नही रहे मनरेगा कानून के शिल्पकार रघुवंश प्रसाद सिंह, AIIMS में लिया आखरी सांस

तारिक़ खान

नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में 74 साल की उम्र में निधन हो गया। दो दिन पहले ही उन्होंने चिट्ठी लिखकर लालू प्रसाद यादव को पार्टी से अपना इस्तीफ़ा भेजा था। इस पत्र के जवाब में लालू प्रसाद ने भी चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि रघुवंश बाबू आरजेडी से बाहर कहीं नहीं जाएंगे।

11 सिंतबर की रात को 12 बजे के आस-पास उनकी तबीयत ख़राब हुई और फिर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। जून में वे कोरोना से संक्रमित हुए थे। हालांकि कोरोना से वो ठीक हो गए थे लेकिन सिंतबर की शुरुआत में उन्हें कई दिक़्क़तें शुरू हुईं। पिछले एक हफ़्ते से वो दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे।

रघुवंश प्रसाद सिंह ने दिल्ली में एम्स के बिस्तर से ही चिट्ठी लिखकर अपना इस्तीफ़ा भेजा था। लेकिन पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने उनका इस्तीफ़ा अस्वीकार करते हुए लिखा था कि ‘आप कहीं नहीं जा रहे।’ रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन पर लालू यादव ने ट्वीट कर कहा है, ”प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है। लेकिन आप इतनी दूर चले गए। नि:शब्द हूँ। दुःखी हूँ। बहुत याद आएँगे।”

रघुवंश प्रसाद सिंह यूपीए एक में ग्रामीण विकास मंत्री थे और मनरेगा क़ानून का असली शिल्पकार उन्हें ही माना जाता है। भारत में बेरोज़गारों को साल में 100 दिन रोज़गार मुहैया कराने वाले इस क़ानून को ऐतिहासिक माना गया था। कहा जाता है कि यूपीए दो को जब फिर से 2009 में जीत मिली तो उसमें मनरेगा की अहम भूमिका थी।

रघुवंश प्रसाद सिंह अपनी सादगी और गँवई अंदाज़ के लिए भी जाने जाते थे। वो मुश्किल वक़्त में भी आरजेडी और लालू प्रसाद यादव से दूर नहीं हुए। दूसरी तरफ़ आरजेडी के कई सीनियर नेता 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी की हार के बाद पाला बदलकर नीतीश कुमार के साथ आ गए थे। शिवानंद तिवारी और श्याम रजक जैसे नेता भी नीतीश कुमार के साथ चले गए थे।

रघुवंश सिंह के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि वो अगड़ी जाति के होते हुए भी पिछड़ी जाति की राजनीति में कभी मिसफिट नहीं हुए। रघुवंश सिंह आरजेडी में सबसे पढ़े-लिखे नेताओं में से एक थे। रघुवंश सिंह बिहार के वैशाली लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव लड़ते थे। हालांकि पिछले दो चुनावों से वो हार रहे थे।

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