जाने कौन है शहीद हेमंत करकरे को कथित श्राप देने की बात कहने वाली भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर

तारिक आज़मी

आपको साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के सम्बन्ध में बताते चले कि साध्वी प्रज्ञा मध्य प्रदेश के चंबल इलाके के भिंड में पली बढ़ीं। उनके पिता आरएसएस के स्वयंसेवक और पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। संघ से उनका झुकाव बचपन से ही रहा। साध्वी प्रज्ञा संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य रहीं। विश्व हिन्दू परिषद की वह महिला विंग दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी थी। 2002 में साध्वी प्रज्ञा ने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई। वहीं, स्वामी अवधेशानंद से प्रभावित होकर उन्होंने संन्‍यास ले लिया। स्वामी अवधेशानंद का राजनीति में काफी नाम था, इनसे जुड़ने के बाद साध्वी प्रज्ञा भी राजनीति में आईं।  साध्‍वी प्रज्ञा की जिंदगी तब एकदम बदल गई जब 29 दिसंबर 2007 को संघ प्रचारक सुनील जोशी की गोली मारकर हत्‍या कर दी गई थी।

इस हत्‍याकांड में साध्‍वी प्रज्ञा के अलावा सात अन्‍य लोगों के नाम सामने आए थे। उसके बाद उनका नाम मालेगांव ब्‍लास्‍ट में सामने आया। उन्‍हें बम ब्‍लास्‍ट में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। साध्‍वी के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। मुंबई से 270 किलोमीटर दूर मालेगाव में 29 सितंबर 2008 एक बाइक में लगाए गए दो बमों के फटने से सात लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हो गए थे। फिलहाल साध्‍वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित दोनों बेल पर हैं। वही दूसरी तरफ 2017 में मध्‍य प्रदेश की देवास कोर्ट ने साध्‍वी प्रज्ञा को आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी हत्‍यकांड से बरी कर दिया था।

हालांकि मालेगाव ब्लास्ट में बाद में कोर्ट ने साध्‍वी प्रज्ञा के ऊपर से मकोका हटा लिया, लेकिन उन पर गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मामला चला। वह 9 सालों तक जेल में रहीं और फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। बाहर आने के बाद उन्होंने ब्लास्ट के बाद लगातार 23 दिनों तक हुई यातना के बारे में बताया। उन्होंने आरोप लगाया था कि तत्कालीन गृहमंत्री पी। चिदंबरम ने उन्हें झूठे केस में फंसाया है। प्रज्ञा भोपाल के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उनके सत्‍संग सुनने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुटती है। उनको इस साल आयोजित हुए प्रयागराज कुंभ के दौरान ‘भारत भक्ति अखाड़े’ की आचार्य महामंडलेश्वर बनाया गया। प्रज्ञा ठाकुर अब आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णचेतनानंद गिरी के नाम से जानी जाती हैं।

सूत्रों की अगर माने तो भोपाल में उनके आश्रम में अभी बीते महीने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कई कैमरे लगवाये है। ये कैमरे ख़ास तौर पर सेवक और सेविकाओ पर पैनी नज़र रखने के उद्देश्य से लगवाये गए है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के सम्बन्ध में चर्चोओ के अनुसार सेवक अथवा सेविकाये वैसे तो काफी है मगर कोई भी मुकम्मल तरीके से साथ में नहीं रह पाता है। उनके साथ लगे सरकार द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कर्मियों के विरुद्ध वह अक्सर शिकायते करती रहती है। विभिन्न बीमारियों से ग्रसित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का पुणे में इलाज भी चलता है। विगत महीनो में दो बार उन्होंने लखनऊ में भी अपना इलाज और जाँच करवाया है। सूत्र बताते है कि अपने पिछले लखनऊ दौरे के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेट का भी समय माँगा था, मगर कार्यक्रमों के कारण उनको समय नही मिला था।

सूत्रों की माने तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से टिकट देने हेतु नाम प्रस्तावित किया था और वह इस टिकट हेतु जिद्द पर अड़े रहे। उनकी ही जिद्द के कारण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को टिकट मिला है। अमित शाह दिग्विजय सिंह के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर उतारने की जिद्द शायद इस कारण भी कर रहे थे क्योकि मालेगाव ब्लास्ट के बाद सबसे अधिक हिन्दू आतंकवाद अथवा भगवा आतंक शब्द का प्रयोग दिग्विजय सिंह के द्वारा किया गया था। शायद अमित शाह एक कट्टर हिंदुत्व छवि वाले प्रत्याशी को इस सीट से उतारना चाहते थे। वैसे ये हमारी जानकारी में देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी पार्टी ने आतंकी घटना के आरोपी किसी शक्स को टिकट दिया हो।सबका साथ सबका विकास जैसे नारों को शायद एक तरफ कर भाजपा ने ये टिकट दिया है। अब देखना होगा कि कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर कहा तक टक्कर दे पाती है, वैसे इस चुनावों के पहले ही शायद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को सक्रिय राजनीत में पदार्पण करवाने की कोशिश शुरू हो चुकी थी। कुछ खबरिया चैनलों द्वारा विशेष रूप से उनका साक्षात्कार और अन्य कार्यक्रम भी हुवे है।

वैसे भोपाल में चुनावी समीकरण में इस बार मुस्लिम मतदाता गेम चेंजर के तौर पर साबित हो सकते है। कांग्रेस अपने वोट बैंक के साथ इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना चाहेगी कि मुस्लिम वोटो का बटवारा न हो और वह अधिकतम पोल हो सके। वैसे तो भोपाल में 1989 से लेकर अभी तक सभी प्रत्याशी भाजपा के जीते है। दिग्विजय सिंह पर इस बार बागडोर इस 30 साल के सूखे को खत्म करने की भी होगी। बताते चले कि भोपाल में लगभग 26 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। वही 69 प्रतिशत से अधिक की आबादी हिन्दू धर्म के मानने वालो की है। इस बीच भोपाल में कांग्रेस ठाकुर, ब्राहमण मतों के साथ यादव मतों पर भी सेंध मारने की कोशिश में है। बताते चले कि दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के उस बयान के बाद इस सीट को चुना था जिसमे कमलनाथ ने दिग्विजय को भोपाल जैसी कठिन सीट से लड़ने की चुनौती दिया था।

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