धारा 377 से 497 तक ये 11 एतिहासिक फैसले देने के बाद विदा हो रहे हैं सीजेआई दीपक मिश्रा

अंजनी राय

नई दिल्ली. निविधतापूर्ण भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने हाल ही में कई समावेशी और एतिहासिक फैसले सुनाए। उनके नेतृत्व में न्यायालय ने वैयक्तिक आजादी और गरिमा के साथ जीवन गुजारने, समता और निजता के अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही इनका दायरा बढ़ाया और कानून के प्रावधानों से लैंगिक भेदभाव को दूर किया।

न्यायपालिका के भीतर और बाहर अनेक चुनौतियों का सामना करने वाले न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा मुख्य न्यायाधीश के रूप में संभवतः ऐसे पहले न्यायाधीश हैं, जिन्हें पद से हटाने के लिये राज्यसभा में सांसदों ने सभापति एम. वेंकैया नायडू को याचिका दी। हालांकि तकनीकी आधार पर विपक्ष इस मामले को आगे बढ़ाने में विफल रहा।

यह भी पहली बार हुआ कि न्यायपालिका के मुखिया न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर उनके ही कई सहयोगी न्यायाधीशों ने सवाल उठाये और यहां तक कि शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (भावी मुख्य न्यायाधीश), न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को अभूतपूर्व कदम उठाते हुये उनके खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस कर उनपर गंभीर आरोप लगाए।

इन न्यायाधीशों के इस कदम से कार्यपालिका ही नहीं, न्यायपालिका की बिरादरी भी स्तब्ध रह गई। इसमें नया मोड़ तब आया जब पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने मुख्य न्यायाधीश की कार्यशैली के संबंध में एक याचिका दायर कर दी।

बहरहाल, इन तमाम चुनौतियों को विफल करते हुये मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा निर्बाध रूप से अपना काम करते रहे। अपने कार्यकाल के अंतिम सप्ताह में उनकी अध्यक्षता वाली संविधान पीठ और खंडपीठ ने कई ऐसी व्यवस्थायें दीं, जिनकी सहजता से कल्पना नहीं की जा सकती। मसलन, उनकी अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने दो वयस्कों के बीच परस्पर सहमति से स्थापित समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के इस अंश को निरस्त कर दिया।

इसी तरह, एक अन्य अविश्वसनीय लगने वाली व्यवस्था में परस्त्रीगमन को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करते हुये उसे भी निरस्त कर दिया गया।

यही नहीं, न्यायमूर्ति मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने केरल के सबरीमला मंदिर में सदियों से 10 से 50 साल आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करते हुये इस प्राचीन मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश सुनिश्चित किया।

आधार पर दिया बड़ा फैसला 

मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठों ने जहां केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना ‘आधार’ को संवैधानिक करार देते हुये पैन कार्ड और आयकर रिटर्न के लिये आधार की अनिवार्यता बरकरार रखी, वहीं बैंक खातों और मोबाइल कनेक्शन के लिये आधार की अनिवार्यता खत्म करके जनता को अनावश्यक परेशानियों से निजात दिलाई।

दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब तुरंत होगी पति की गिरफ्तारी 

इसके अलावा दहेज प्रताड़ना के मामलों में पति और उसके परिवार की तुरंत गिरफ्तारी को लेकर भी सीजेआई दीपक मिश्रा ने एक बड़ा फैसला सुनाया था। फैसले के अनुसार, इन मामलों में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी पर से रोक हटा लिया गया है। अब अगर कोई महिला अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए के तहत दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराती है तो उनकी तुरंत गिरफ्तारी हो सकती है।

दागी नेता लड़ सकते हैं चुनाव

आपराधिक छवि के नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दायर याचिका पर भी उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया था। अदालत ने पांच साल या उससे ज्यादा सजा के मामले में आरोप तय होने के बाद उम्मीदवार के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कानून बनाने का काम संसद के ऊपर छोड़ दिया।

जनप्रतिनिधि वकील अदालतों में कर सकते हैं प्रैक्टिस

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून अदालतों में उनके प्रैक्टिस करने पर कोई पाबंदी नहीं लगाता है।

प्रमोशन में आरक्षण पर दिया बड़ा फैसला  

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण पर अहम फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी-एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने से इनकार कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को ये अधिकार दिया है कि वे चाहें तो राज्य स्तरीय सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की नजरबंदी बढ़ी  

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में भी गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली इतिहासकार रोमिला थापर एवं अन्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने उनकी नजरबंदी चार हफ्तों के लिए बढ़ा दी और कहा कि आरोपी यह नहीं चुन सकता कि कौन सी जांच एजेंसी को मामले की जांच करनी चाहिए।

अब अदालतों की भी कार्यवाही का होगा सीधा प्रसारण

संसद की तरह अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट सहित सभी अदालतों की सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अदालत की कार्यवाही के सीधे प्रसारण को हरी झंडी दे दी। कोर्ट ने कहा कि अब लोगों को अदालत आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। भारत में कोर्ट सबके लिए खुला है।

राम मंदिर पर बड़ा फैसला   

दो अक्तूबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष खंडपीठ ने अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सिर्फ मालिकाना हक के वाद के रूप में ही विचार करने और तमाम हस्तक्षेपकर्ताओं को दरकिनार करने का निश्चय करके यह सुनिश्चित किया कि इस संवेदनशील मामले में यथाशीघ्र सुनवाई शुरू हो सके।

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