संसद से लेकर सड़क तक विरोध के बीच लोकसभा में पास हुआ आरटीआई संशोधन बिल

आदिल अहमद/आफताब फाजिल

नई दिल्ली: विपक्ष के लगातार आरोप कि केंद्र सरकार सुचना के अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करने के प्रयास में है के बीच आज लोकसभा में चली चार घंटे की लम्बी बहस के बाद इस कानून में संशोधन हेतु पेश किया गया बिल लोकसभा में पास हो गया है। सोमवार को लोकसभा में चली बहस के दौरान विपक्षी दलों ने सूचना के अधिकार क़ानून में संशोधन करने के सरकार के फैसले पर यह सवाल कई बार उठाया।

इस संशोधन बिल में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन को केंद्र सरकार के दायरे में लाने के प्रावधान का विपक्ष विरोध कर रहा है। सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पहले पांच साल का हुआ करता था और चुनाव आयुक्तों के बराबर वेतन होता था। कांग्रेस, डीएमके, बीजेडी, तृणमूल कांग्रेस और बसपा समेत कई विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध किया। विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद यह बिल लोकसभा में बहुमत से पारित ज़रूर हो गया लेकिन इसके खिलाफ संसद के अंदर और बाहर विरोध तेज़ हो रहा है। अब मांग उठ रही है कि इस बिल को राज्यसभा में पेश करने के पहले इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए।

बसपा सांसद दानिश अली ने कहा कि हमारे पास संख्या बल नहीं है। लेकिन आप हमारी आवाज़ को दबा नहीं कर सकते है। आप क्या सरकार में अधिकारियों के घपले छुपाना चाहते हैं? अब विपक्ष की मांग है कि सरकार बिल को राज्यसभा में पेश करने से पहले सेलेक्ट कमेटी के पास भेजे। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पी भट्टाचार्य  ने कहा है कि आरटीआई (संशोधन) बिल को राज्यसभा भेजना जरूरी है। उसकी स्कैनिंग के लिए सेलेक्ट कमेटी में स्क्रूटनी के बाद ही उसे राज्यसभा में लाया जाए। यही नही राज्यसभा में बीजेपी नेता भी बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने के पक्ष में दिखे। बीजेपी सांसद सीपी ठाकुर ने कहा कि  मेरी राय है कि राजनीतिक सहमति बनाने के लिए आरटीआई(संशोधन) बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए।

बहस के दौरान कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक लाकर इस महत्वपूर्ण कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने पारदर्शिता कानून के बारे में विपक्ष की चिंताओं को निर्मूल करार देते हुए कहा कि मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी, सरलीकरण, न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन को लेकर प्रतिबद्ध है। मंत्री के जवाब के बाद एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी समेत कुछ सदस्यों ने विधेयक पर विचार किए जाने और इसके पारित किए जाने का विरोध किया और मतविभाजन की मांग की। सदन ने इसे 79 के मुकाबले 218 मतों से अस्वीकार कर दिया। इसके बाद सदन ने विधेयक को मंजूरी प्रदान की।

इस विधेयक में उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है। उधर आरटीआई कानून में संशोधन के खिलाफ संसद के बाहर सड़कों पर भी विरोध प्रदर्शन जारी है। दिल्ली में संसद परिसर से कुछ ही दूरी पर आरटीआई कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और आरटीआई क़ानून में बदलाव का विरोध किया।

सामाजिक कार्यकर्ता आरटीआई कानून में संशोधन के प्रयासों की आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे देश में यह पारदर्शिता पैनल कमजोर होगा। विधेयक को पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मसौदा विधेयक केंद्रीय सूचना आयोग की स्वतंत्रता को खतरा पैदा करता है।  कांग्रेस के ही शशि थरूर ने कहा कि यह विधेयक वास्तव में आरटीआई को समाप्त करने वाला विधेयक है जो इस संस्थान की दो महत्वपूर्ण शक्तियों को खत्म करने वाला है। एआईएमआईएम के असादुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संविधान और संसद को कमतर करने वाला है।

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