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पीएनयु क्लब कालातीत प्रकरण में तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – उफ़ ये सन्नाटा और फिर हंगामा है क्यों बरपा ?

तारिक आज़मी

वाराणसी. अमीरों के शौक की जगह पीएनयु क्लब, बड़े घरानों के युवाओ और बुजुर्गो के इकठ्ठा होकर मौज मस्ती की जगह पीएनयु क्लब। कहने को तो वाराणसी में और भी बड़े बड़े क्लब है जिसमे रोटरी क्लब, बनारस क्लब आदि है। मगर चर्चाओं में अकसर रहने वाला एक ही क्लब है वह है पीएनयु क्लब। कभी चुनाव को लेकर चर्चा तो कभी गुटबाजी की चर्चा, कभी गन शॉट की चर्चा तो कभी हंगामे की चर्चा। कभी एक दुसरे पर मुकदमेबाजी की चर्चा तो कभी बयानबाजी की चर्चा। गुरु सच बताये तो अक्सर मज़ा ही आ जाता है इन चर्चाओं को सुनकर। सबसे ज्यादा मजा तो तब आता है जब एक पक्ष के लिए दूसरा पक्ष बयानबाजी करने लगता है। न नियमो की जानकारी, न कानून की चिन्ता बस बयानवीर बनकर चंद सिक्के उछालो और समाज के सामने अपना बयान लाओ।

गुरु इन सबके बीच मुझे बड़ा मज़ा आ रहा है। जीते कोई भी। खरे जीते खरे खरे या फिर बड़े जीते बड़े बड़े। मगर कलमबाज़ी की कला देख कर लगता है कि मौज ही मौज है। अमीरों की इस लड़ाई में दौड़ाई भी कुछ हो रही है। आप इस बात पर तीन बार जोर जोर से हंस सकते है। हंसी न आये तो भी आप हंस लो। हंगामा तो ऐसा हो रहा है जैसे पद किसी का न गया हो बल्कि रियासत पर किसी दुसरे रहनुमा ने कब्ज़ा कर लिया हो। बस मेरे समझ में एक बात नही आती है कि पद की इतनी प्रतिष्ठा की बात क्यों है ? कई पदाधिकारियों का नाम सुना है। सबका अच्छा सामाजिक रुतबा है। बढ़िया कारोबार है। पैसो और ऐश-ओ-इशरत की कमी नही है। फिर भी आखिर पद की इतनी लालच क्यों है ? सच में आम जनता से इसकी जाँच करवाना चाहिए कि आखिर इस पद का फायदा क्या है जो व्याकुलता है। व्याकुलता की स्थिति ऐसी है कि एलएमएल वेस्पा एक किक में स्टार्ट हो जाती जाये और भुर्रभुर्र करके दुई पुल पार कर जाये। आप इस बात पर भी तीन बार जोर से हंस सकते है। या फिर तीन तीन बार दो मर्तबा हंस सकते है सोच के कि वेस्पा आज भी स्टार्ट हो जाती है और जाँच आम जनता करेगी।

बहरहाल, वैसे इस क्लब में तीन गुट है। एक गुट जो यहाँ के प्रबंधक संजय खरे का धुर विरोधी है। दूसरा गुट जो संजय खरे का समर्थक है। वही तीसरा गुट भारी होकर केवल मूकदर्शक की स्थिति में रहता है। वैसे तो इन दो गुटों के अन्दर आपसी तीर कमान वर्ष 2015 से तनी हुई है। लम्बी चौड़ी बयानबाजी के बीच कलमबाज़ी का कलाकार भी मौजूद रहते है। इनको कलमकार की जगह कलमबाज़ कहे तो कोई गलत नहीं कह रहे है। क्योकि नियमो कानून को धरो किनारे, सबसे बड़े है प्यारे हमारे।

बहरहाल, निदेशक के द्वारा पीएनयु क्लब के 2016 से लेकर अब तक की कमेटी को कालातीत किये जाने के बाद से गुटों के बीच वाक्य युद्ध शुरू हो चूका है। सूत्र बताते है कि जहा एक पक्ष जो खुद की जीत पर जश्न की जगह दुसरे चुनाव हेतु सदस्यों की लिस्ट तैयार करने में लगा हुआ है। बकाया भुगतान किया जा रहा है। एनओसी लिए जा रहा है। वही दूसरा गुट बयानबाजी में लगा हुआ है। तीसरा मूकदर्शक गुट इस मामले में मध्यस्तता करने को तैयार बैठा है। मध्यस्तता हेतु बड़े संभ्रांतो के नामो का भी एलान हो रहा है जिनको मानने के लिए जीत हासिल करने वाला गुट तैयार है वही दूसरा गुट जो बयानबाजी में लगा हुआ है के द्वारा सोचने का समय माँगा गया है।

इसमें खरे साहब खुश है क्योकि वह खरी खरी कहते है। बड़े साहब खुश है क्योकि वो कैमरों पर बड़ी बड़ी कहते है। दोनों पक्ष खुश है मगर हंगामा बरपा है साहब। क्योकि कोई किसी को चित करने पर तुला हुआ है तो कोई किसी और को चित कर रहा है। कोई ऐसा भी है कि अपना ही चित करने में तुला हुआ है। बस चल रहा है हंगामा है बरपा।

इसी बयानबाज़ गुट के तरफ से बयानों का सिलसिला जारी है। भले ही उनके खुद के बयान हँसाने का एक बढ़िया जरिया बने हुवे है, मगर बयान देने में क्या है साहब, दे देते है। आप खुद सोचे निदेशक के द्वारा जारी आदेश एक अदालती प्रक्रिया के तहत आता है। अदालती प्रक्रिया के बाद जारी आदेश के मुखालफत के लिये कानूनी तरीके से सक्षम न्यायालय बना हुआ है। जहा आप अपनी बातो को रखते हुवे किसी आदेश को पूरी तरह गलत बता सकते है। मगर इसी आदेश का विरोध आप सार्वजनिक नही कर सकते है।

मगर नियमो का क्या है साहब, बड़े लोग बड़ी बाते। वो तो सीधे सीधे सामने से बयानबाजी में ही विरोध ज़ाहिर कर डालेगे। मीडिया ट्रायल तक करवा डालेगे। कोई क्या कर सकता है। कुछ भी नहीं कर सकता है। इतिहास की गवाही अगर देखे तो पीएनयु क्लब केवल और केवल अपने विवादों के कारण ही सुर्खियों में रहता है। आखिर समझ से परे आम जनता के लिए जो बात है वो ये है कि अच्छे खासे खुद को संभ्रांत कहने वाले, पढ़े लिखे, अमीर घरानों से सम्बंधितो को आखिर पद की इतनी लालसा क्यों है। क्लब के नियमो के अनुसार किसी पदाधिकारी को कोई विशेष आर्थिक अथवा सामाजिक लाभ तो नही मिलता है। उलटे जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। फिर वो अध्यक्ष हो या फिर अन्य पदाधिकारी। आखिर पद की इतनी लालसा क्यों है ?

कई अन्य भी सम्मानित क्लब वाराणसी में कार्य कर रहे है। मगर किसी के चुनाव में इतना हंगामा नही होता है। कई अन्य बड़ी संस्थाये भी है। वह भी सम्मानित है। उनके भी चुनाव होते है। मगर उसके लिए भी कोई हंगामा नही होता। आप खुद सोचे किस क्लब अथवा संस्था के लिए हारे हुवे अथवा गुटों में तकसीम सदस्य मुकदमेबाजी करते है ? शायद किसी भी अन्य जगह ऐसा नही होता है। मगर एकलौता शायद ऐसा क्लब है पीएनयु जहा एक पक्ष की जीत पर दूसरा पक्ष नाराज़ हो जाता है। नाराज़गी भी छोटी नहीं बड़ी बड़ी नाराज़गी रहती है। कहा जा सकता है कि हंगामा होने लगता है। शायद इसी जगह हमारा सवाल भी अधुरा है कि हंगामा है क्यों बरपा……………

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