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रमजान के महीने में चुनावों पर आलिमो ने जताई नाराज़गी, तो चुनाव आयोग बोला जुमे का ध्यान रखा गया है

आफताब फारुकी

लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा हो चुकी है। इस चुनावों की तारीखों को लेकर अचानक एक विरोधाभास उठाना शुरू हो गया है क्योकि 6 मई से रमजान का पवित्र महिना शुरू हो रहा है। मुस्लिम धर्म गुरुओ के बयान भी आने शुरू हो गये है जिसमे उन्होंने चुनाव आयोग के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। वही आप और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने रमज़ान के दौरान चुनाव कराने को लेकर आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए जानबूझ कर ऐसा चुनाव कार्यक्रम बनाने का आरोप लगाया था।

वही दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने रमज़ान के महीने में चुनाव कराने के फ़ैसले पर उठ रहे सवालों को नकारते हुए कहा कि चुनाव कार्यक्रम में मुख्य त्योहार और शुक्रवार का ध्यान रखा गया है। मामले में आयोग की ओर से कहा गया कि रमज़ान के दौरान पूरे महीने के लिए चुनाव प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता। आयोग ने स्पष्ट किया कि इस दौरान ईद के मुख्य त्योहार और शुक्रवार का ध्यान रखा गया है।

लोकसभा चुनावों के बीच में पड़ रहे रमजान को लेकर मौलानाओं ने चुनाव की तिथियों में बदलाव की मांग की है। वहीं कई मौलानाओं ने इस चुनाव को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए बढ़ चढ़ कर वोट डालने की अपील की है। कई मौलानाओ के सोशल मीडिया पर बयान भी आने शुरू हो गये है। कई ने अलग अलग मीडिया हाउस को बयान दिये है। जिसमे दिल्ली जमा मस्जिद के शाही ईमान अहमद बुखारी ने कहा है कि हमें अफ़सोस है कि रमजान को ध्यान में रखते हुए ये फैसला नहीं लिया गया। अब चुनाव आयोग की तरफ से कोई तबदीली भी होती नज़र नहीं आ रही है। उन्होंने मुसलमानों से अपील करते हुए आगे कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि वोट डालने के लिए लोग कम जाएं, बल्कि लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा तादाद में वोट का इस्तेमाल करना चाहिए।

वही दूसरी तरफ प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मौलाना डॉक्टर कल्बे रुशैद रिज़वी ने कहा है कि लोकतंत्र में भी अगर मज़हबी आज़ादी नहीं होगी तो कहां होगी? अल्लाह के पाक महीने में रोज़ा रख धूप में लाइन में खड़ा रहना आसान तो नहीं। एक खबरिया चैनल से बात करते हुवे मौलाना रुशैद ने कहा है कि चुनाव आयोग को रमजान के महीनो का ध्यान रखना चाहिये था।

मशहूर धर्म गुरु मौलाना खालिद रशीद फि‍रंगी महली ने 6 मई से 19 मई के बीच होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। मौलाना फि‍रंगी महली ने कहा है कि 5 मई को मुसलमानों के सबसे पवित्र महीने माहे रमजान का चांद देखा जाएगा। अगर चांद दिख जाता है तो 6 मई से रोजा शुरू होंगे। रोजे के दौरान देश में 6 मई, 12 मई व 19 मई को मतदान होगा, जिससे देश के करोड़ों रोजेदारों को परेशानी होगी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को देश के मुसलमानों का ख्याल रखते हुए चुनाव कार्यक्रम तय करना चाहिए था। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की है कि वह 6, 12 व 19 मई को होने वाले मतदान की तिथि बदलने पर विचार करे।

इसी क्रम में फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉक्टर मुफ़्ती मुकर्रम अहमद ने कहा कि रमजान के दौरान चुनाव की तारीख पर मुझे एतराज़ है। अगर मुनासिब हो तो करोड़ों मुसलमानों के जज़्बात को समझते हुए चुनाव की 6 मई से 19 मई की तारीख पर दोबारा गौर करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि मुझे शक है कि इसमें सियासी दांव पेंच शामिल हो सकता है क्योंकि ये फैसला कोई अचानक नहीं किया गया है बल्कि इसकी प्लानिंग पहले से की गयी होगी।

अब देखना ये होगा कि रमजान के पवित्र महीने में रोज्दारो के लिये किस प्रकार की व्यवस्था चुनाव आयोग करता है। वास्तव में मई के गर्मी और चिलचिलाती धूप में रोज़ा रख कर पुलिस बूथ पर लाइन में लगना एक कष्टकर काम होगा। काबिले गौर तो यह बात होगी कि रमजान के दिनों में क्या मुस्लिम मत प्रतिशत बढेगा अथवा रोज़े की शिद्दत में घटेगा। फिलहाल चुनाव आयोग इन तारीखों पर विचार करता नज़र नही आ रहा है।

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