सजे अज़ाखाने, शुरू हुआ स्याह लिबास में मजलिसों का दौर

रूपेंद्र भारती

घोसी /मऊ. नगर के बड़ागाँव में मंगलवार को जैसे ही आसमान पे मोहर्रम का चाँद नज़र आया पूरे शिया समुदाय में शोक की लहर दौड़ गयी। सभी लोगो की आंखें इमाम हुसैन अ.स. के ग़म में नम हो गयीं। चारों तरफ या हुसैन, या हुसैन की सदा बुलन्द होने लगी। महिलाओं ने अपने बूंदे, बालियां व चूडियों को शहीदाने कर्बला में त्याग दिया। हर एक शख्स ने स्याह परचम अपने अपने घरों पर लहरा दिया। बच्चों ने अपने माथों पर या हुसैन, या अब्बास लिखी पट्टियां बांध ली। अज़ाखाने सजा दिए गए। स्याह लिबास पहने बूढ़े, जवान और बच्चे अपने अपने घरों से इमाम बारगाह के लिए निकल पड़े।

सदर इमाम बारगाह पर इफ्तेखार हुसैन ने नौहा पढ़ा और नीमतले इमाम चौक पर नज़रे इमाम हुसैन हुई उस के उपरांत हाजी ग़ज़नफर अब्बास और साजिद हुसैन ने नौहा पढ़ा ‘
फलक पे चाँद मोहर्रम का जब नज़र आया,
सफ़र में याद muसाफिर को अपना घर आया।

इसे सुनकर उपस्थित लोगों की आंखे अस्क़बार हो गयीं। आखिर में अज़ाखाने अबुतालिब में शमीम हैदर ने दर्द भरा नौहा पढ़ा
कहा शैय ने करते हुये हुर से गिरया,
उठाता नही बाप मैय्यत जवान की।

पूरे गांव में मजलिसों का दौर शुरू हो गया। नौहा व मातम कर शहज़ादी बिन्ते रसूल इमाम हुसैन अ. स. की माँ को उनके लाल का पुरसा दिया। इस अवसर पर शहीद हुसैन, ताहिर हुसैन, असग़र अली नासरी, गुलाम हैदर, तफहीम हैदर, अहमद औन, लुकमान हैदर, जौहर अली, नफीस असग़र, मज़हर हुसैन, तनवीर अब्बास, बाकर रज़ा, अज़हर हुसैन, अली नक़ी, मोहम्मफ अब्बास, नज़रे हसन, मोहम्मद हाशिम, हसन अब्बास, शमशीर अब्बास, ज़हीर अब्बास, मोहम्मद अली, शाजान अब्बास, अली अब्बास आदि भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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