाना है कि कुछ लोग डान माफिया, अपराधी के संरक्षण को किस प्रकार प्राप्त करने में लालायित रहते है. इसका एक कारण यह भी है कि उनकी सोच है कि दस अपराधियों को देने से बेहतर है किसी एक को दे जिसका नाम बड़ा हो. अब इसी घटना को ले ले, मुन्ना की अम्मा के लिए सीना पीटने वाले आज मुन्ना के मरने के बाद उसके खुद के अंतिम संस्कार में नहीं गये. शायद इसको शक्ति की भक्ति कहा जा सकता है. हम इस घटना का ज़िक्र करके यह भी बताना चाहते है कि किस प्रकार अपराधी खुद की एक पकड़ क्षेत्र में बना चुके है कि लोग खुद संरक्षण प्राप्त करने को आने लगते है. हमारा बताने का कारण यह है कि हम इसके बाद आपको वह बतायेगे कि किस प्रकार से इस क्षेत्र के चंद सफ़ेदपोशो ने इस क्षेत्र में अपराध को संरक्षण दिया.

अगले भाग में हम एक एक कर उन भवनों के सम्बन्ध में बतायेगे कि किस तरह से अरबो की संपत्ति को कौड़ियो के दाम लेकर उनको अपराधियों के बल पर खाली करवा कर करोडो कमाया इस क्षेत्र के बिल्डरो ने, जुड़े रहे हमारे साथ.

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