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बनारस में जायके का सफ़र शाहीन बनारसी और ए0 जावेद के संग : “शा चिकन हट” जैसा बिरयानी का ज़ायका कही नहीं 

शाहीन बनारसी संग ए0 जावेद

वाराणसी। हम अपनी सिरीज़ के तहत बनारस के मशहुर दुकानों के खान-पान से सम्बंधित आप सबको जानकारी देंगे। अपने अल्हड-मस्ती के लिए मशहूर बनारस ज़ायके का भी एक बड़ा नाम है। हम खाने-पीने के लिए इतने मशहुर है कि हमारी सुबह कचौड़ी और जलेबी से होती है, शाम बाबा की ठंडई, और रात शकील की चाय से होती है। पप्पू की अडी पर बहस न हो तो रात का खाना ही हजम नहीं होगा। हम बनारसी है, खाने-पीने के पुश्तैनी शौकीन है। मुनव्वर राणा ने शेर कहा कि “किसी के पास है जितना, उतना छोड़ आया हूँ” तो असल में वह हम बनारसियो के लिए ही कह रहे थे, मगर लोग उसको मुहाजिर के लिए समझ बैठे।

बहरहाल, ये बात हमने बस यूँही लिख दी। और कोई बात नहीं है। अगर हमारे पास भी काका होते तो इसी बात पर खूब लम्बी-चौड़ी बात लिख डालते। मगर काका सबको कहाँ मिलते है। ज़ायके की तलाश में आज हमने अपना पहला सफ़र अपने सहयोगी ए0 जावेद के साथ शुरू किया। हमारे जावेद भाई बहुत ही सज्जन व्यक्ति है। और मुझे अपनी छोटी बहन मानते है। सबसे बड़ी बात ये है कि उनकी गाड़ी में न कभी तेल ख़त्म होता है। और न कभी भरवाना पड़ता है। बहरहाल, आज हम अपने ज़ायके के पहले सफ़र के लिए नई सड़क का रुख कर बैठे। शाम की छोटी वाली भूख हमको सता रही थी। हम नई सड़क से खजूर वाली मस्जिद को जाने वाले रास्ते पर थे। अमूमन इस इलाके को आस-पास के इलाकाई लोग इसका असली नाम कसाई मोहल्ला न कहकर इसे यहाँ की मोहब्बत से सराबोर होकर प्रेमनगर के नाम से पुकारते है। और ये मोहब्बत कुछ इस तरीके की दिखी कि मोहल्ले का नाम कसाई मोहल्ला है, ये पता करने में हमको बीसों कॉल करनी पड़ गई। तो हम भी अब इसको इसी नाम से पुकारते है यानि प्रेमनगर। यहाँ स्थित शा चिकन हट रेस्टोरेंट में हम पहुँच गये।

हमें जोरो की भूख लगी थी। हमारे पेट के चूहे अब कबड्डी खेल रहे थे। आंते तो कुल्होअल्लाह पढ़ रही थी। हमने वहां पहुँचते ही बिरयानी का आर्डर दिया। मगर आर्डर देने पर भी हमसे पूछा गया कि कौन सी बिरयानी चाहिए। हम बड़े कंफ्यूज़ हुए तो उन्होंने हमे बिरयानी का नाम बताते हुए कहा कि चिकन टिक्का बिरयानी, मटन बिरयानी, शाही बिरयानी क्या चाहिये ? तो हमने शाही बिरयानी का आर्डर दे दिया। आर्डर देने पर हमारे मेज पर शाही बिरयानी आई। जिसकी खुशबु से हमारी भूख और बढ़ चुकी थी। हमारे पेट में तो पहले से ही चूहे कबड्डी खेल रहे थे। तो हमने भी खाने में देरी नहीं की और बिरयानी खाना शुरू कर दिया। शाही बिरयानी वाकई “टेस्ट में बेस्ट” थी। हमने अपनी भूख से ज्यादा ही बिरयानी खा लिया था।

काउंटर पर बिल का भुगतान करते वक्त हमने ध्यान दिया कि कोविड पालिसी का पूरी तरह पालन किया जा रहा था। अन्दर आते ही वाश बेसिन पर कोरोना को “पम्प+रब+छू” करने का फार्मूला रखा था। काउंटर पर सेनेटाइज़र था। मास्क भी वहा रखे हुवे थे। अगर किसी कस्टमर के पास मास्क नही है तो यहाँ सर्जिकल मास्क मुफ्त में उपलब्ध था। हमने अपनी पैनी नज़र इस रेस्टुरेंट के किचेन पर डाला। साफ़ सफाई का पूरा इंतज़ाम दिखाई दिया। यहाँ तक कि कुक हाथो में ग्लब्स पहनकर काम कर रहे थे। सब मिलाकर घर जैसी सफाई के साथ शाही बिरयानी का ज़ायका वाकई लाजवाब था।

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