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तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: ई बनारस हओ रजा, ईहा सुनील भी चिलावे ल, तो आसिफ़ो चिल्लावेला “भक्काटा…….!” पुरे ब्रह्माण्ड में नही है बनारस जैसी कोई नगरिया

तारिक़ आज़मी

ये बनारस है। अल्हड मस्ती का शहर बनारस। हम बनारसियो का सानी दुनिया में दूसरा कही नही मिलेगा। दुनिया चाँद पर जाए या सूरज पर, हमारी सुबह आज भी कचौड़ी और जलेबी के साथ होती है। हम दुनिया की भीड़ का हिस्सा नही है, शायद इसीलिए हम भर पेट खाना नही खाते है। बस चाप के खा लेते है। हम इतने मस्त मलंग है कि हमारे जैसा कोई दूसरा इस दुनिया में मिलेगा ही नही।

आप देख ले, वैसे तो खिचड़ी, लोहड़ी या फिर मकर संक्रांति कहे ये सभी त्यौहार देखने में आपको भले एक धर्म का समझ आये। मगर हम बनारसी है। हमको मस्ती करने का मौका मिलना चाहिए। हर गली में आपको भक्काटा की आवाज़ सुनाई देगी। हमने बताया न कि हम बनारसियो जैसा आपको पूरी दुनिया में कही कोई नही मिलेगा। ईहा सुनील सिर्फ भक्काटा नही चिल्लाता है। बल्कि आसिफो भक्काटे चिल्लाता है। अब आजे का ले ले। दू “दिना सभन्ने” (सभी) पतंग उडाए, मगर सबका मन नही भरा। आजो फिर सब उड़ाने लगे। सुबहे से “भक्काटे” की आवाज़ आ रही थी। “संझा” (शाम) तक सब “भक्काटे” चिल्लाते रहे।

हम ऐसे मस्त मलंग है कि दुसरे की पतंग काटने के बाद सब मौज लेते है। अपने अपने तरीके से। आपके शहर में भी लेते होंगे। मगर क्या खुद की कट जाने के बाद भी मौज आती है। नही आती है न, मगर हम बनारसी ऐसे मस्ती वाले होते है कि कटे किसी की भी, “भक्काटे” ज़रूर चिल्लाते है। सुबहिये सुबह सुनिलवा चढ़ गया “नगोल” (छत) पर। अरे कतवारू यादव चा का लईका सुनिलवा, गजबे का मस्तीखोर है और चिलावे लगा कि “अरे आसिफ्वा, भक्काटे।” अब टेनी खान के बेटवा आसिफ के कहा पचे। पठानी जज्बा जाग गया और उहो अपनी “नगोल” पर पहुच गया। बस दिन भर सभन्ने “भक्काटे” से कान खा गये। संझा के दुन्नो के बाप चढ़े और “दिहिन दू पनही।” तब जाकर “भक्काटे” खत्म हुआ।

देखिये हम कहते है कि हम बनारसियो जैसा आपको पुरे ब्रह्माण्ड में तलाशने से नही मिलेगा। आप समझे, हमारे बनारस में शाम तो होती ही नही है। आप परेशान हो जायेगे जान कर कि बनारस में शाम ही नही होती है बल्कि “संझा” हो जाती है। हमारे यहाँ छत नही होती है, हम “नगोल” पर चढ़ जाते है। सब तो सब छोड़े साहब हम बनारसी झगडे नही करते है। बस “सलट” देते है। सब जगह आपको पता होगा कि लोग धमकी देते है। हम धमकी नही देते है, हम बस बता देते है कि “बबुआ जितना तोहार उमर ब, उतना हमार कमर ब।”

अब आप समझे, कि हम कैसे है। नहीं समझे, चलिए बताते है कुछ और भी। हमारे यहाँ धुप नही होती है। पुरे दुनिया में सभी के शहर में धुप होती है। मगर बनारस में धुप ही नही होती है। आप जानकर परेशान हो गए कि हम उस शहर में रहते है जहा धुप नही बस “घाम” चाप के हो जाती है। मस्त मलंग भी मस्ती हमसे आकर सीखते है। सच बताता हु, हम बनारसियो को देख कर बड़े से बड़ा सांड भी रास्ता बदल देता है, बस हम कह देते है “महादेव।” खुदे रास्ता बदल के चला जाता है।

आप समझे, बनारस के महत्व को। आपको शायद मालूम न हो कि हमारे यहाँ नाली भर कर कभी नही बहती है, हमारे यहाँ “पनारा” भर जाता है। सबसे बड़ा अगर हम बनारसियो का इजाद की हुई चीज़ है जिसकी दुनिया कायल है तो वह है बनारस का “भौकाल”। ज़मीन फटे तो फटे, “भौकाल” न घटे। अब यही समझ लीजिये कि हम लोग किसी की पिटाई नही करते है। बस धर के “कूच” देते है। हमारे यहाँ कोई किसी को “किक” नही मारता है। बस हमारे यहाँ लोग “लतिया” दिए जाते है।

हमारे यहाँ लोग टॉयलेट नही जाते है ये जानकार आप हैरान हो जायेगे। सच कहता हु कि पोट्टी या शौच करने जाते ही नही है। हम “निपटने” जाते है। सबसे बड़ी बात ये है कि हमारे यहाँ कोई “गाली” नही देता है। कोई यहाँ किसी को गाली नही देता, बस थोडा सा “गरिया” देते है। दुनिया भले ही चाँद पर पहुचे या सूरज पर हमको इसकी फिक्र नही रहती है, हम तो आज भी अपनी सुबह कचौड़ी जलेबी से करते है। शाम हमारी आज भी चौरसिया जी के पान से होती है। पान हमारे यहाँ की शान होती है। आप पूरा विश्व भले घूम ले, मगर बनारस आपने नही देखा तो फिर क्या देखा। बस कुछ दिन तो गुज़ारे हुजुर हमारे बनारस में।

हमारे यहाँ बिस्मिल्लाह खान मंदिर में बैठ शहनाई बजाते है। तो शंकर सासारामी नात पढ़ते है। हम है असली गंगा जमुनी तहजीब का मरकज़। कभी कुछ वक्त तो गुज़ारे हमारे बनारस में। हम वो है जो दीपावली और ईद साथ साथ मनाते है। होली के रंग हो, या शब-ए-बारात का हलवा, हम साथ साथ मानते है। तानी जितनी भी महँगी हो बाना के बिना साड़ी मुकम्मल नही होती है। हम सुबह की कचोडी “गौरी” की खाते है तो जलेबी मस्त हमारे यहाँ “बकराभंडार” की होती है। शाम को जाड़े के दिन में गाजर का हलवा “वल्ली” का मस्त होता है। आइये कुछ वक्त तो गुज़ारे हमारे यहाँ तब आपको यहाँ जाड़े के दिनों में मलईयो का मजा आयेगा।

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