नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई ने किया निकाह, जाने कौन है मलाला के शौहर और कौन है बेटियों की शिक्षा के लिए आवाज़ उठाने वाली आयरन गर्ल मलाला  

तारिक़ आज़मी

नोबेल पुरस्कार विजेता और बेटियों की तालीम के लिए आवाज उठाने वाली आयरन गर्ल मलाला यूसुफजई ने ब्रिटेन में निकाह कर लिया है। उन्होंने कल मंगलवार को ट्वीट करके इसकी जानकारी सांझा किया। मलाला ने अपने जीवनसाथी और खानवादे के साथ ट्वीटर पर कुछ तस्वीरें भी पोस्ट किया है। मलाला का निकाह असर मलिक के साथ हुआ है। मलाला ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि  “आज मेरी जिंदगी का बेहद अनमोल दिन है। मैं और असर जीवनभर के साथी बन गए हैं। हमने अपने परिवारों की मौजूदगी में बर्मिंघम में निकाह किया। कृपया हमें आशीर्वाद दीजिए। हम आगे का रास्ता साथ मिलकर तय करने के लिए उत्साहित हैं।”

कौन है असर मलिक

मलाला को अपना शरीक-ए-हयात बना का र्ज़िंदगी भर का रिश्ता जोड़ने वाले असर मलिक दरअसल पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड में जनरल मैनेजर हैं। वह मई 2020 में इससे जुड़े थे। इससे पहले वह पाकिस्तान सुपर लीग के लिए भी काम करते थे। साथ ही साथ वह एक प्लेयर मैनेजमेंट एजेंसी का संचालन भी कर चुके हैं। उनकी पढ़ाई लाहौर यूनिवर्सिटी से हुई है।

कुवत और जज़्बे का दूसरा नाम है आयरन गर्ल मलाला युसूफजई

जिस उम्र में बच्चे खिलौने से खेलते है और अपने मां-बाप से अपनी मांग पूरी करवाने की जिद करते हैं, उस उम्र में यह पाकिस्तान की एक बेटी ने दूसरी बेटियों के लिए हक की लड़ाई शुरु कर दी थी। तालिबानी आतंकवादियों की गोलियों से भी न डरने वाली मलाला यूसुफजई ने महज़ 17 साल की उम्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। वह सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता भी है।

12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात में जन्मी थी। मलाला के संघर्ष की कहानी उस वक्त शुरु हुई थी जब वह कक्षा आठ में पढ़ती थी। वर्ष 2007 से 2009 तक तालिबान ने स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया था। तालिबानियों के डर से घाटी के लोगों ने लड़कियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया और 400 से ज्यादा स्कूल बंद हो गए। जिसमें मलाला का भी स्कूल शामिल था। पढाई में तेज मलाला ने अपने पिता जियाउद्दीन यूसुफजई से दूसरी जगह एडमिशन कराने की गुजारिश की। इसके बाद मलाला ने पिता के पिता उसे पेशावर लेकर गए। यहीं मलाला ने सिर्फ 11 साल की उम्र में नेशनल मीडिया के सामने एक मशहूर भाषण दिया था। जिसका शीर्षक था “हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन?”  यही से  मलाला की जिंदगी में संघर्ष आता है।

तालिबानियों द्वारा मलाला और उसकी सहेलियों का बचपन और स्कूल छीना जाना मलाला को काफी नागवार गुजरा था और उन्होंने 2009 से “गुल मकई”  नाम से बीबीसी के लिए एक डायरी लिखना शुरू कर दिया।  जिसमें उन्होंने स्वात घाटी में तालिबान के कुकृत्यों की परत दर परत खोल कर रख दी। इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल “राजा की आएगी बारात” नहीं देख पाती है। मलाला की इस डायरी से तालिबानी दहशतगर्द इस कदर बौखला उठे कि उन्होंने “गुल मकई” की तलाश शुरू कर दी। दिसंबर 2009 में मलाला के पिता ने ये खुलासा कर दिया कि मलाला ही ‘गुल मकई’ हैं।

मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था कि “आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्‍यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।“ अपनी डायरी से मलाला ने तालिबानियों के नाक में दम कर दिया था। बौखलाए तालिबानियों ने 9 अक्टूबर, 2012 के दिन मलाला की स्कूल बस पर कब्जा कर लिया। बस पर चढ़ते ही आतंकियों ने पूछा कि मलाला कौन है? सभी बच्चे चुप होकर मलाला तभी एक आतंकी ने मलाला के सिर पर एक गोली मार दी। गंभीर रूप से घायल मलाला को इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया। यहां उन्हें क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया। पूरी दुनिया में मलाला के स्वस्थ्य होने की दुवाए होना शुरू हो गई और आखिरकार मलाला वहां से स्वस्थ होकर अपने देश लौट गईं।

मलाला के अपने देश लौटने के बाद उन्हें अब पूरी दुनिया जानने लगी थी। उन्हें कई तरह के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।  19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को दिया। नीदरलैंड के किड्स राइट्स संगठन ने भी अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया। 2013 में उन्हें वूमन ऑफ द ईयर अवार्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा भी कई देशों ने मलाला को सम्मानित किया। लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला के नाम पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके 16वें जन्मदिन पर 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित कर मनाया था। मलाला ने 2013 में किताब ‘आय एम मलाला’ भी लिखी थी।

10 दिसंबर 2014 के दिन मलाला को दुनिया के सबसे बड़े शान्ति पुरस्कार नोबेल से सम्मानित किया गया। नॉर्वे में आयोजित इस कार्यक्रम में भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ मलाला को संयुक्त रुप से यह नोबेल पुरस्कार प्रदान किया।

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