सिर्फ संयोग या फिर दुहरा रहा है खुद को इतिहास : कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकता है लखीमपुर कांड, लखीमपुर जाती प्रियंका में दिखाई दी लोगो को बेलछी कांड में पीडितो से मिली इंद्रा गांधी की झलक

तारिक़ आज़मी

लखीमपुर खीरी की घटना के बाद सबसे पहले किसी सियासी शख्सियत ने आवाज़ बुलंद किया तो वह थी प्रियंका गांधी। 3 अक्टूबर को प्रियंका गांधी को लखीमपुर खीरी जाने से रोकने के दरमियान जो तेवर प्रियंका गांधी के दिखाई दिए वह इंद्रा गांधी की याद को ताज़ा करवा गये। कांग्रेसजनों में प्रियंका के रूप में इंद्रा गांधी को देख कर एक स्फूर्ति दिखाई दे रही है। यह महज संयोग है या फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा है कि तीन अक्टूबर को गांधी परिवार के दो महत्वपूर्ण शख्स गिरफ्तार हुए हों। तीन अक्तूबर 1977 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था और इसी दिन उनकी पोती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की पुलिस ने हिरासत में लिया। वे लखीमपुर खीरी जाकर  मृतकों के परिजनों और अन्य किसानों से मिलना चाहती थीं लेकिन प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें जाने की इजाजत नहीं दी। प्रियंका को अब भी पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा है।

दोनों गिरफ्तारियों में फर्क बस इतना है कि प्रियंका गांधी को पुलिस ने लखीमपुर खीरी कांड के बाद वहां जाते समय समय सीतापुर में हिरासत में लिया था। जबकि इंदिरा गांधी को अधिकार के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप में दिल्ली में गिरफ्तार किया गया था। इंदिरा पर चुनाव प्रचार में खरीदे वाहनों को लेकर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। हालांकि अगले दिन कोर्ट में जब उन्हें पेश किया गया तो उनके खिलाफ कोई ठोस सुबूत पेश नहीं होने से कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। इस बार भी स्थिति थोडा उससे मिलती जुलती है जब प्रियंका गाँधी को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ़्तारी के पूर्व प्रियंका ने जो तेवर दिखाए है वह उनकी दादी इंद्रा गांधी की यादो को ताज़ा करवाने में काफी हद तक कामयाब रहा है। दादी और पोती दोनों की गिरफ्तारी के इस सयोग पर पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि “तीन अक्टूबर 1977 में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी से जनता पार्टी सरकार के पतन की शुरूआत हुई थी। अब उसी दिन यानी तीन अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी से देश में भाजपा सरकार के अंत की शुरूआत हो गई है।

बेलछी से मिली थी इन्द्रा गाँधी और कांग्रेस को संजीवनी

आपातकाल लागू होने के बाद देशवासियों के प्रतिशोध ने 1977 में इंदिरा गांधी को केंद्र की सत्ता से बेदखल कर दिया था। देश में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार चल रही थी। सरकार को बने नौ महीने हो गए थे। बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले थे, तभी बिहार में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी। चुनाव से कुछ दिन पहले ही हथियारों से लैस कुर्मियों के गिरोह ने बेलछी गांव पर हमला बोल दिया। यहां घंटों गोलीबारी हुई और 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया। इस खबर देश भर में जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। हर तरफ इसकी निंदा होने लगी। सियासी दल अपने अपने बयानों को जारी कर रहे थे। इंद्रा गांधी और कांग्रेस दोनों ही बैक फुट पर इसके पहले थी। बुरी हार झेली कांग्रेस अपनी ज़मीन नही तलाश पा रही थी। मगर इस बेलछी की घटना ने कांग्रेस और इंद्रा गांधी की सियासत दोनों को संजीवनी प्रदान कर दिया।

अब तक राजनीतिक उदासीनता झेल रहीं इंदिरा गांधी ने बेलछी गांव जाने का फैसला किया। सोनिया गांधी के बायोग्राफर जविएर मोरो ने अपनी किताब ‘दी रेड साड़ी’ में इस घटना के बारे में विस्तार से बताया है कि जब सोनिया गांधी को इंदिरा गांधी के बेलछी गांव जाने के कार्यक्रम के बारे में पता चला तो वे घबरा गईं। उन्होंने अपनी सास को वहां जाने से मना किया। लेकिन इंदिरा गांधी नहीं मानीं। वे 13 अगस्त 1977 को तेज बारिश में बेलछी गांव पहुंच गईं। पहले वे फ्लाइट से पटना पहुंची। फिर जीप से बेलछी के लिए रवाना हुई लेकिन रास्ते में कीचड़ होने की वजह से जीप फंस गई तो ट्रैक्टर का इंतजाम किया गया। वरिष्ठ पत्रकार नलिनी सिंह की ननद प्रतिभा सिंह उस यात्रा में इंदिरा गांधी के साथ थीं। नलिनी सिंह बताती हैं कि रास्ते में बहुत कीचड़ था लेकिन इंदिरा गांधी ने जिद पकड़ी थी कि उन्हें आगे जाना है। इसलिए तब स्थानीय लोगों ने कहा कि आप हाथी पर चढ़ जाइए।

हाथी पर कंबल रखकर उनके बैठने का इंतजाम किया गया और वे दोनों उस पर बैठकर चढ़कर बेलछी गांव में पीड़ितों से मिलने पहुंचीं। इंदिरा का इस तरह हाथी पर बैठकर पीड़ितों से मिलने जाना राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बनी। इस घटना ने पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया और 1980 में कांग्रेस ने केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ अपनी जोरदार वापसी किया।

क्या मिल गई है कांग्रेस को संजीवनी

जैसे ही प्रियंका को लखीमपुर खीरी कांड के बारे में पता चला वे रविवार को ही लखनऊ के लिए रवाना हो गई। वे रात में ही लखीमपुर जाने के लिए निकल गईं। एक तरफ प्रियंका लखीमपुर खीरी पहुंचने के लिए हर जतन करने में लगी थीं। वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश पुलिस प्रियंका गांधी को किसी भी कीमत पर लखीमपुर नही जाने देना चाहती थी। हर जतन हो रहा था। एक तरफ जिद्द थी प्रियंका को लखीमपुर जाने से रोकना तो दूसरी तरफ जिद्द थी लखीमपुर जाने की। मज़लूमो के कंधे से कन्धा मिला कर खड़े रहने की। बताया जाता है कि वे एक गाड़ी की पिछली सीट पर भी प्रियंका बैठ गई थीं और वे पुलिस को चकमा देती रहीं। कांग्रेस महासचिव को हिरासत में लेने के लिए उस दिन पूरी रात पुलिस इधर से उधर दौड़ती रही। पहले उन्हें लखनऊ में रोकने की कोशिश की गई लेकिन वह वहां से निकल गईं। इस दौरान प्रियंका कुछ दूरी तक पैदल भी चलीं। तड़के चार बजे उन्हें और सांसद दीपेन्द्र हुड्डा को सीतापुर में हिरासत में ले लिया गया। जहां कोई नहीं पहुंचा वहां प्रियंका पहुंच गईं और सबसे पहले पहुंचने वालों में वहीं थीं। राजनीति के जानकारों की मानें तो इंदिरा गांधी का बेलछी गांव पहुंचना और प्रियंका गांधी का लखीमपुर खीरी के लिए पहुंचने की कोशिश करना, दोनों घटनाओं के वक्त और हालात अलग हैं लेकिन दोनों नेताओं के सियासत करने की शैली में समानता नजर आती है।

कांग्रेसियो को दिखा पोती प्रियंका में दादी इंद्रा का अक्स

प्रियंका गांधी इंदिरा गांधी की तरह सियासत करना सीख गई हैं। छोटे और तराशे हुए एक ही स्टाइल में बने बालों और साड़ी में तो प्रियंका गांधी बिल्कुल अपनी दादी का अक्स नजर आती हैं लेकिन क्या प्रियंका की सियासत करने की शैली और संघर्ष करने का उनका जज्बा उनकी अपनी दादी इंदिरा गांधी से मेल खाता रहा है? क्या जैसे इंदिरा गांधी ने बेलछी नरसंहार के बाद सत्ता में वापसी किया वैसे ही प्रियंका गांधी भी लखीमपुर खीरी कांड के जरिए लगभग तीन दशक से अधिक समय से यूपी में कांग्रेस की खोई जमीन तलाश कर लेंगी ? कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता तो फिलहाल यही मान रहे हैं प्रियंका गांधी यूपी में एक नई कांग्रेस तैयार कर रही हैं। एक वरिष्ठ नेता ने कहा जिस तरह बेलछी नरसंहार से इंदिरा गांधी ने वापसी की थी उसी तरह प्रियंका गांधी के जोश और उनकी सक्रियता ने यूपी चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं में जान फूंक दी है। उन्होंने कहा कि प्रियंका कोशिश कर रही हैं कि किसानों की नाराजगी को वोटों में तब्दील किया जाए।

प्रियंका उत्तर प्रदेश में हुई विपक्ष का बड़ा चेहरा : ए0के0 लारी

वरिष्ठ पत्रकार ए0 के0 लारी ने कहा कि “बेलछी गाँव में इंद्रा गांधी की गिरफ़्तारी के बाद उनकी रिहाई को गौर करे तो इंद्रा गांधी ने पहली सभा सीतापुर में ही किया था। ये एक और भी संयोग इन दोनों घटनाओं में जोड़ा जा सकता है। रही बात प्रियंका में बेशक इंद्रा गांधी की झलक दिखाई दे रही है। प्रियंका की कांग्रेस के वापसी की बात करना अभी थोडा जल्दबाजी होगी। मगर ये बात तो है कि प्रियंका विपक्ष का एक बड़ा चेहरा बनकर उभरी है। इसको दुसरे नज़रिए से देखा जाये तो हो सकता है कि भाजपा कांग्रेस को जानबूझ कर स्पेस दे रही हो ताकि मतों का बटवारा हो। कांग्रेस जितना मजबूत होगी सपा उतना ही कमजोर होगी।

ए0के0 लारी ने कहा कि “मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा ही अभी थी। मगर उत्तर प्रदेश की तीन घटनाओं सोनभद्र का उम्भा कांड, हाथरस काण्ड और अब ये लखीमपुर कांड। तीनो में प्रियंका की उपस्थिति सबसे पहले रही है और मौके पर भी गई। लखीमपुर की घटना में भी जब तक अन्य विपक्षी दल अपनी रणनीति बना रहे थे तब तक वह सीतापुर पहुच गई। तो इन बातो ने विपक्ष का एक बड़ा चेहरा प्रियंका गांधी को बना दिया है। इससे क्या फायदा मतो का होगा और सीटो पर क्या फर्क पड़ेगा ये दूसरी बात है। मगर कार्यकर्ता इन सबसे काफी प्रोत्साहित हुवे है। चुनाव के ठीक पहले कार्यकर्ताओं का ऐसे चार्ज होना पार्टी के लिए अच्छी बात है।”

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की नई टीम बन रही है। कुल मिलाकर ये है कि कार्यकर्ताओं को चार्ज करने के मामले में प्रियंका सफल रही है। इसको इंद्रा गांधी के बेलछी से अब जोड़ कर देखा जा सकता है। यहाँ सीटो के फायदे कितने होंगे ये कहना जल्दबाजी होगी। मगर प्रियंका कांग्रेस के संघर्ष की ज़मीन तलाशने में सफल रही है।

हालांकि बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पहनावा ही नहीं बल्कि बोलने, चाल-ढाल, आक्रामकता, वाकपटुता और व्यंग्य भरे लहजे में भाषण देने और संघर्ष करने के मामले में वे बिल्कुल अपनी दादी पर गई हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकाला जाए कि प्रियंका गांधी इंदिरा गांधी हो सकती हैं। मगर कार्यकर्ता उनके अन्दर इंद्रा गांधी को देख रहे है। कांग्रेस अपनी सियासी ज़मीन पाती दिखाई दे रही है। कार्यकर्ताओं में नई उर्जा आ चुकी है। चुनावों के ठीक पहले कार्यकर्ताओ के अन्दर उर्जा का संचार करना एक बड़ी सफलता प्रियंका के खाते में जा चुकी है। अब ये मतो में कितना बदलती है, कितनी सीटो का फायदा पार्टी को होता है ये अभी कहना जल्दबाजी होगी।

पूर्व विधायक अजय राय ने कहा कि “खून तो इंद्रा गांधी का ही है। क्रांतिकारी परिवार की बेटी है और आयरन लेडी की पोती है, उन्होंने कांग्रेसी संघर्ष की दास्तानों को सामने जिवंत उदहारण के रूप में दिखा दिया है। कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार कितना है ये तो 10 तारिख के रैली में दिखाई दे जायेगा। राज्य झूठे प्रचार से नही चलता है बल्कि काम करने से चलता है। कांग्रेस संघर्ष हमेशा रहा है।” वरिष्ठ कांग्रेसी नेता लड्डू शाह ने कहा कि बेशक उत्तर प्रदेश में संघर्ष का दूसरा नाम कांग्रेस ही है। जब तक किसी अत्याचार पर अन्य विपक्ष सोचता रहता है हम कांग्रेसी उसके मुखालफत में आ जाते है और मज़लूमो का साथ देते है। प्रियंका गांधी में हम कांग्रेसियों को इंद्रा गांधी दिखाई देती है।

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