असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है, जो क़ानून के शासन का उल्लंघन है – जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

आदिल अहमद/ आफताब फारुकी

अहमदाबाद: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ‘असहमति’ को लोकतंत्र का ‘सेफ्टी वॉल्व’ करार देते हुए शनिवार को कहा कि असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी बता देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण एवं विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता के मूल विचार पर चोट करता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यहां एक व्याख्यान देते हुए यह भी कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो कानून के शासन का उल्लंघन है। उन्होंने कहा, ‘असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण एवं विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता की मूल भावना पर चोट करती है।’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निर्वाचित सरकार हमें विकास एवं सामाजिक समन्वय के लिए एक न्यायोचित औजार प्रदान करती है, वे उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलवादी समाज को परिभाषित करती हैं।

उन्होंने यहां आयोजित 15 वें जस्टिस पीडी देसाई स्मारक व्याख्यान ‘भारत को निर्मित करने वाले मतों: बहुलता से बहुलवाद तक’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी मशीनरी को लगाना डर की भावना पैदा करता है और स्वतंत्र शांति पर एक डरावना माहौल पैदा करता है जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है और बहुलवादी समाज की संवैधानिक दृष्टि से भटकाता है।’

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