किसान आन्दोलन – कृषि कानूनों की वापसी से कम पर किसी विकल्प पर विचार को नहीं है किसान तैयार

संजय ठाकुर

नई दिल्ली. किसान आन्दोलन बदस्तूर जारी है। आज किसान आन्दोलन के दरमियान एक किसान ने कथित रूप से आत्महत्या कर लिया। किसान के आत्महत्या करने की खबर ने सुर्खियाँ बटोरी और मौके से बरामद सुसाइड नोट में किसान ने लिखा था कि उसका अंतिम संस्कार धरना स्थल के आसपास ही हो।

वही किसानों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को हुई छठे दौर की बैठक के दौरान सरकार ने यह प्रस्ताव रखा था कि वे कोई ऐसा विकल्प पेश करें जिसमें तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के बिना भी किसानों के संपूर्ण हितों की रक्षा की जा सके। यानी सरकार चाहती है कि वह कानूनों को वापस लेते हुए भी न दिखे और बदलावों के जरिए किसानों की मांगों को भी पूरा कर दिया जाए।

इस प्रकार सरकार इसे दोनों पक्षों की जीत बताकर अपनी साख भी बरकरार रख सकेगी। लेकिन खबर है कि किसानों के बीच कानूनों में बदलाव की किसी ऐसी संभावना पर सहमति नहीं बन पा रही है और सभी किसान संगठन इस बात पर एकमत हैं कि कानूनों की वापसी से कम किसी विकल्प पर विचार नहीं किया जाएगा। यानी अगले दौर की वार्ता में सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली बैठक के दौरान किसान नेताओं को यह कहकर अपने पक्ष में जोड़ने की कोशिश की थी कि किसानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। सरकार जमीनी बदलाव कर किसानों की स्थिति ठीक करना चाहती है। इसके लिए कुछ बड़े बदलाव किए गए हैं, लेकिन अगर किसान नेता सरकार की सोच से सहमत नहीं हैं तो वे स्वयं ही ऐसे प्रस्ताव पेश करें जिसको अपनाकर किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सके। उन्होंने किसान नेताओं को यह भरोसा दिया था कि उनके सभी सुझावों को पूरी गंभीरता के साथ सुना जाएगा और उसे नए कानून में जगह दी जाएगी।

दरअसल, सरकार की रणनीति है कि इस प्रकार किसानों के सुझावों को वर्तमान कानूनों में जगह देकर उनके विरोध को खत्म किया जा सकेगा। इस तरह कानून का विरोध विपक्षी दल भी नहीं कर पाएंगे और आने वाले चुनावों में इसका विरोध नही किया जा सकेगा। इससे उसको राजनीतिक नुकसान भी नहीं होगा। लेकिन सरकार की यह रणनीति सफल होती नहीं दिख रही है क्योंकि बदलावों को लेकर आज तक किसानों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी है। अगली वार्ता 4 जनवरी को होनी प्रस्तावित है।

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