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दालमंडी से लाइन हाज़िर दरोगा जी नही छोड़ पा रहे क्षेत्र की मोहमाया, दरोगा जी का फरमान, सीधे सभी कप्तानो से अब मैं करता हु बात

तारिक आज़मी

वाराणसी। आपने एक कहावत ज़रूर सुनी होगी, चोर से कहो चोरी करे, और साव से कहो जागता रहे। इसको आज चरितार्थ होते खुद अपनी आँखों से देखा है। सुना है पुलिस विभाग में विभागीय राजनीत हो जाती है। मगर इसकी बानगी अगर आपको जीते जागते दिखाई दे तो वाकई अचम्भा होगा। एक दरोगा जी है। दरोगा जी वैसे तो वर्तमान में लाइन हाज़िर है मगर जिस इलाके की उनको चौकी इन्चार्जी लगी हुई थी वह उनके मोह माया से अभी भी बाहर नही निकल पा रहे है। आज की घटना में पुलिस विभाग की इज्ज़त तो सरेबाजार दरोगा जी ने बेचने का प्रयास कर डाला।

घटना कुछ इस प्रकार है कि वाराणसी पुलिस को पिछले कुछ समय से इस प्रकार की इनपुट मिल रही थी कि दालमंडी नई सडक इलाके में बिल्डर्स के संपत्ति विवाद में कुछ अप्रिय घटना हो सकती है। इसको लेकर पुलिस लॉक डाउन-4 में काफी मुस्तैद रही। शहर के कई इलाको के लोगो से पुलिस ने पूछताछ किया। कई लोगो पर पुलिस की पैनी नज़र भी है। वाराणसी पुलिस किसी भी अप्रिय घटना होने के पहले ही घटना का निस्तारण करने में विश्वास रख कर काम कर रही है। इस दौरान दालमंडी के एक व्यवसाई को पूछताछ हेतु पुलिस की एक टीम लेकर चली गई थी। भाई किसी भी परिवार के लिए यह वाकई घबराने की बात हो सकती है कि क्या हुआ आखिर ? परिवार घबराया भी और इसकी जानकारी इकठ्ठा करने के लिए स्थानीय थाने और पुलिस चौकी पर संपर्क भी स्थापित कर रहा था।

परिजनों के साथ क्षेत्र के कुछ सम्भ्रांत नागरिक भी इसकी टोह लेने में जुटे थे कि आखिर हुआ क्या है। इसी बीच किसी ने पुर्व दालमंडी चौकी इंचार्ज महोदय जो वर्तमान में लाइन हाज़िर है को फोन कर डाला। इत्तिफाक से मैं खुद भी मौके पर था। अब पुलिस लाइन में पोस्टेड दरोगा जी ने तत्काल परिजनों को सलाह दे डाली कि तुरंत जाकर सब लोग चौक थाना घेर लो। इसके लिए उन्होंने कई बार खुद भी फोन कर डाला। मगर परिजन और क्षेत्रीय सम्भ्रांत नागरिक समझदार निकले और उन्होंने ऐसा कोई भी गैर कानूनी काम नही किया। सभी ने संयम से काम लिया और एक घंटे में ही पुलिस ने पूछताछ करके व्यवसाई को बाइज्ज़त घर तक पंहुचा दिया।

व्यवसाई से पूछताछ भी सही तरीके से हुई। किसी प्रकार की मारपीट अथवा बदतमीज़ी तक नही हुई। कोई अपशब्द तक प्रयोग में नहीं लाया गया। इसकी पुष्टि व्यवसाई ने स्वयं किया और इसके बाद व्यवसाई को उनके घर सकुशल बइज्ज़त पंहुचा दिया गया। इतनी देर में लाइन में पोस्टेड पूर्व चौकी इंचार्ज महोदय स्वयं मौके पर व्यवसाई के घर उपस्थित हो गए। मुह से रात अँधेरी हो जाने की महक फिजा को इत्तला कर रही थी कि मिजाज़ गर्म है। साहब ने पहले तो शांति अख्तियार रखा मगर फिर इसके बाद जो बोला तो वाह क्या बोला साहब, ज़बरदस्त। थाने का घेराव करवा कर थाना प्रभारी और वाराणसी पुलिस को बदनाम करने का मकसद फेल हुवा तो जमकर भडास सार्वजनिक रूप से थाना प्रभारी पर निकाल डाली।

शब्द भी ऐसे नुकीले की पूछे नहीं। वो इन्स्पेक्टर है तो मैं भी कुछ दिन में तीन तारे वाला हो जाऊंगा। फिर वो सीओ बनेगे। उसके बाद खयाली राम के पुलाव के तरीके से मैं भी सीओ बन जाऊंगा। मगर समझाऊंगा उनको ज़रूर। तीन जिले के कप्तान से अभी बात हुई है। अब तो मैं किसी इस्पेक्टर और सीओ से बात नही करता सीधे कप्तान से बात करता हु। वगैरह वगैरह….. उनकी बुलंद अलफ़ाज़ ख़ास तौर पर वहा मौजूद दो पत्रकारों को सुनाने के लिए अधिक दिखाई पड़ रहे थे। वैसे भी दरोगा जी के ऊपर उनके चौकी इंचार्ज रहते हुवे कई बार अपराधियों के सांठ गाँठ का आरोप लगा था। मगर मामला विभाग के स्तर पर दब जाता था। उनके अल्फाजो के आखिरी लाइन तो ज़बरदस्त थे। मुझको क्या है ? कप्तान से बात करूँगा और सीधे जहा चाहूँगा, चला जाऊंगा।

बहरहाल, वैसे तो दरोगा जी ने खुद के बल पर कोई बड़ा अपराधी अपने कार्यकाल में पकड़ा नही था। मगर इसका भी ठीकरा वो अपने उच्चाधिकारियों पर ही फोड़ रहे थे। साहब ने मुह से आती हुई मधुदुर्गन्ध बगल में बैठना मुश्किल कर रही थी। बहरहाल, व्यवसाई किसी को भगा तो सकते नहीं थे, तो सम्मान के साथ उनको फिर मिलने का निवेदन और खुद के खाना खाने और भूखे होने का संकेत दे रहे थे। मगर साहब तो मध के होश में थे। उनको मौका मिला था उनका खुद का गुणगान करने का। वैसे सोचने वाली बात ये है कि जिस प्रकार से मान्यवर व्यवसाई के परिजनों को थाना घेरने की सलाह दे रहे थे वह तो साफ़ साफ़ ज़ाहिर करता है कि दरोगा जी ने क्षेत्र को गर्म करने की सियासत रच डाली थी। अगर परिजन थाने का घेराव करते तो ये निश्चित था कि पुलिस लॉक डाउन के उलंघन की कार्यवाही ज़रूर करती। इसके बाद होता ये कि बात कही की कही और दरोगा जी पंहुचा देते क्योकि परिजनों पर कार्यवाही से जनता में असंतोष की भावना घर कर सकती थी। इसके बाद कुछ होता तो जवाबदेही थाना प्रभारी और क्षेत्राधिकारी की होती और शायद दरोगा जी यही चाहते रहे होंगे।

बहरहाल, परिजन पढ़े लिखे और समझदार थे। कानून की इज्ज़त करना जानते है तो दरोगा जी के चढ़ावे पर नही आये। उन्होंने कानूनी प्रक्रिया के तहत काम किया और कारोबारी को भी कोई एतराज़ ख़ास नही हुआ। सब कुछ ठीक है के तर्ज पर मामला खत्म हो गया। दरोगा जी के शब्द तो काफी कुछ रहे जिसको लिखा नही जा सकता है। मगर दरोगा जी ये शायद भूल गए थे कि वहा एक नहीं तीन पत्रकार है। पूरी 15 मिनट की वीडियो बनी हुई है। जय हो दरोगा जी। इतना मोह है कप्तान साहब दरोगा जी को इस कुर्सी का तो उनको दे दे साहब, कम से कम इसी बहाने क्षेत्र तो शांत रहेगा।

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