कर्बला में सुपुर्द-ए-लहद हुए अक़ीदत के फूल, आँखों में अश्को को लेकर या सकीना, हाय प्यास या हुसैन की सदा से गुंजा प्रयागराज

तारिक खान

प्रयागराज. माहे मोहर्रम की दसवीं पर इमामबाड़ों में नसब किए गए अलम, ताबूत, झूला, तुरबत व ताज़िये के फूलों को अक़ीदत व एहतेराम के साथ नम आँखों से खेराजे अक़ीदत पेश करते हुए चकिया करबला में सुपुर्दे खाक किया गया। इस दौरान बख्शी बाज़ार स्थित इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन से ऐतिहासिक तुरबत जुलूस प्रातः सात बजे निकला। ज़ैग़म अब्बास जुलूस के आगे आगे ग़मगीन मर्सिया पढ़ते चल रहे थे।

वहीं रानी मण्डी से अन्जुमन आबिदया, आब्बासिया व हैदरया के मातमदार और नौहाख्वान भी जुलूस के हमराह हो लिए। तुरबत जुलूस दायरा शाह अजमल, रानी मण्डी, चडढ़ा रोड, कोतवाली, नखास कोहना, खुलदाबाद, हिम्मतगंज से होकर करबला क़ब्रिस्तान पहुँचा, जहाँ बड़ी संख्या मे पहले से लोग मौजूद थे। मातमदारों ने रौज़ा ए इमाम हुसैन पर जुलूस को खत्म किया और दुलदुल तुरबत, ताबूत व अलम पर चढ़ाये गए फूलों सहित ताज़िये को नम आँखों से सुपुर्दे लहद किया।

अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सै०मो०अस्करी के मुताबिक़  मैदान ए करबला में मौलाना सै०रज़ी हैदर साहब की क़यादत में आमाले आशूरा की रस्म अदा की गई। बड़ी संख्या में अक़िदतमन्दों ने हज़रत इमाम हुसैन के हाथों पर नन्हे अली असग़र की लाश लेकर कभी खैमे की तरफ जाना तो कभी पीछे वापिस आना इसी मन्ज़र को याद करते हुए मन्ज़रकशी करते हुए आमाले आशूरा की रस्म अदा की।

गलियों मुहल्लों की लाईट बुझा कर हुई मजलिस ए शामें ग़रीबाँ

शहादते इमाम हुसैन के बाद वीरान हो चूके करबला के सहरा की दर्द भरी रात की याद ताज़ा करते हुए रानी मण्डी, दरियाबाद मे शामें इरीबाँ की मजलिस हुई व हाय सकीना हाय प्यास की सदा बुलन्द करते हुए जुलूस भी निकाला गया। रानी मण्डी स्थित काज़मी लाज मे करबला वक़्फ कमेटी के सद्र नवाब असग़र अली की जानिब से मजलिसे शामें ग़रीबाँ मे सीयाह लिबास में अक़िदतमन्द शामिल हुए। मजलिस के बाद छोटे छोटे बच्चे हाँथों मे जलती मशाल व खाली कूज़े लेकर हाय सकीना हाय प्यास की सदा बुलन्द करते हुए जुलूस मे शामिल हुए।

खाली घोड़े पर ढली ज़ीन सीयाह परचम लगा कर हज़रत इमाम हुसैन के वफादार घोड़े की शबीह निकाली गई। वहीं दरियाबाद मे बैतुल हामेदीन मे शामें गरीबाँ की बड़ी मजलिस को मौलाना सै०रज़ी हैदर ने खिताब करते हुए करबला में इमाम हुसैन सहित सभी बहत्तर शहीदों की शहादत के बाद रात की अँधेरी व खौफनाक तारीकी का ज़िक्र किया। बताया की जब रसूल के खानवादे को यज़ीदी लशकर के तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया तो उसके बाद खैमों मे आग लगा दी गई। औरतों के सरों से चादरें छीन ली गईं।

ज़ुल्म की सारी हदें पार करते हुए यज़ीदी लश्कर ने लाशों के सर  तन से जूदा कर दिये। ज़मीने करबला पर नैज़ा बरदारों ने नैज़ा मार मार कर हजरत इमाम हुसैन के जरीये दफ्न किए गए नन्हे अली असग़र की लाश को भी बाहर निकाल कर बेहुरमती की। ग़मगीन मसाएब सुन कर अज़ादारों की रोने की आवाज़ बुलन्द हो गई। आँखों से अश्कों की धारा बहना लगी तो मातमदारों ने या हुसैन या हुसैन की सदा बुलन्द करते हुए मातम किया। मौलाना आमिरुर रिज़वी, हसन अब्बास, माहे आलम आदि मौजूद रहे।

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