तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – मुस्कुराये नही जान कर ठहाका लगाये, आप लखनऊ में है……!  कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा, फिर वही हम वही अमीनाबाद

तारिक़ आज़मी

आज लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश और सिटी मजिस्ट्रेट शशिभूषण के बीच लखनऊ के दिल समझे जाने वाले पुराने लखनऊ के रूमी दरवाज़े के सामने खुलेआम गालीगलौज हुई। इसको आप जूतम पैजार जैसे लफ्जों से भी नवाज़ सकते है। बताया जा रहा है कि इस घटना से आहात शशिभूषण छुट्टी पर चले गए है। अदब-ओ-एहतराम, तहजीब-ओ-तमीज की नगरी जिसको आप तहजीब का मरकज़ भी कह सकते है में हुई ये घटना जहा चर्चा का विषय बनी हुई है वही हमारे काका बड़ा परेशान है। हम उनसे परेशानी का सबब पूछा तो बोले, “बबुआ लखनऊ में कहते थे कि मुस्कुराइये, आप लखनऊ में है। मगर कैसे मुस्कुराये ई नही समझ आ रहा है। का ठहाका लगा के हंसा जा सकता है ई घटना पर?”

हकीकत भी तो है बात में। आपने कभी किसी डीएम और सिटी मैजिस्ट्रेट को आपस में जूतम-पैजार और धधकती नंगी गालियों का सस्वर आदान-प्रदान करते कभी सुना है आपने ? नही सुना है, नही देखा है तो आइए, तशरीफ़ लाइये, तहजीब-ओ-तमीज और अदब-ओ-एहतराम वाली नवाबों नगरी राजधानी लखनऊ में। यहाँ ये सीन हो चूका है। रीप्ले होने की संभावना एकदम शुन्य है क्योकि सिटी मजिस्ट्रेट साहब छुट्टी पर चले गए है ऐसा सुना जा रहा है।

जगह थी भूलभुलैया के सामने रूमी दरवाजा का, जहां यूपी के यह अफसर अपनी मर्यादा भूलना छोड़े साहब, तहजीब और तमीज भी नही रही उलटे ये भी न देखा कि जगह सार्वजनिक है। सोशल मीडिया पर चल रही खबरों ने और भारत समाचार ने इस खबर को बड़ी ही प्रमुखता से उठाया। इस खबर में उन्होंने शशिभूषण राय को जहा ग्राउंड पर काम करने वाला बताया वही डीएम को परिक्रमावादी आकडे वाला बताया है। मिल रही जानकारी के अनुसार सिटी मजिस्ट्रेट ने शासन से जिलाधिकारी पर कार्यवाही के लिए पत्र लिखा है और छुट्टी पर चले गए है।

बताया जा रहा है कि आज लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश और सिटी मैजिस्ट्रेट शशि भूषण ने एक-दूसरे को मां-बहन और बेटी तक की खुली और अनावृत्त गालियां बकीं। आप सोचे “मुस्कुराइये का सबब यहाँ गरियाईये बन चूका था। गुस्से का करंट इतना था कि दोनों अधिकारी एक दुसरे को जूते लेकर चढ़ बैठे थे। वो तो गनीमत था कि दोनों ने अपना जूता किसी को थमाया नही वरना सदियों तक उसको जूते खरीदने की ज़रूरत न पड़ती।

वैसे घटना के बाद तो काफी चर्चाये रही। खूब बतकही हो रही है। जिनको बाहर की जानकारी है वह उसको लेकर बतिया रहा है, कुछ भीतर के जानकारी रखने का दावा करने वाले ढेर बतिया रहे है। अरे भाई ठीक है। आप समझे बात को। असल में मानव पहले बंदर था। उसके बाद जब बंदर से मानव बने तो जंगली थे। जंगल का कानून लड़ना झगड़ना है। तो उस समय खूब लड़ते झगड़ते थे। मगर धीरे धीरे सभ्य होने की बाते भले हम करे, मगर हर गली नुक्कड़ पर जंगल की वो आदत दिखाई दे जाएगी।

वैसे सबसे ढेर बतिया रहे है कलेक्ट्रेट की जानकारी रखने वाले लोग। उनकी तो बतिया भी बड़ी निराली दिखाई दे रही है। एक ने बतियाया कि ऊ हुआ अईसे की बडकऊ और चुटकऊ में ठनी बहुते दिन से रही। बड़कऊ तनिक ढेर मिजाज के रहे। तो आज बात शुरू हुई तो छुट्कऊ भी कम नाही पड़े और जमकर बड़कऊ की बडकई निकाल दिहिन। एक मिले बतियाने वाले तो ऊ अलगे राग बतिया गए। कहिन की लखनऊ के बड़कऊ ने बदतमीजी की इम्तिहाँ कर डाली थी। मगर आज छुटकऊ ने कुल बदतमीजी का जवाब दे डाला। वैसे चर्चा वाली बतिया तो ईहो है कि खाली बिल्डिंग तोड़ो संपत्ति नेस्तनाबूत करो के बाद तनिक दूर तक अब बात पहुच गई रही। तो आखिर होई गवा जो होना रहा। उमना तनिक ढेर ई बार हो गवा।

बहरहाल, हंसी मजाक अपनी जगह है। इस घटना का मजाक उड़ता ही रहेगा क्योकि शायद ऐसी घटना सदियों में एक भी न होती हो। लड़ाई झगड़ा और ताना तानी सबके साथ लगी रहती है। चाहे वो हम हो या आप। कुछ नही मिलता इंसान को तो सुबह सुबह डरावना सपना देखा कर अपनी पत्नी से ही लड़ जाता है। मगर मर्यादा या फिर तहजीब भी कुछ होनी चाहिए। अपने शहर के अधिकारियो से युवा पीढ़ी इबरत हासिल करती है। काफी ऐसे आईएएस और आईपीएस अधिकारी है जो नवजवानो के रोल मॉडल है। मगर इस घटना के बाद रोल माडल नवजवान किसको बनायेगे ? मुस्कुराए कि आप लखनऊ में है।

इस शहर की अजमत इसकी अपनी कशिश लफ्जों में बयाँ करने के लिए एक शायर यागाना चंगेजी का शेर है कि “कशिश-लखनऊ अरे तौबा। फिर वही हम वही अमीनाबाद।इस शेर में लखनऊ की कशिश को समझा जा सकता है। शायद भी कोई छोटे नही बल्कि बड़े शायर का शेर है। मगर इस तहजीब की नगरी में इस तरीके के वाक्यात वाकई में एक लफ्ज़ में समेटे जा सकते है कि “कमाल है मियाँ…….!”

हालांकि इस मामले में जब जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश से बात की गई तो उन्होंने कोई भी विवाद ना होने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह आज इमामबाड़ा गए ही नहीं। बाकी कल, परसों वैक्सीनेशन सेंटर के दौरे के दौरान उन्होंने व्यवस्था, अव्यवस्था को लेकर ही अधिकारियों से कहा, सुना है। बाकी किसी से उनका विवाद नहीं हुआ। उधर, सिटी मजिस्ट्रेट से जब इस मामले में पक्ष जानना चाहा गया तो उनका फोन नहीं उठा।

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