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पढ़े बड़ा खुलासा – लोहता में कुछ सरदार जारी कर रहे तुगलकी फरमान, कानून को ताख पर रख जारी करते है अपना आदेश (अंतिम भाग)

तारिक आज़मी

वाराणसी। हमने अपने पिछले दो अंको में बताया कि किस तरह से पंचायत के नाम पर खुद का दबदवा कायम रखने के लिए कुछ सरदार लोग असंवैधानिक तौर पर कार्य कर रहे है। हमने आपको एक नही बल्कि लोहता क्षेत्र के तीन उदहारण दिए है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर लोहता पुलिस इस प्रकार के मामले में क्या कर रही है ? बेशक आपका सोचना जायज़ है। तो आपको इसका भी साफ़ साफ़ ईमानदारी का जवाब देते चलते है।

बेशक लोहता थानाध्यक्ष के कार्यशैली और उनकी ईमानदारी तथा अनुभव बेदाग़ है। उनके तक बात पहुच ही नही पाती है। क़स्बा चौकी इंचार्ज ने खुद की पुलिस चौकी को एक अधिवक्ता के निजी चेंबर तक सीमित रख रखा है, मामला इन्हों दरोगा जी तक सीमित हो जाता है। पुलिस को प्रकरण की जानकारी तक नही होती है। तो आखिर पुलिस कोई कार्यवाही कैसे करेगी ? जो मामला थानाध्यक्ष तक पहुच जाता है उसका निष्पक्ष निस्तारण होता है। फिर सामने वाला जो गलत है वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कार्यवाही निश्चित है कि होनी ही है। एक उदहारण से आप हमारी बात को समझ जायेगे।

घटना कुछ महीनो पहले की है। लोहता थाना क्षेत्र के भर्थरा महमूदपुर गाव में एक मासूम बच्ची से अनैतिक कृत्य एक युवक ने किया था। इस घटना को दबाने का काफी प्रयास किया जा रहा था। स्थानीय खुद को सरदार कहने वाले एक सज्जन ने पंचायत कर मामले को निपटाने की कोशिश भी किया। थाने के एक साहब और एक अन्य सज्जन भी थाने के बाहर ही मामले को निपटाना चाहते थे। शायद मामला निपट भी गया होता और इंसाफ एक कमरे के अन्दर हो जाता। मगर ये इन्साफिया इंकलाबियो का शायद नियत समय ठीक नहीं था।

घटना में पीड़ित परिवार थाने पर आया था मगर उस समय थानाध्यक्ष क्षेत्र में गश्त के लिए निकले थे। परिजन वापस जा रहे थे कि अचानक थानाध्यक्ष कुछ कार्य हेतु वापस थाने पर आ गये। पीड़ित परिवार से उनकी मुलाकात हुई और तत्काल तहरीर लेकर मामले में मुकदमा दर्ज करवाया। गश्त में जाने के पहले ही कार्यवाही हुई और आरोपी सलाखों के पीछे गया। आप अब खुद समझ सकते है कि कार्यवाही क्यों नही होती है। कोई अगर थानाध्यक्ष पर आरोप लगाये तो मेरी नजर में बकवास बात होती है।

आपको महज़ तीन मामले बताये है। मामले तो ऐसे कई है जिसको जानकार आप दांतों तले उँगलियाँ दबा लेंगे। हम फिर कहते है कि समाज की भलाई के लिए हम वक्त की कब्र में दफन हो चुके मामलो पर कोई बात नही करना चाहते है। हमको भी ढंग से पता है वर्ष 2012-13 में हुई मदरसा फैजुल उलूम में “पनिया भरन के वास्ते” की पंचायत जिसमे अजीबो गरीब पंचायत करके एक हीलियस क्राइम को मजाक में उड़ा कर ठंडा कर डाला गया था। किसी दोषी को कोई सजा मिलना तो दूर रही पंचायत में किसी ने भी इस कांड की आलोचना तक नही किया था। न शर्म और न लिहाज़ किये बिना पंचायत हुई थी और पीड़ित को ही समझा दिया गया था। सभी आरोपी बड़ी मस्जिद आलवाल के थे।

आज उस पंचायत के सरदार साहब लोग और पञ्च लोग उस पीड़ित बालक का हाल नही लिए होंगे। कारण है कि अपना काम बनता और भाड़ में जाये जनता। इस कांड में सूत्रों से मिली हमको जानकारी के अनुसार पीड़ित के दिल दिमाग में इस घटना का ऐसा असर हुआ था कि वह मानसिक विक्षिप्त हो गया है। बेशक पंचाईतियो पर कोई सवाल उठाने वाला आज नही है। सवाल उठा कर अपने सर पर मुसीबत कौन मोल लेगा ? किसको “टाट बाहर” होना है। आखिर सबको तो क्रांतिकारी अपने घर में नही पडोसी के घर में चाहिए होता है। मगर हमको इसकी फ़िक्र नही है कि ये पंचाईतिया मुझे “टाट बाहर” करने का फरमान सुना देंगे अथवा मुझ पर फतवा लगवा देंगे।

बेशक मुझे इनकी न तो “टाट” से मतलब है और न इनके फतवों का मेरे ऊपर असर पड़ता है। इनकी टाट से ज्यादा साफ़ सुथरी और बेदाग़ मेरी दरी ही सही। मुझको टाट बाहर करने का फरमान जारी करने वालो के बगल में मैं दरी बिछा कर बैठ जाऊंगा। उनके टाट के लोग भी मेरी साफ़ दरी पर आ जायेगे। सरदारी का प्रचलन बिरादरी और तंजीम की भलाई के लिए आया था। खुद अंगूठा लगा कर काम चलाने वाले लोग शिक्षा के ऊपर क्या ज्ञान देंगे।

महकमा भी तो नही पूछता है अपने लोगो के बारे में

पुलिस विभाग में कार्यवाहिया बड़ी बड़ी होती रहती है। मगर रूलर इलाको में खुद का साम्राज्य स्थापित कर लेने वाले पुलिस कर्मियों को महकमा भी नही पूछता है। अब उदहारण के लिए खुद देख ले। लोहता थाने पर एक वर्ष पूर्व पोस्टेड हुवे एक दरोगा जी जो वर्ष 2015 के बैच के दरोगा है मात्र एक वर्ष इस थाने पर पोस्टिंग के दरमियान ही इस इलाके से इतनी मुहब्बत करने लगते है कि एक बिस्वा ज़मीन खरीद लेते है। दरोगा जी ने विगत दो-तीन हां पूर्व ही लोहता थाना क्षेत्र के भट्टी इलाके में सेंट जोन्स स्कूल के पास एक बिस्वा ज़मीन 30 लाख रुपया की कीमत पर खरीदी है।

हम यहाँ ये नही कहते है कि आय से अधिक संपत्ति दरोगा जी ने रख रखा है। अथवा उनके किसी भी चाल चरित्र पर उंगली या सवाल तो उठाने की हिम्मत नही करना चाहियेगे। मगर हम मान लेते है कि पुश्तैनी संपत्ति को बेच कर दरोगा जी के पास पैसे आये होंगे। मगर हमारा एक सवाल है कि 30 लाख में कई अन्य इलाको में दरोगा जी संपत्ति खरीद सकते थे। रोहनिया से लेकर मंडुआडीह तक में जगह उनको मिल जाती और बढिया लोकेशन मिलती। मगर दरोगा जी को आखिर कौन सी ऐसी विशेष मुहब्बत लोहता क्षेत्र से हो गई है कि इसी इलाके में ज़मीन खरीद लिया। खुद उनके थानाध्यक्ष काफी बड़ा अनुभव रखते है। काफी सर्विस कर चुके है। कई ज़िम्मेदारी के पद पर रह चुके है। मगर आज तक एक ढंग की बढ़िया क्वालिटी की तीन चार लाख की झोपड़ी न खरीद पाए।

वैसे दरोगा जी हमारा कहने का मतलब आप गलत न समझे। हम समझ सकते है कि दरोगा जी कि विशेष मुहब्बत इस थाना क्षेत्र से हो चुकी है। वैसे इस ज़मीन की जानकारी मुझको कैसे मिली दरोगा जी सोच रहे होंगे। तो बता देते है कि साहब उसी ज़मीन के ब्रोकर ने जानकारी दे डाली जिसने ज़मीन दिलवाई और उसको ब्रोकरेज भी नही मिली। वैसे अभी इस मामले में रजिस्ट्री अमाउंट में घटतौली की बात हम नही कर रहे है, वो बात तो बहुत दूर तक जाएगी।

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