तारिक़ आज़मी
उत्तर प्रदेश के पुलिस मुखिया कई बार अपने अधिनस्थो को आदेश दे चुके है कि पत्रकारों के मामले को संजीदगी से देखा जाए। उनको सही तवज्जो दिया जाए। उन्हें सम्मान दिया जाए। मगर उत्तर प्रदेश पुलिस है कि वह अपनी मनमानी पर ही उतारू रहती है। इसी मनमानी का एक जीता जागता उदहारण है बलिया के फेफना में हुआ पत्रकार हत्याकांड। मगर शायद मुरादाबाद की पुलिस है कि इससे भी सबक नही ले रही है। वैसे तो प्रभाकर चौधरी की गिनती प्रदेश में सख्ती से काम करवाने वाले आईपीएस में होती है। मगर मुरादाबाद पुलिस के एक इस्पेक्टर शायद उनकी भी आँखों में धुल झोकने का प्रयास कर रहे है।
जब पत्रकार अपनी जाँच के सिलसिले में क्षेत्राधिकारी के सम्पर्क में पंहुचा तो पता चला कि पत्रकार को अपराधी थाना प्रभारी जी घोषित कर चूके है। अब पत्रकार दर दर ठोकर खा कर खुद की सफाई दे रहा है कि सम्पत्ति विवाद में उनके ही एक परिचित में उक्त सभी फर्जी मुक़दमे किये थे, मगर अदालत ने उन सभी मामलो में उसको बैज्ज़त बरी कर दिया है। समस्त आदेशो की कापी कप्तान साहब को दिया जा चुका है। वही थाना प्रभारी दबंग अपराधी की तरफदारी करते दिखाई दे रहे है और पत्रकार को ही उल्टा अपराधी कह रहे है। अब पत्रकार को खुद नहीं समझ आ रहा है कि क्या इस्पेक्टर साहब न्यायालय के आदेश से बड़े है या फिर वो अदालत के फैसले को नहीं मानते और खुद को ही सबसे बड़ा जज और अदालत समझ रहे है।
बहरहाल, पीड़ित पत्रकार इन्साफ की तलाश में दर बदर है। उसको ये खौफ भी है कि दुर्दांत अपराधी उसकी हत्या कर सकता है। साथ में एक और डर भी है कि उसको झूठे मामले में फंसाया भी जा सकता है। वही इन्साफ के लिए उम्मीद भी है कि क्षेत्राधिकारी अपनी जाँच में इन्साफ उसको दिलवायेगे।
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