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फ़िल्मी कहानियो जैसा है अनंत सिंह का जीवन, जाने कौन सा है कारण जो कर रहा है अनंत सिंह के साम्राज्य का अंत

अनिल कुमार

बिहार के बाहुबल तथा बहुबल की राजनीत में सबसे बड़ा नाम अनंत सिंह सुर्खियों में है। अनंत सिंह के जीवन की कहानी किसी भी फिल्म के कहानी से कम नहीं है। जो भी फिल्म में दर्शकों के लिए मसाला रहते हैं वो अनंत सिंह के जीवन में भी रहा है।

नाबालिग उम्र में जेल गए

मात्र नौ साल की उम्र में अनंत सिंह पहली बार अपने पैतृक गांव लदमा के ही एक मामले में जेल गए जो कि खेती से संबंधित था लेकिन कुछ दिनों में जेल से रिहा हो गए। मोकामा में टाल दियारा इलाके में शुरू से ही फसल की कटाई के कारण खून खराबा होते आ रहा है। अनंत सिंह टाल इलाके में वर्चस्व के लड़ाई में कूद पड़े और इसी वर्चस्व के लड़ाई में इनके सबसे बड़े भाई विरंची सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई‌। इस हत्या के बाद अनंत सिंह ने खुलेआम हथियार उठा लिया और अपराध की दुनिया में फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद टाल इलाके में हत्या का वो दौर शुरू हो गया कि मोकामा शहरी और टाल इलाके के लोगों में अनंत सिंह का खौफ पैदा कर गया। लोग अनंत सिंह को छोटे सरकार के नाम से जानने लगे।

अपराध से राजनीति में कदम

अनंत सिंह को यह लगने लगा कि जब तक अपराध और राजनीति में सामंजस्य स्थापित नही होगा तब तक जनता के दिलों में खौफ नजर नहीं आएगा। इस कारण अनंत सिंह ने अपने एक और बड़े भाई दिलीप सिंह को 1990 के विधानसभा चुनाव में उतारा और पूर्व कांग्रेसी मंत्री श्याम सुंदर सिंह धीरज को हरा कर अपने बलबूते भाई दिलीप सिंह को विधायक बनाया। स्व। दिलीप सिंह 1990 और 1995 में जनता दल से जो अब राजद के नाम से है से विधायक बने। 2000 में विधानसभा चुनाव में दिलीप सिंह अपने ही पुराने शिष्य सूरजभान सिंह से बुरी तरह चुनाव हार गए। उस समय तक अनंत सिंह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के खास आदमी माने जाते थे और लालू प्रसाद के गोशाला में भूसा भी देते थे। अनंत सिंह का लालू प्रसाद पर जबरदस्त प्रभाव था।

इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लदमा गांव में सामुदायिक भवन का उद्घाटन करने उस समय के मुख्यमंत्री राबड़ी देवी स्वयं पहुंची थी।  उस समय अनंत सिंह की असली लड़ाई अपने ही गोतिया विवेका पहलवान से थी। इन दोनों के लड़ाई में न जाने कितने हत्या हो चुकी है और यह लड़ाई आज भी जारी है।

जब नीतीश कुमार इनके सामने नतमस्तक हुए

मोकामा विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के पहले बाढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था और यहां से बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संसदीय चुनाव उस समय लड़ते थे और अनंत सिंह खासकर मोकामा विधानसभा क्षेत्र के टाल इलाके में जबरन बूथ कब्जा कर अपने मनपसंद उम्मीदवार को मदद करते थे। इसी मदद के लिए 2004 में नीतीश कुमार ने अपने वोट के खातिर अनंत सिंह के घर पर गये और यहां से नीतीश कुमार और अनंत सिंह में दोस्ती गहरी हो गई।

हांलांकि 2004 में नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव हार गए पर अनंत सिंह से संबंध मजबूत रखें और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से अनंत सिंह का संबंध विच्छेद हो गया। अनंत सिंह ने 2004 में नीतीश कुमार को चांदी के सिक्के से तौला था, जिसके बाद काफी विवाद भी छिड़ गया था। जब नीतीश कुमार ने बिहार में सत्ता संभाली तो अनंत सिंह ने औने पौने दामों पर संपत्तियों को खरीदना शुरू कर दिया और सत्ता के संरक्षण में अपना समांनतर सरकार चलाना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में पटना में कई आलीशान मकान, पटना के पॉश इलाके में शॉपिंग मॉल जो विवादों से घिरा हुआ है, पाटलिपुत्र कॉलोनी में एक बड़ा होटल, इस होटल के जमीन को लेकर जदयू के पूर्व महिला से काफी विवाद भी छिड़ गया था और दिल्ली के पॉश इलाका ग्रेटर कैलाश में भी अनंत सिंह का बंगला है। इतना अकूत संपत्ति बनाने के बाबजूद अनंत सिंह पर कभी भी नीतीश कुमार ने कोई जांच नहीं की।

पालतू जानवरों से भी था लगाव

विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला में अनंत सिंह अपने घोड़े, हाथी और गाय के कारण चर्चा में रहते थे। 2007 में सोनपुर मेला से अनंत सिंह ने लालू प्रसाद यादव का घोड़ा खरीदा था। एक बार 50 लाख रुपए में साड खरीद कर चर्चा में थे। अनंत सिंह अपने घोड़े और गाय के गले में सोने की सिकरी पहना कर सोनपुर मेला में पहुंचे थे।

2015 से राजनीति में पतन शुरू हो गया

2015 में बाढ़ में पुटुस यादव नाम के एक व्यक्ति की हत्या हुई और चार लोगों का अपहरण भी हुआ। पुटुस यादव की लाश लदमा गांव में ही मिली थी। इस हत्या से अनंत सिंह के पतन की कहानी शुरू कर दी। उस समय अनंत सिंह के संरक्षक नीतीश कुमार राजद पार्टी के बदौलत सत्ता पर काबिज थे और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पुटुस यादव की हत्या को एक जाति विशेष से जोड़ कर अनंत सिंह पर हत्या करने का आरोप लगाया और इस हत्याकांड में पटना के तत्कालिन एसएसपी विकास वैभव ने पटना स्थित सरकारी आवास से अनंत सिंह को गिरफ्तार किया गया।

उसके बाद विधानसभा चुनाव आने पर जदयू ने अनंत सिंह को अपने पार्टी से निकाल दिया जो कि राजद के कारण नीतीश कुमार की मजबूरी थी। पर 2015 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मोकामा विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया और भारी मतों से जीत दर्ज की।

विधानसभा चुनाव में अपने जीत देख कर अनंत सिंह को आभास हो गया कि हम अगर चाहे तो लोकसभा चुनाव भी जीत सकते हैं और यही गलतफहमी अनंत सिंह के लिए काल बन गई और अनंत सिंह के राजनीतिक गुरु ललन सिंह जो मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से एक बार अनंत सिंह के बलबूते सांसद भी बने थे और इस बार फिर मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से एनडीए के उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए। वही महागठबंधन उम्मीदवार के रूप में अनंत सिंह ने अपने पत्नी नीलम देवी को खड़ा कर दिया। हालांकि अनंत सिंह की पत्नी चुनाव हार गई पर चुनावी भाषण में ललन सिंह ने कहा था कि चुनाव बाद अनंत सिंह का बिना सर्जरी के होम्योपैथी इलाज किया जाएगा, जो अब जग जाहिर हो गया है।

अनंत सिंह के जीवन की कहानी से एक बात तो जगजाहिर होती है कि कहीं न कहीं अपराधी और राजनीतिज्ञ का सांठगांठ होने पर ही अनंत सिंह जैसे अपराधी अपने गलत कर्मो से अकूत संपत्ति को बचाने हेतु राजनीति के तरफ बढ़ते हैं और अपने मिशन में सफलता भी प्राप्त करते हैं।

करीब दस साल पहले भी बिहार के एक अधिकारी ने लिखित रूप से शिकायत की थी कि अनंत सिंह अपने पैतृक गांव लदमा में हथियारों का जखीरा रखें हुए हैं पर उस समय उक्त अधिकारी के शिकायतों को नजरंदाज कर दिया गया क्योंकि अनंत सिंह को सत्ता पर काबिज राजनीतिज्ञ संरक्षण दे रहे थे। अकेले बाढ़ थाना में अनंत सिंह पर लगभग 23 केस दर्ज हैं और बिहार के बाकी थानों में न जाने कितने दर्ज हैं। पर इस बार अनंत सिंह के साम्राज्य का अंत होना तय दिखाई दे रहा है क्योंकि अनंत सिंह ने नीतीश कुमार के करीबी ललन सिंह से पंगा लिया है इस कारण सुशासन बाबू भी चुप्पी साध रखी है।

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