ईदुल अमीन
वाराणसी। राजनितिक प्रतिद्वंदिता में एक दुसरे पर शब्दों के तीर चलाना आम बात होती जा रही है। पहले ये सब बिना नाम लिये कहा जाता था। अब नामो के इशारे के बीच कहा जाने लगा। इसकी आखरी सीमा तो तब हो गई जब यह सब कुछ अब पोस्टरों के बल पर होने लगा।
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