तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – कानपुर में पत्रकार विजय गुप्ता के कत्ल का गुनाहगार क्या सिर्फ उसके भाई ही है ? क्या थाना प्रभारी की जवाबदेही नही है ?

तारिक आज़मी

कानपुर। आप जब इस खबर को पढ़ रहे होंगे तो विजय गुप्ता का नाश्वर शरीर इस दुनिया से ख़त्म हो चूका होगा। उसकी चिता की आग ठंडी पड़ रही होगी। उसकी पत्नी अपने उजड़े सुहाग के गम में रो रो कर शायद आंसू सुखा चुकी होगी। दो साल का विजय का बेटा अपने पापा का अभी भी इंतज़ार कर रहा होगा कि पापा आयेगे और उसको घुमाने ले जायेगे। मगर उस मासूम को क्या मालूम कि उसके पिता कभी अब वापस नही आयेगे। वक्त लगेगा मगर वो पापा पापा कहने की आदत वह भूल जायेगा। बड़ा होगा तो उसको उसके पिता का चेहरा भी याद न होगा। ज़ालिम वक्त और आस्तीन के सांपो ने विजय को वक्त के पहले ही छीन लिया।

बहुत दूर बैठा हु आज मैं विजय से। लगभग 350 किलोमीटर दूर हु। लाख कोशिशो के बावजूद भी मैं उसके आखरी रुखसती पर नही पंहुच सकता हु। वो उसकी घंटा घर चौराहे पर भैया प्रणाम की आवाज़ मेरे कानो में अभी भी गूंज रही है। वो चलते वक्त उसका भैया प्रणाम कहकर थोडा सा झुकना, और स्नेह से मेरा उसको गले लगा लेना। आज आँखों के पलकों को नम करके वह सब याद आ रहा है। शायद मौके पर होता तो कहता उठ विजय तुझे गले लगा कर अलविदा तो कहू। मगर इस दर्द को लफ्जों में बयान नहीं कर सकता कि ये कमबख्त दूरी आखिर इतनी ज्यादा क्यों है ? अजीब रुखसती है ये छोटे भाई कि आखरी अलविदा भी नही कह पा रहा हु।

विजय का शरीर ख़त्म हो गया है, मगर उसकी आत्मा आज भी कई सवाल लेकर खडी हुई है। सवाल उसका खुद के भाइयो से है कि आखिर क्यों उजाड़ दिया मेरा चमन, क्या विवाद था तेरा मुझसे सिर्फ यही कि तू दबंग और मैं शराफत की ज़िन्दगी जीने वाला इंसान था। क्या चाहिये था, जो था सब दे तो दिया था। सम्मान से लेकर संपत्ति तक सब तुम्हारे हवाले थी। आखिर क्यों क़त्ल कर डाला मेरा।

साथी पत्रकारों से भी कर रही होगी विजय की आत्मा सवाल

विजय एक सीखने की जुझारू क्षमता रखने वाला पत्रकार था। कई बार ऐसा हुआ है कि उसकी खबर में मैं ही उसको टोक देता था। वह कोई रिएक्शन करने के बजाये सिर्फ हाथ जोड़ कर सीखता था। वह खबर भले ही एक ही सोशल मीडिया पर वायरल करे, मगर खबर उसके खुद के हाथो की हमेशा रहती थी। देर रात अक्सर सोशल मीडिया साईट पर नोटिफिकेशन घनघनाने लगते थे तो समझ जाता था कि विजय ही होगा। मगर ज़िन्दगी की जंग ये विजय ऐसे वक्त के पहले हार जायेगा इसका उसको तो अहसास था मगर क्या करू प्रशासन तो इसका अहसास ही नही कर रहा था।

बहरहाल, अभी तो विजय की आत्मा उन साथी पत्रकारों से सवाल कर रही है जो उसके हत्या का कारण संपत्ति विवाद बता रहे है। आखिर दोस्त किसने कहा कि संपत्ति विवाद कारण था। संपत्ति तो कुछ थी ही नही फिर विवाद कैसा। कारोबार का बटवारा पहले ही हो चूका था और डिप्टी पड़ाव चौराहे पर विजय की खुद की दूकान थी। फिर संपत्ति कौन सी थी जिसका विवाद हो सकता था। फिर क्यों इस तरह की पोस्ट चला रहे हो दोस्त कि संपत्ति विवाद था। जबकि हकीकत ये थी कि मेरा (विजय) भाई दबंग था और मैं सीधा साधा सभ्य नागरिक था। मुख्य विवाद की जड़ तो इर्ष्य थी। मेरा नाम शहर में बड़ा था और दबंग भाई का नाम बहुत कम था। शायद इसी हसद ने मेरी जान ले लिया।

सवाल क्षेत्राधिकारी से

देखे क्षेत्राधिकारी पत्रकार की मौत पर सवाल पूछते और विरोध दर्ज करवाते पत्रकारों से कैसे हंस रहे है

विजय की आत्मा क्षेत्राधिकारी अनवरगंज से भी सवाल पूछ रही है। कह रही है क्या बेग साहब, मेरी मौत असमय हो गई। मेरी हत्या से मेरा बेटा यतीम हो गया। मेरी पत्नी का सुहाग उजाड़ गया। इसका विरोध दर्ज करवाने जब पत्रकार साथी पहुचे तो आप हंस रहे थे। कैसे ऐसे मौको पर हंसी आ जाती है साहब आपको। अब आप खुद बताये कि पत्रकार आपसे इन्साफ मांगने के लिए पहुचे थे, आप उनके सामने ठहाका लगा कर हंस रहे थे। साहब मैं और मेरी आत्मा दोनों आपसे यही सवाल कर रहे है कि ये आप इतना जो हंस रहे है तो हुजुर आप तब और हंस सकते थे जब मैं स्थानीय प्रशासन से न्याय की उम्मीद लगा कर लगातार कह रहा था कि साहब मेरी जान को खतरा है, और फिर पुलिस प्रशासन उसके ऊपर ध्यान न देकर इसको पारिवारिक विवाद कह कर मामला टालती रही।

सवाल थाना प्रभारी योगी जी से

विजय की आत्मा सबसे बड़ा सवाल तो थाना प्रभारी रायपुरवा से कर रही है। उसका सवाल है कि घटना वाले दिन यानि दीपावली के रोज़ रात 10 बजे के करीब मैंने खुद आपको लिखित तहरीर दिया था और कहा था कि मेरी (विजय की) जान को खतरा है, मगर आपने नही सुना और इसको एक बार फिर पारिवारिक विवाद का कारण बता दिया और बात को टाल गये। काश आपने समय से शिकायत का संज्ञान लिया होता तो आज विजय जिंदा होता। मगर साहब आपको तो अपने क्षेत्र में क्राइम कम दर्शाना था, बस यही वजह थी आपने शिकायत का समय से संज्ञान नही लिया।

ऐसा नही है थाना प्रभारी साहब की आप पहले है ऐसा करने वाले। वैसे आम बोलचाल की भाषा में इसको लापरवाही कहते है। ऐसी ही लापरवाही आपके पूर्ववर्ती ने भी किया था और तब भी एक जान गई थी। इस बार भी एक जान गई है। सिर्फ एक विजय को ही नही मारा साहब, यकीन मानियेगा सिर्फ विजय नही मरा, एक सच मर गया साहब, एक विश्वास मर गया। हम खुद को पुलिस के साथ सुरक्षित महसूस करते है। देश की 130 करोड़ जनता आपस में विवाद के बाद आपके विभाग की शरण में आती है। जानते है क्यों ? क्योकि उनको आशा रहती है कि उन्हें इन्साफ आप दिलवा देंगे। सबको मालूम है साहब कि अदालती भागदौड़ बहुत लम्बी होती है, फिर भी आज भी आम जनता को विश्वास है न्याय तंत्र पर, पुलिस तंत्र पर तभी तो अत्याचार होने पर वह आपके पास आती है। आज उस विश्वास में शायद थोडा सा डगमगाहट आ रही है।

साहब वैसे आप खुद भी जानते है कि विजय खतरे में था। आपने समय पर कार्यवाही किया होता तो शायद विजय आज हम सबको छोड़ कर ऐसे बे समय न जाता। मगर साहब आज सब कुछ है। आप भी है, हम भी है, हत्यारोपी भी है,बस विजय नही है। विजय की आज पुलिस की लापरवाही से पराजय हुई और वह भी इतनी बड़ी कि उसको जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी।

जितनी तेज़ी आज प्रशासन ने विजय के पोस्टमार्टम करवाने में दिखाई है अगर उसकी आधी तेज़ी भी दिखाते तो विजय के साथ ऐसी अनहोनी न हो पाती। विजय का एक दोस्त इस बात की गवाही दे रहा है साहब कैमरे पर आप वीडियो देख सकते है कि विजय की गुमशुदगी के लिए शिकायत करने गये विजय के शुभचिंतको को आपने कहा है कि विजय अपने से छुप कर परेशान कर रहा है। ऐसा हम नही बल्कि विजय का दोस्त कह रहा है। साहब उसकी बात को आपने सीरियस लिया होता तो शायद विजय जिंदा होता।

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