तारिक आज़मी की कलम से – ज़मीनी हकीकत तो यही है कि ये सिर्फ भाजपा की ही हार नहीं

तारिक आज़मी

पांच राज्यों में भाजपा चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। इस सफलता के पीछे का मंत्र बाद में देखेगे पहले हम इस नतीजे पर पहुचते है कि यह हार किसकी है। दरअसल ये हार सिर्फ भाजपा की नहीं है। बल्कि अपनी विश्वसनीयता खो रही मीडिया की भी हार है ये। असली मुद्दों से अलग हटकर महंगे सूट पहनकर मोटी तनख्वाह पर महंगे स्टूडियो में बैठ कर ज़मीनी हकीकत से बेखबर न्यूज़ एंकर हिन्दू मुस्लिम विवादित मुद्दों पर आपको बहस करते दिखाई दे जाते है। दिन भर मोदी-मोदी योगी-योगी करने वाले ये एंकर विवादित मुद्दों पर बहस कर लेते है मगर मरते हुवे किसान उसको दिखाई नहीं देते है। बड़े चैनलों को छोडिये साहब आप अपने पसंदीदा अख़बार को उठा कर पढ़ लीजिये किसने कितनी बड़ी खबरे और कितनी खोजी पत्रकारिता कर लिया किसानो के मुद्दे पर।

लम्बी चौड़ी भीड़ लेकर अपनी मांगो के समर्थन में पहुचे ये किसान भाड़े की भीड़ लेकर नहीं गये थे, बल्कि किसान खुद से गये थे, एक उम्मीद के साथ कि उनकी समस्याओ पर शायद किसी का ध्यान जाये, मगर हम तो व्यस्त थे इस बात की बहस में कि मंदिर बनाने हेतु कानून लाया जाये, या फिर कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर लिया जाये। हम इस बात से बेखबर थे कि अन्नदाता ही नही रहेगा तो हम खायेगे क्या ? किसानो की खबरों को अख़बार ने कौन सा कोना दिया। शायद आपको तलाश करना पड़ जायेगा और आपको ये समझ में आएगा कि बहुत ज्यादा भीड़ नही रही होगी। मगर हकीकत तो इसके उलट है। शायद यह बेबस हो चुके अन्नदाताओ की इतनी बड़ी भीड़ थी कि भाजपा को उसने तीन राज्यों में पटखनी दे दिया। मीडिया अपनी भूमिका कितनी इमानदारी से निभा रहा है यह जग ज़ाहिर हो चूका है और आज के वक्त में लोग आम बोलचाल की भाषा में ही मीडिया को बिकाऊ जैसे शब्दों से नवाज़ देते है। शायद यही वजह रही होगी कि मीडिया इस स्वरुप को हज़म न कर पाने वालो के वजह से सोशल मीडिया ने भारत में अपनी बड़ी पकड़ बना लिया और अब हर मुद्दे पर सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म पर बहस शुरू हो जाती है।

अब अगर भाजपा की हार के कारणों पर चर्चा करे तो इसका सबसे प्रमुख कारण स्वयं भाजपा है। उलजलूल बयानों के बाद सुर्खिया बटोरने के चक्कर में ये विपक्ष को ही महत्वपूर्ण बनाते गए और फ्री की पब्लिसिटी विपक्ष को देते गए। राहुल गाँधी को अपशब्द कहना और पुरे नेहरू गाँधी परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के कारण भी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सफलता मिली है ये तो कटु सत्य है। राहुल के हर भाषण पर गिद्ध के तरह झपट्टा मार कर सोशल मीडिया के भाजपा समर्थक या फिर आईटी सेल के लोगो ने उनको खुद खूब प्रचार दिया। उनके भाषणों में शब्दों की कमी तलाश कर उसको बार बार सोशल मीडिया पर ट्रोल करने से भी कांग्रेस का प्रचार काफी हुआ। लगे हाथो हनुमान जी पर दिला बयान काफी महत्वपूर्ण रहा

इस चुनाव में सबसे अहमियत वाली बात अगर कोई रही तो ये रही कि कांग्रेस के तरफ से उंगलियों पर गिने चुने स्टार प्रचारक थे और कांग्रेस के तरफ से केवल एक बड़ा नाम राहुल गाँधी का रहा प्रचार हेतु, मगर भाजपा की पूरी स्टार प्रचारकों की टीम उसके प्रचार में लगी थी। शायद आज़ाद भारत में पहली बार ऐसा हो रहा होगा कि प्रधानमंत्री जो किसी दल अथवा किसी जाति, धर्म विशेष का न होकर देश का प्रधानमंत्री होता है वह खुद मंचो पर खड़े होकर एक दल विशेष हेतु वोट मांग रहे हो ये बड़ी महत्वपूर्ण बात होती है। इसके बाद भी भाजपा का इन पांच राज्यों में हुई हार सिर्फ भाजपा की हार तो नही हो सकती है, बल्कि यह खुद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की हार हो सकती है। क्योकि हर चुनाव में वोट विकास के मंत्रा के नाम पर मांगने वाली भाजपा हर चुनाव भले वह लोकल कारपोरेशन का ही चुनाव क्यों न हो नरेन्द्र मोदी और विकास के नाम पर मांगी है। अब जब चार वर्ष पुरे हो चुके है और चंद महीने ही बचे है अगले लोकसभा चुनावों के लिये, तो भाजपा की यह हार कही न कही भाजपा के मनोबल को तोड़ सकती है।

याद दिलाते चले कि केवल चंद कदमो के फासले से ही भाजपा गुजरात में सरकार बना सकी है। गुजरात में जगदीश मेवानी और हार्दिक पटेल जैसे नवजवानों के साथ के वजह से कहे या फिर राहुल के अथक प्रयास को कारण माने कि भाजपा यह राज्य भी हारते हारते बची है। यहाँ तक कि भाजपा के जीत हेतु भाजपा का पूरा मंत्रिमंडल जहा लगा हुआ था वही खुद प्रधानमंत्री के इस राज्य में काफी मेहनत किया था। फिर भी हार जीत बहुत कम दूरी से हुई थी। अब 2019 लोकसभा चुनावों के ठीक पहले ये पांच राज्यों में हार कही न कही भाजपा को नाराज़ वोटरों की फिक्र करने के लिये सोचने को मजबूर कर रही है।

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