चुनावो में कमतर तो नहीं आक सकते ओमप्रकाश राजभर की ताकत को, जाने कैसे हो सकते है भाजपा के लिए नुकसानदेह

तारिक आज़मी

ओमप्रकाश राजभर और भाजपा के बीच भले गठबंधन पुराना हो मगर दिल से बात बनी कभी नही। राजभर ने 2017 चुनावों के बाद से ही लगातार भाजपा सरकार पर हमले बोले है। इस दौरान कई बार भाजपा की नीतियों तक की आलोचना उन्होंने किया था। वैसे भी राजभर भाजपा के गले की वो हड्डी बने हुवे थे जिसको न निगलते बने न उगलते बने। अब जब ओमप्रकाश राजभर ने अलग अपना चुनाव लड़ने का फैसला लिया है तो इसको लेकर कई तरह की बाते सामने आ रही है। भाजपा समर्थको ने तो इसके सम्बन्ध में अपना पक्ष रखा कि राजभर इससे भाजपा का कोई नुकसान नही करेगे। वैसे बताते चले कि आकडे इस सोच को गलत बताते है।

ओमप्रकाश राजभर इस लोकसभा चुनाव में अपनी मांग पर अड़े हुवे थे। वही भाजपा ने उनके सामने आप्शन रखा था कि वह खुद घोसी लोकसभा का टिकट लेकर भाजपा के सिम्बल से चुनाव लडे, जिस प्रस्ताव को ओमप्रकाश ने सिरे से ख़ारिज कर दिया था। क्योकि ओमप्रकाश ये भली भाति जानते थे कि अगर वह भाजपा के चुनाव निशान पर चुनाव लड़ते है तो फिर उनका राजनितिक महत्व खत्म हो सकता है। वही पार्टी अपना जनाधार कम कर सकती है। शायद यही वहज रही होगी कि ओमप्रकाश राजभर ने इस लोकसभा चुनाव में पूर्व की भाति अन्य दलों को राजनितिक दूरदर्शिता के कारण अपनी पकड़ दिखाना चाहते होंगे। वैसे उत्तर प्रदेश सरकार ने ओमप्रकाश राजभर को मनाने का अपना भरसक प्रयास किया। इसके लिए नाराज़ चल रहे ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के कुछ लोगो को लोकसभा चुनावों के ठीक एक दिन पहले ही राज्यमंत्री का दर्जा दिया। मगर शायद ओमप्रकाश राजभर इससे संतुष्ट नही रहे और उन्होंने राजनितिक भागीदारी को अपना टारगेट बना रखा था।

वैसे यह बात भाजपा भी भलीभाति जानती है कि राजभर की पार्टी का पूर्वांचल सहित प्रदेश के लगभग 15 जिलों में अच्छी-खासी पकड़ है जो किसी भी समीकरण को बिगाड़ और बना सकती है। पिछले चुनाव में उनके वोटों की ताक़त भी कई सीटों पर 18 से 45 हज़ार के आसपास दिखाई पड़ी।  अगर ओम प्रकाश राजभर अलग लड़ते हैं तो पूर्वांचल में बीजेपी का गणित कई सीटों पर बिगड़ सकता है। इस बात को ओम प्रकाश राजभर भी बाखूबी समझते हैं और भाजपा भी इस बात से वाकिफ है। शायद राजभर इसी जनबल के आधार पर अब सत्ता में बराबर की भागीदारी मांग रहे थे। वही भाजपा उनको एक सीट तक सीमित रखकर खुद को इन सीट पर मजबूत करना चाहती होगी। इस हां नही के खेल में कल आखिर में अपना फैसला सुनाते हुवे ओमप्रकाश राजभर ने अपने 37 प्रत्याशियों की घोषणा कर डाली। जिन सीटो पर राजभर ने प्रत्याशी उतारे है उनके मतदान छठवे और सातवे चरण में है।

गौरतलब हो कि राजभर बिरादरी का पूर्वांचल में बड़ा वोट बैंक है। वर्ष 2012 के चुनावों में बलिया, गाज़ीपुर, मऊ, वाराणसी में इनकी ताकत दिखी थी। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश ने गाज़ीपुर की ज़हूराबाद सीट पर 49,600 वोट हासिल किए थे। भले वह चुनाव न जीत पाए मगर अपना राजनैतिक महत्व लोगो को समझा गए। पार्टी को बलिया के फेफना में 42,000, रसडॉ में 26,000, सिकंदरपुर में 40,000 बेल्थरा रोड में 38000 वोट मिले। गाज़ीपुर, आज़मगढ़ , वाराणसी में भी पार्टी उम्मीदवारों ने 18 से 30 हज़ार वोट बटोर। भले पार्टी किसी सीट को जीत न पाई हो मगर पार्टी ने अपनी अहमियत को बना लिया था।

इन सीटों पर मिले वोट बताते हैं कि यह समीकरणों को किस तरह से बिगाड़ सकते हैं। अब इन वोटों के जरिये सत्ता का मजा चखने के लिये ओम प्रकाश राजभर को किसी मज़बूत कंधे की ज़रूरत थी और भाजपा को भी। लिहाजा 2014 के गठबंधन ने ओम प्रकाश राजभर और बीजेपी दोनों को सत्ता तक पहुंचाया। इसके बाद  ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से 2017 के विधानसभा में भी गठबंधन हुआ। बीजेपी ने भासपा को 8 सीटें दी थी। जिनमें 4 सीटों पर जीत मिली और इसके साथ ही सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का पहली बार विधानसभा में खाता भी खुला और ओम प्रकाश कैबिनेट मंत्री बने।

अब ओमप्रकाश राजभर शायद वर्त्तमान स्थिति को समझ रहे होगे। उनको सत्ता में बराबर की भागीदारी चाहिये थी। इसी भागीदारी के लिए ओमप्रकाश राजभर एक सीट पर तैयार नही हुवे और उन्होंने कई अन्य सीट मांगी, वैसे राजभर समाज पर पार्टी की पकड़ कई चुनावी गणितो को फेल कर सकती है। अब तक जो राजभर वोट भाजपा के खाते में जा रहा था वह वोट अब भाजपा के खाते से बाहर नज़र आ रहा है।

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