कारवा गुज़र गया और गुबार देखते रहे, वो सीट जहा हार जीत का अंतर था काफी कम

तारिक आज़मी.

सही शेर है कि कारवा गुज़र गया और गुबार देखते रहे। शायद ये शेर आज विपक्षी दलों पर एकदम फिट बैठ रहा है। मायावती तो इस समय गर्व से कह सकती है कि कांग्रेस जो खुद एक सीट जीतने की क्षमता रखती है उसको दो दे रहे थे मगर वो मानी नही। हां ये ज़रूर है कि कांग्रेस ने गठबंधन में शामिल न होकर भाजपा को फायदा कई सीट का उत्तर प्रदेश में पहुचाया है। इसको राजनैतिक जीत भी भाजपा की कह सकते है। या फिर कांग्रेस की जिद कहे दो बात नही है। कहा जाता है कि इंसान भेड़ बकरी पाल ले मगर मुगालता न पाले। मगर कांग्रेस मुगालता ही पाल कर बैठी थी। आज स्थिति ये आ गई है कि 40 साल पुराने सीट कांग्रेस अमेठी की हार चुकी है। अगर स्मृति इरानी राजनैतिक सुझबुझ वाली निकली तो अब ये सीट कांग्रेस को वापस भी बीस साल नही आना है।

खैर मुद्दे पर आये। कांग्रेस जिद में उत्तर प्रदेश में गठबंधन करने को तैयार नही हुई मगर इस बार पासा उल्टा पड़ गया। उत्तर प्रदेश में बीजेपी तमाम कयासों और गढ़बंधन के चक्रव्यूह के बाद भी 62 सीटें  जीतने में कामयाब रही। जी राजनितिक जानकार 40 से ऊपर नहीं दे रहे थे। अब वही इन सीट को देख कर सकते में है। इससे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये है कि इनमे से कई सीट कांग्रेस प्रत्याशी के वजह से भाजपा जीतने में कामयाब हो गई है। इन 61 सीटों में तकरीबन 18 ऐसी सीटे हैं जो 60 हज़ार से काम की हार जीत वाली रहीं। इसका मतलब साफ़ हुआ कि कांटे की लड़ाई में भाजपा बाज़ी मार ले गई है।

परिणामो पर अगर नज़र डाले तो मछली शहर की सीट हमेशा सपने में भी आती रहेगी। यहाँ हाथ तो आया मगर मुह न लगाया जैसी स्थिति बसपा की हो गई। जहां भाजपा के बी बी सरोज ने बसपा के टी राम को मात्र 181 मतों से पराजित किया। सुबह से ही आगे चल रहे टी राम को शाम को थोडा नजदीकी मामला होने पर भाजपा ने हरा दिया। इस हार पर भले टी राम को कई दिन नींद न आये मगर अगर यहाँ कांग्रेस कार्यकर्ताओ ने साथ में काम किया होता तो बाद बन सकती थी। यही नही कांशीराम बहुजन समाज दल के गरीब ने भी इस सीट पर बसपा प्रत्याशी का नुकसान किया। इस दल को मिलने वाले मत अगर विभाजित भी होते तो भी इसका बड़ा हिस्सा बसपा के खाते में जाता, मगर ऐसा नही हुआ। नोटा और सुभासपा ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया था। मगर आखरी लम्हों में भाजपा ने सीट जीत किया।

अब अगर 10 हज़ार से काम की हार जीत वाली सीट देखते हैं तो 3  ऐसी सीट हैं जो 10 हज़ार से काम हार जीत वाली हैं। इनमे मेरठ में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल बसपा के याकूब कुरैशी को 4729 मतों से पराजित किया तो मुजफ्फरनगर से  भाजपा के संजय संजीव बालियान ने रालोद के चौधरी अजीत सिंह से 6526 मतों से शिकस्त दी। इसमें फायदे वाली सीट बसपा के लिए केवल श्रावस्ती रही जहा बीएसपी के राम शिरोमणि में भाजपा के ददन मिश्र को 6768 मतों से हराया। मेरठ में कांग्रेस प्रयाशी अच्छा वोट पाए है।

वही अब अगर 50 हज़ार से से कम मतों के हार जीत वाली सीट पर नज़र डालते हैं तो 12 ऐसी सीट हैं जो 50 हज़ार से काम की हार जीत वाली हैं। इनमें कन्नौज में भाजपा के सुब्रत पाठक ने  सपा की डिंपल यादव को 11416 मतों से हराया। यहाँ नोटा ने सबसे अधिक दोनों दलों को नुकसान पहुचाया है। सबसे बड़ी सीट तो सुल्तानपुर भाजपा ने जीता है और बसपा ने हारा है। सुल्तानपुर में भाजपा की मेनका गांधी बसपा के चंद्र भद्र सिंह से 13260 मतों से जीतीं। शुरू से आगे चल रहे सोनू सिंह को सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस प्रत्याशी सजाय सिंह ने दिया। संजय सिंह ने यहाँ से 41 हज़ार से अधिक मत पाए। अगर यहाँ कांग्रेस गठबंधन में होती तो इस सीट पर कांग्रेस के मतों में विभाजन की स्थिति में अधिक मत बसपा के खाते में जाते। मगर कांग्रेस प्रत्याशी ने इसौली और कादीपुर में बढ़िया लड़ाई कर लिया और सीट पर भाजपा का कब्ज़ा हो गया।

वही दूसरी तरफ चंदौली में महेंद्र नाथ पांडे ने सपा के संजय चौहान को 13959 मतों से हराया।  बलिया में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त ने सपा के सनातन पांडे को 15519 मतों से हराया। बदायूं में भाजपा की संघमित्रा मौर्य सपा के धर्मेंद्र यादव से 18384 मतों से जीत गयी। सहारनपुर से बसपा के फजलुर रहमान भाजपा के राघव लखन पाल को 22417 मतों से हराया। बागपत में भाजपा के सत्यपाल सिंह रालोद के जयंत चौधरी से 23128 मतों से जीत लिया। फिरोजाबाद में भाजपा के चंद्र सेन जादौन सपा के अक्षय यादव से 28781 मतों से जीते बस्ती में भाजपा के हरीश द्विवेदी ने बसपा के रामप्रसाद को 30354 मतों से हराया। संत कबीर नगर में भाजपा के प्रवीण निषाद ने बसपा के भीष्म तिवारी को 35749 मतों से हराया।  कौशांबी में भाजपा के विनोद सोनकर ने सपा के इंद्रजीत सरोज को 39052 मतों से पराजित किया।  भदोही में भाजपा के रमेश बिंद ने बसपा के रंगनाथ मिश्र को 43615 मतों से हराया। इसके अलावा 2 ऐसी सीट भी हैं जिनमें हार जीत का अंतर 60 हज़ार से कम रहा। इनमें एक अमेठी की सीट है जिसमें राहुल गांधी  भाजपा की स्मृति ईरानी से 55120 मतों से हार गए। रॉबर्ट्सगंज में अपना दल के पकौड़ी लाल ने सपा के भाई लाल कोल को 54396 मतों से हराया। साफ़ है कि इन काम मार्जिन वाली सीट से गढ़बंधन और कांग्रेस दोनों का गणित उत्तर प्रदेश में गड़बड़ाया है।

अब देखना होगा कि विपक्षी दल इससे निपटने के लिए भविष्य में क्या तैयारी करते है। वैसे अभी चुनाव बीतने के बाद बड़े नेता तो शांत है और मंथन कर रहे है मगर सोशल मीडिया पर कुछ सोशल प्रवक्ताओ का अपना प्रवचन शुरू है।

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