मऊ गैस सिलेंडर ब्लास्ट हादसा – सिसक रही थी शब, अजीजो के ग़म में, और मौत थी जो ठहाके लगा रही थी

तारिक आज़मी

एक शब ही क्या, कल सुबह से हर एक लम्हा उदास है। दूर दराज़ रहने वाले परिचित और अज़ीज़, करीब अपनों की खैर खैरियत के लिए लगातार फोन कर रहे है। ये शब आज और भी उदास हो पड़ी। जिले में हर आँखे नम थी। वो तो सिर्फ मौत ही थी जो ठहाके मार कर अपनी कामयाबी पर हंस रही थी। किसी का लाल आख़री रुखसती चाह रहा था, तो किसी का सुहाग। कई घर आज एक साथ ही इलाके के वीरान हो चुके थे। मजमे हज़ार थे, मगर सियापा कायम था। मौत का ऐसा मंज़र शायद ही जिले ने कभी देखा होगा। एक दो नही बल्कि कुल 13 लोगो ने ज़िन्दगी से अपनी जंग ऐसी हारी की ज़िन्दगी ही हार बैठे थे। आखरी सफ़र पर जाने वाले न मुस्लिम थे, न हिन्दू। वह तो सिर्फ एक मय्यत अथवा शव ही थे।

पत्थरो की भी आँखे नम हो गई थी, लहद भी अपनी मिटटी में मुलामियत अपने आसुओ से दे रहा था जब दो सगे भाई उसके आगोश में एक साथ आ रहे थे। दूसरी तरफ खामोश शब के दरमियान तमसा नदी के किनारे पानी भी खुद के ग़म का इज़हार करने को बेताब था और उसकी लहरे उस वक्त तड़प उठी जब एक साथ 10 लाशो को मुखाग्नि देने के लिए कापते हाथो ने लुआठ उठाया था। सर्द मौसम के आमद की शुरुआत नही बल्कि ये आसमा के आंसू थे, शायद आसमा भी इस दिल दहला देने वाले हादसे से रो रहा था।

हर एक आँखे ग़मज़दा थी। सभी के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। एक तरफ जहा तीन मय्यत एक साथ सुपर्द-ए-खाक हो रही थी, वही तमसा नही एक साथ दस लोगो को मुखाग्नि दिए जाने की गवाही देने को तैयार ही नही थी। भले ज़माना इसको सर्द मौसम के आमद की पेशन्गोई वाली बारिश समझे मगर शायद आसमां खुद की बेबसी पर आंसू बहा रहा था। सब्र का हर एक पैमाना छलक पड़ा था। एक साथ सैकड़ो आँखे नम होकर खुद की बेताबी आंसुओ से बहा रही थी। एक तरफ तमसा नदी पर दस चिताये सजी थी तो दूसरी तरफ गाव के दो कब्रिस्तानो में तीन नवजवान इस दुनिया को रुखसत कह कर लहद (कब्रिस्तान) के आगोश में समां रहे थे। उनके कब्र पर मिटटी डालने के दस्तूर ने लोगो को मजबूर कर रखा था, और लोग अपने लरजते हाथो से मिटटी डाल रहे थे। तो दूसरी तरफ चिताओं को मुखाग्नि देने की प्रथा ने भी बंदिशे डाल रखा था और चिताओ को मुखाग्नि दिया जा रहा था।

पूरे गमगीन माहौल में सोमवार की रात वलीदपुर में हुए हादसे में फौत फरमाये सभी 13 लोगों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद थे, सबने मृतकों की आत्मा की शांति और दुआ-ए-मगफिरत अपने अल्लाह-ईश्वर से किया। माग तो सभी रब से सब्र ही रहे थे, मगर हकीकत तो ये है कि अरसा गुज़र जायेगा इस सब्र को दिल में आने में।

गौरतलब हो कि सोमवार को गैस सिलेंडर से हुए रिसाव के चलते हुवे ब्लास्ट में वलीदपुर के छोटू विश्वकर्मा का मकान ढहने से कुल 13 ज़िन्दिगीय एक ही झटके में मौत के आगोश में समां गई थी। मौत का खौफनाक मंज़र यही नही थमा बल्कि इसके अलावा भी 22 लोग अभी भी इलाज करा रहे हैं। पूरे गांव में मौत के फ़रिश्ते ने मातम पसार दिया। हर ओर चीत्कारें, खून से सने लोग थे तो अपनों को खो देने के गम से निढाल हो चुके परिजन थे। मरने वालो में अगर दो को छोड़ दे तो सभी मरने वालो की उम्र 10 साल से लेकर 22 साल तक की ही थी।

सभी लाशो के पोस्टमार्टम के बाद रात 10 बजे के करीब सभी मृतकों के शव गांव में एंबुलेंस से पहुचना शुरू हुए। कस्बे के रामलीला मैदान में आटो स्टैंड के पास शवों को एक एक कर उतारा गया। इस दौरान कन्धा देने वालो का हुजूम कुछ इस तरह था कि कोई भी मय्यत को कंधे पर लेकर एक कदम नही बाधा, बल्कि मय्यत एक कंधे से होकर दुसरे कंधे तक जा जा कर अपने मंजिल तक पहुच गई। एक तरफ जहा प्रशासन के मदद से कस्बे के कुछ ही दूरी पर बह रही तमसा नदी के किनारे 10 चिताएं सजकर तैयार थीं वही दूसरी तरफ कसबे के दो कब्रिस्तानो में तीन कब्रे भी तैयार थी। चिताओं को जिनकी प्रतीक्षा थी वह थोडा जल्द ही पूरी हुई और शवों को एक बार उनके दरवाजे तक ले जाकर सीधे श्मशान घाट पहुंचाया गया।

वही दूसरी तरफ कब्रिस्तान के लहद में खुद का आखरी सफ़र तय करने वाले तीनो नवजवानों की मय्यत उनके घर पहुची। दो सगे भाई थे, एक पडोसी था। तीनो को बतर्तीब गुस्ल दिया गया और फिर मय्यत उठी तो पूरा क़स्बा ही आंसुओ में डूब जाने को बेताब था। नमाज़-ए-जनाज़ा के वक्त कही पाँव रखने की भी जगह नही रही। सफो में खड़े लोगो ने नमाज़-ए-जनाज़ा अदा किया और दो सगे भाइयो को एक ही कब्रिस्तान में और तीसरे को दूसरी कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। लरजते हाथो ने मय्यत को कब्र में उतारा तो वैसे ही लर्ज़िशो वाले हाथो ने मिटटी डाली।

वही दूसरी तरफ तमसा नही का बहता खामोश पानी तड़प उठा और बेताबी अपनी लहरों से दिखाने लगा जब लर्ज़िशो के साथ हाथो ने दस चिताओं को एक साथ मुखाग्नि दिया। हर एक निगाह आंसुओ से पलके भिगाये थी। कस्बे में मौत का सियापा था। अगर कोई आवाज़ भी आती तो वह सिर्फ और सिर्फ सिसकियो की आवाज़ होती।

हम अल्लाह-ईश्वर से मृत आत्मा की शांति की दुआ करते है। साथ ही पीड़ित परिजनों को इस दुःख के लम्हे में सब्र की उस रब से दुआ करते है जिसको कई नामो से पुकारा जाता है, मगर वह सबकी बिगड़ी को बनाता है। साथ ही घायलों के जल्द सेहत्याब होने की दुआ करते है।

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