उत्तर प्रदेश के शाहीन बाग़ बने रोशनबाग़ से लिखा गया “हिन्दू बहनों के लिए मुस्लिम बहनों का एक पत्र”

वाजिद अली/तारिक खान

प्रयागराज.. प्यारी बहन, मैं वही आफरीन हूँ जो कल क्लास में तुम्हारे बगल में बैठी थी। मैं वही ज़ैनब हूँ जिसके साथ कल ही तुमने पानी-पूरी के मजे लिए थे। मैं वही फ़ातिमा हूँ जिसे हर साल सब से पहले तुम ही जन्मदिन की बधाई देती रही हो। अब तुम मुझे जरूर पहचान गई होगी। हाँ मैं तुम्हारी वही सहेली हूँ जिससे तुम छुप-छुप कर दिल ही दिल में और दिल से दोस्ती निभाती हो।

आज कुछ ऐसी बातें करने का मन हुआ जो मैं तुमसे आमने सामने नहीं कर सकती। लेकिन आज हालात के आगे मजबूर होकर मुझे वो बातें करनी पड़ रही हैं। झिझक है, शर्म है, दिल डरता है। इसलिए इस खत को जरिया बनाया है। क्या तुम्हारे घर में भी हम लोगों के बारे में वही सब बातें होती हैं जैसी, सोशल मीडिया पर दिखती है, कि हम लोग पाकिस्तानी हैं, बंगलादेशी हैं, घुसपैठिये हैं, आतंकवादी हैं, देश के गद्दार हैं। कहीं तुम भी तो ऐसा नहीं सोचने लगी हो? काश कि ये सारे सवाल मेरे दिमाग में कभी आते ही ना। लेकिन अफसोस, कुछ सत्ता के लोभियों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि मुझे ये सब सोचने पर मजबूर होना पड़ा है।

ये वही लोभी हैं, जिन्होंने सत्ता के लालच में प्यार, मुहब्बत, रिश्ते, भाईचारे सबको अपने पाँव तले रौंद डाला है। लेकिन मुझे यकीन है कि तुम्हारे दिल तक अभी ये लोग नहीं पहुँच पाए होंगे। अभी तुम्हारे दिल में सब कुछ वैसा ही ज़िन्दा होगा जैसा कि मेरे दिल में। तो क्यों ना इस ज़िन्दगी से और ज़िन्दगी पैदा की जाए।

क्यों ना लोगों को इनकी असलियत बताई जाए? इन्होंने एक धर्म का चोला ओढ़ कर दूसरे धर्म से लड़वाने और नफरत फैलाने का काम किया है, जबकि कोई धर्म ऐसा नहीं सिखाता। लोग आपस में लड़ते रहें और ये ठाठ से राज करें, इनकी लूट पर लोगों का ध्यान ना जाए। हमें सच बताना होगा। इस धोखे में देशवासी न फंसे रह जाएं कि कौआ उनका कान लेकर भाग गया है, जबकि कान जगह पर है।

लुटेरे कौआ दिखाकर हमारी जेब काट रहे हैं। सब को देखना होगा कि देश में उसके लिए क्या है? जिन वादों और उम्मीदों के साथ लोगों ने नेताओं के हाथों में देश सौंपा था क्या वो सब पूरा हुआ या नही?  ना बच्चों के लिए अच्छे सरकारी स्कूल हैं, ना बीमारों के लिए अच्छे सरकारी अस्पताल। ना साफ हवा ना साफ पानी। ना अच्छा मकान है न खाना। गैस के दाम आसमान पर हैं। हर क़दम पर रिश्वत है। समाज की हालत ऐसी कि कहाँ, कब किसके साथ क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। ख़ास कर हम बच्चियों-औरतों, महिलाओं के साथ। घर से निकलने के बाद वापस आने की गारंटी नहीं। छेड़छाड़, बलात्कार, हत्या, लूटपाट की ख़बरों से अख़बार भरा रहता है। अब लोगों को ये ख़बरें भी समान्य लगने लगी हैं। अक्सर ऐसे आरोपी दबंग होते हैं, सरकार उनकी हिफाज़त करती है।

सड़क का कौन सा खड्डा कब्र बन जाएगा मुसाफिर को पता नहीं। जो किसान हमारे लिए अनाज उगाते हैं वो आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ? सरकार ने बड़े-बड़े पूँजीपतियों का कर्ज तो बिन कहे माफ कर दिये लेकिन जब किसान अपने कर्ज की माफी के लिए सड़क पर उतरे तो उनको गोली मार दी गई। कोई क़लम और कागज से आवाज उठाता है तो उसे हमेशा के लिए ख़ामोश कर दिया जाता है। क्या देश में सबके पास स्थाई आमदनी का कोई बंदोबस्त है? ना नौजवानों के पास जाॅब है ना किसी के पास अच्छा कारोबार है। जैसे-तैसे लोगों ने किसी तरह ख़ुद को जिंदा रखा हुआ है।

अमीरों व गरीबों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। एक तरफ तो अरबपति हैं जिनके पास नस्लों के लिए खाने का पड़ा है, दूसरी तरफ वो ग़रीब हैं, जिनके पास रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं है। हर तरह की खुशियां उन्होंने अपने लिए समेट ली हैं और हर तरह के दुःख, परेशानी और समस्याएं हमारे दामन से बंध सी गई हैं। ये समस्याएं हमारे बच्चों का जीवन बरबाद कर रही हैं। उन्हें नशे और अपराध की तरफ धकेल रहे हैं। हमे मिलकर ही इनका हल ढूंढना होगा।

हमारे हर दुख का ज़िम्मेदार यह तंत्र व नेता हैं। हमारी उंगली इनकी तरफ ना उठे, इसलिए इन्होंने जाति और धर्मों की जंग छेड़ रखी है। इन्होंने बहुसंख्यकों को डराने के लिए एक कौम को आतंकवादी कहने का खेल खेला। बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों का डर दिखा कर खुद बहुसंख्यकों का रक्षक बन बैठे हैं, जबकि बहुसंख्यकों का बड़ा हिस्सा खुद भी जीवन की इन मूलभूत समस्याओं से पीड़ित हैं। इन्होंने किसानों, मजदूरों, दलितों, पिछड़ों व धार्मिक अल्पसंख्यकों के मन में पुलिस के केसों का हौवा खड़ा किया हुआ है।

अगर हम मुसलमान आतंकवादी, गुस्सैल, मार-काट करने वाले होते तो क्या इतने सारे शहरों में, इतनी बड़ी संख्या में, लगातार अपना शांतिपूर्वक धरना चला रहे होते? आज हम गर्व और सम्मान के साथ देश का झंडा हाथ में लेकर, ठंड, कोहरा, ओस, बरसात सब झेल रहें हैं। ये कैसे ‘आतंकवादी’ हैं? हजारों के मजमे में आते हैं, लाठी गोली सब खाते हैं। चीख़ते-चिल्लाते हैं और संविधान की रक्षा की बात करते हैं, गरीबी दूर करने की बात करते हैं। और देखो, कितनी बड़ी संख्या में, लाखों हिन्दु व अन्य धर्मों के भाई-बहन, समाज में प्रगतिशील विचार रखने वाले हमारे देशवासी भी इसमें हमारे साथ हैं।

दूसरी तरफ आरएसएस और बीजेपी के लोग हैं। वे लगातार हमारे खिलाफ कड़वी व घृणित बातें कह रहे हैं। वे भीड़ के शोर का सहारा लेकर लिंचिंग तक कर देते हैं, मुस्लिम मिल गया तो उसकी दाड़ी पकड़ कर जय श्रीराम के नारे लगवाते हैं। अक्सर खबरें आती हैं कि बात तो वे हिन्दु लड़कियों की रक्षा की करते हैं, पर उन्हीं के कालेज में घुसकर उनके साथ दुव्र्यवहार भी करते हैं।

हम पर पाकिस्तान का पक्ष लेने के कई आरोप लगाए जाते हैं। हम में से 99 फीसदी तो जानते भी नहीं कि पाकिस्तान कैसा और कहां है, क्योंकि हमारा तो जन्म जन्मान्तर से अपने ही देश, भारत से वास्ता है। यह और ऐसे आरोप देश के लिए खतरनाक है, हम सब के लिए खतरनाक है। इस सवाल का जवाब खुले ज़ेहन के साथ देश को, हम सब को ढ़ूँढ़ना होगा। NPR, NRC और CAA जैसे जन विरोधी-देश विरोधी क़ानूनों ने हम मुसलमानों को अपने देश में ही पराया कर दिया है। NPR, NRC के तहत नागरिकता तो सबको साबित करनी ही होगी, कागज़ हो या न हो, पैसा देकर बनवाने होंगे। चाहे वो किसी भी धर्म का हो। पर CAA जिसमें शरण देने की बात है, मुसलमानों को छांटकर अलग कर दिया है। इसका हमें गहरा दुःख है। ये सिद्धान्ततः भी ग़लत है, संविधान के भी ख़िलाफ़ है। आरएसएस इसमें भी घृणा फैला रही है कि इससे वह मुस्लिमों को छांट देगी। ऐसा भेदभाव कानूनी रूप से होने लगा तो ये लोग आगे चलकर दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, आदिवासियों के साथ भी करना शुरू कर देंगे।

हम, आज, केवल अपना हक़ लेने के लिए, पूरे देश के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा कर लड़ रहे हैं। यह संघर्ष हर मेहनतकश के पक्ष का है, हर देशभक्त का है। हमने अब देश बचाने का बीड़ा उठा लिया है। माँ-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी, अपने पराए के साथ-साथ अपने गोद के बच्चों को भी मैदान में उतार दिया है। जो हो, हम तैयार हैं।

चन्द सत्ता के लालचियों ने पूरे देश को तहस-नहस कर दिया है। जनता को आपस में लड़ाया है। समाज में नफरत का ज़हर घोल कर समाज को तबाह कर दिया। इन्होंने अपने ऐश के लिए भारत के भाईचारे को पाँव तले रौंदा है। हमें तो अब अपना वही पुराना देश चाहिए, जिसमे जब गीता दीदी के यहाँ मेहमान आते थे तो सेवँई बनाने गुलरेज़ आपा पहुंच जाती थीं और जिस दिन गीता दीदी के यहाँ से दमालू और कचैड़ी बन कर गुलरेज आपा के यहाँ आती सारे घरवालों की दावत हो जाती थी।

रज़िया ख़ाला के बेटे अनवर भाई पर ज्यादा अधिकार पड़ोस में रहने वाली उनकी पूजा बहन का था या अनवर भाई की सगी बहन सुमैरा का ये झगड़ा अभी तक रजिया ख़ाला सुलझा नहीं पाई हैं। शर्माजी के बेटे संजय सामने रहने वाले आकिब को रोज अपनी साइकिल पर बिठा कर मदरसे छोड़ने जाते थे। संध्या चाची से गुझिया बनाना सीख कर आसिफा ससुराल में वाहवाही लूटती है। वहीं संध्या चाची की बेटी कोमल को देखने जब लड़के वाले आए थे तो शाही टुकड़ा आसिफा की अम्मी ने बनाया था।

ये सारी बातें अब कहानियों सी रह गई हैं। लेकिन यही हमारे भारत की हक़ीक़त हुआ करती थीं। अगर हमने अब भी इस हक़ीक़त को जिन्दा नहीं किया तो हमारा भारत भी एक कहानी बन जाएगा और इसके जिम्मेदार ‘हम भारत के लोग’ ही होंगे।

हमारी पुकार है ‘हम देश बचाने निकले हैं, आओ हमारे साथ चलो’। बहनों, डरने से हार होगी, लड़ने से जीत। दिल का दर्द बयान करने में अगर कहीं लहजा सख्त हो गया हो तो माफी चाहती हूँ। साझी विरासत की रक्षा में ही देश हित है।

रोशनबाग इलाहाबाद से तुम्हारी सहेली।

 

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