ईरान, इराक और सीरिया के रक्षा मंत्रियो की ये बैठक कुरेद सकती है विश्व पटल पर नई तस्वीर

आफताब फारुकी

सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में ईरान इराक़ और सीरिया के रक्षा मंत्रियों की बैठक आयोजित होने जा रही है और इसी बैठक की तैयारी के लिए वरिष्ठ ईरानी कमांडर जनरल मुहम्मद बाक़ेरी के नेतृत्व में उच्च स्तरीय शिष्ट मंडल दमिश्क़ पहुंचा है।

इस बैठक का उद्देश्य रक्षा व सामरिक सहयोग को मज़बूत करना, आतंकवाद से संघर्ष के लिए सहयोग को बढ़ाना और तीनों देशतं के बीच समन्वय को मज़बूत करते हुए शांति व सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। जनरल बाक़ेरी अपनी इस यात्रा में सीरिया में तैनात ईरान के सैन्य सलाहकारों से भी मिलेंगे और इसके लिए वह फ़ुरात, अलबू कमाल, दैरुज़्ज़ूर तथा पूर्वी ग़ूता इलाक़ों के दौरे पर जाएंगे।

जनरल बाक़री ने दमिश्क़ में कहा कि सीरिया में केवल उसी देश के सैनिक रह सकते हैं जिसे सीरियाई सरकार ने आमंत्रित किया हो अतः फ़ुरात नदी के पूरब के इलाक़ों में और इदलिब प्रांत में जो भी सैनिक सीरिया की अनुमति के बग़ैर मौजूद हैं उन्हें चाहिए कि तत्काल वहां से निकल जाएं।

सीरिया में ईरान, इराक़ और सीरिया के रक्षा मंत्रियों की बैठक और उससे पहले जनरल बाक़ेरी का सीरिया दौरा अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण संदेश रखता है। संदेश यह है कि इस पूरे इलाक़े में सुरक्षा और सामरिक मामलों में किसी भी बाहरी शक्ति को हस्तक्षेप का अवसर नहीं मिलेगा क्योंकि क्षेत्रीय देश अपनी सुरक्षा ख़ुद करने में सक्षम है। वास्तव में यह ईरान की पुरानी रणनीति है कि बाहरी शक्तियों को क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति का मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि पश्चिमी एशिया के संवेदनशील इलाक़े में बाहरी शक्तियों की सैन्य उपस्थिति के ख़तरनाक प्रभाव हैं।

इस बीच रूस ने क्षेत्रीय देशों के साथ समन्वय की रणनीति अपनाई है। रूस ने अमरीका तथा उसके घटकों के विपरीत इस बात पर ज़ोर दिया है कि इलाक़े के देशों की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा की जानी चाहिए। यही कारण है कि सीरिया में सेफ़ ज़ोन बनाने की अमरीका, इस्राईल और तुर्की की कोशिशें नाकाम रहीं, रूस ने कभी भी इस प्रकार की योजनाओं का समर्थन नहीं किया। अपनी इन नीतियों के कारण रूस ने क्षेत्रीय देशों के साथ समन्वय बनाने की कोशिश की है।

इराक़ और सीरिया ने विभिन्न प्रकार के आतंकी संगठनों की कमर तोड़कर यह साबित कर दिया है कि वह अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाल सकती है और समान विचार वाले क्षेत्रीय देशों की मदद से वह संकटों का सामना करने में सक्षम है। इस नई स्थिति का सबसे अधिक नुक़सान अमरीका और उसके घटकों को है। अमरीका ने पश्चिमी एशिया ही नहीं अलग अलग इलाक़ों में यह धारणा पैदा की है कि सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय के लिए वाशिंग्टन का सहयोग ज़रूरी है। अमरीका ने यह क़दम वर्चस्ववादी लक्ष्यों के तहत भी उठाया है और साथ ही वह मेजब़ान देशों से इसकी क़ीमत भी वसूलता है। दक्षिणी कोरिया इस समय अमरीका को सालाना 90 करोड़ डालर की रक़म अमरीकी सैनिकों की तैनाती के बदले में अदा कर रहा है। सऊदी अरब, क़तर और इमारात से भी अमरीकी सरकार अलग अलग रूपों में पैसे वसूल कर रही है।

ईरान, सीरिया और इराक़ जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं उसमें अमरीका जैसे देशों को हस्तक्षेप का अवसर नहीं मिल सकेगा और यदि कोई अवसर उसके हाथ में है तो वह भी समाप्त हो जाएगा।

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