पिता की थी जिद्द जिस कारण सीखा था योग, फिर उसी योग ने बना दिया करियर, अब है सहायक निदेशक

अब्दुल बासित मलक

यमुनानगर:- बचपन में पिता की एक जिद ने मॉडल टाउन की शशि राणा को खेल विभाग पंचकूला में सहायक निदेशक के पद पर पहुंचा दिया। जिद ये थी कि उन्हें केवल योग में ही अपना करियर बनाना है। उनके काम को देखते हुए मुख्यमंत्री व राज्यपाल ने उन्हें चार बार हरियाणा स्टेट अवार्ड से सम्मानित भी किया, परंतु इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष और कुछ अपनों का विरोध झेलना पड़ा।

शशि राणा ने बताया कि वर्ष 1972 में जब वे दूसरी कक्षा कक्षा में थी तब उन्होंने योग सीखना शुरू किया था। पिता कृपाल सिंह एमएलएन सीसे स्कूल में फजिक्स और गणित के टीचर थे। वे उसे सुबह जल्दी उठाकर योग सीखने के लिए भेजते थे।

तब वे शहर के दयानंद मॉडल स्कूल में पढ़ती थी। 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद योग में डिप्लोमा करने के लिए महाराष्ट्र के लोहनावाला में जाने की तैयारी की। तब परिवार के बड़े सदस्यों ने ये कहते हुए विरोध किया था कि लड़कियों को अकेले बाहर नहीं भेजा जाता। यहां तक की उन्होंने शशि राणा से बोलना भी बंद कर दिया, परंतु पिता ने विरोध के बावजूद उन्हें महाराष्ट्र भेजा। डिप्लोमा मिलते ही योग कोच बनी और गत वर्ष खेल विभाग में सहायक निदेशक पद पर पहुंची।

15 साल यमुनानगर की टीम रही चैंपियन

कोच बनते ही उन्हें यमुनानगर ही सेंटर मिला। वे सरस्वती सीसे स्कूल जगाधरी, डीएवी ग‌र्ल्स कॉलेज व एमएलएन स्कूल छात्रों को योग सिखाने लगी। 15 साल तक उनकी योग टीम स्कूल से लेकर नेशनल तक जहां भी खेलने गई, वहां से चैंपियन बनकर लौटी। इसके बाद तीन साल तक उन्होंने अंबाला में भी खिलाड़ियों को योग सिखाया। छात्राओं को न केवल योग सिखाया, बल्कि उनकी पढ़ाई में भी मदद की। उनकी टीम इंटरनेशनल योगा चैंपियनशिप में खेलने को पुर्तगाल भी गई जहां से एक खिलाड़ी गोल्ड मेडल और लड़की चौथे स्थान पर रही थी।

दूसरे खिलाड़ियों के लिए भी योग जरूरी : शशि राणा

शशि राणा ने बताया कि आज वे इस मुकाम पर अपने पिता की वजह से हैं। योग में खिलाड़ी दूसरे खेल खेलते हैं उन्हें भी योग करना चाहिए। खासकर निशानेबाज को। क्योंकि योग से ध्यान एक जगह केंद्रित होता है। योग से शरीर न केवल स्वस्थ रहता है बल्कि इसमें करियर बनाने की भी अपार संभावनाएं हैं।

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