ये अय्यारी और ये बेनियाबाग़?: अपने भवन को बनवाना था तो 2013 में किया था समझौता, अब गरीब भतीजा अपने गिरे हिस्से की करवा रहा मरम्मत तो हो रही पेट में दर्द

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: हमारे एक बड़े करीबी और शहर की एक मुआज्ज़िज़ शख्सियत ने मुझसे कहा था कि कभी एक की बात सुनकर उसका ही सच न माना करो। सिक्के का दूसरा पहलू भी जान लिया करो। वैसे ये बात तो हमारे दिमाग में थी ही मगर अमल बहुत कम होता था। शनिवार की रात मेरे पास एक फोन आता है और वह एक निर्माण के सम्बन्ध में मुझको जानकारी देना शुरू करते है। दुसरे दिन सुबह वह मेरे दफ्तर भी आये और कुछ दस्तावेज़ देकर बताया कि उसकी संपत्ति पर अवैध रूप से निर्माण करवाया जा रहा है।

हम भी दस्तावेज़ देख कर मौके का फोटो अपने प्रतिनिधि से मंगवा कर खबर लिखने वाले ही थे कि मुझको उन मुआज्ज़िज़ शख्सियत के अल्फाज़ याद आ गये। हमने भी सोचा कि आखिर दुसरे के भी दस्तावेज़ देखने में क्या हर्ज है या फिर इन दस्तावेज़ की क्या सच्चाई है जान लेने में क्या हर्ज था। आज दिन भर दस्तावेजों की तफतीश कचहरी से लेकर वीडीए से किया तो असली अय्यारी समझ में आई। मामला है बेनिया स्थित भीख शाह गली के भवन संख्या सीके 46/38-A से जुड़ा हुआ है। जिसमे एक पक्ष है मुहम्मद अरशद जिनकी आलिशान इमारत बनी हुई है। दूसरा पक्ष है नसीमा खातून जिनका हिस्सा इस संपत्ति में कागजात के अनुसार महज़ 380 वर्ग फुट है।

मामला लगभग एक दशक पहले चर्चा और विवाद में तब आया था जब मुहम्मद अरशद के द्वारा अपने भवन का बिल्डर एग्रीमेंट के द्वारा निर्माण करवाया जाने लगा। जानकार बताते है कि इस निर्माण का बिल्डर एग्रीमेंट स्थानीय ठेकेदार थुन्नी, हरिस और प्रदीप सिंह ने किया था। वर्ष 2013 में हुवे इस एग्रीमेंट में तीनो बिल्डर के द्वारा निर्माण कार्य शुरू करवाया गया तो दुसरे पक्ष नसीमा खातून ने निर्माण पर यह कहकर आपत्ति किया कि अभी बटवारे का निशान नही लगा है तो फिर कैसे निर्माण होगा? जिसके बाद मामले में आपसी सुलह समझौता की बात होने लगी।

तीनो भवन निर्माणकर्ता इलाके में ही नही बल्कि शहर में अपने साफ़ सुथरे काम के लिए जाने जाते है। तीनो ने मिल कर दोनों पक्ष के बीच सुलह करवया जिसमे नसीमा खातून को 11 फिट 3 इंच हिस्सा मिला। इस सुलहनामे को मौखिक रूप से न रख कर पञ्च के रूप में बैठे हारिश, थुन्नी और प्रदीप सिंह ने लिखित करवा दिया। जिसके ऊपर दोनों पक्ष की हस्ताक्षर हुवे, साथ ही गवाह के तौर पर प्रदीप सिंह और हारिस तथा आज़म के हस्ताक्षर हुवे। हमसे बात करते हुवे इन पंचो में से एक ने बताया कि पञ्च की भूमिका परमेश्वर के तौर पर होती है। जिसके वजह से पञ्च हमेशा निष्पक्ष होता है। हमने निष्पक्षता के साथ फैसला किया और वह सही है। हम आज भी इसके कायल है कि उतना हक़ और हिस्सा नसीमा खातून का बनता है।

बहरहाल, इसके बाद अरशद मिया की आलिशान इमारत मय बेसमेंट वगैरह बन कर तैयार हो गई। बेसमेंट और दुकाने बेच कर अरशद मिया के पास अब पैसे आ गए। उधर अपने मायके में सर छिपाने की जगह लिए बैठी थी। मायके में बटवारा भाइयो का हो गया और नसीमा अपनी ज़िन्दगी भर की कमाई जों तिनका तिनका जुडी थी के साथ सर छिपाने का एक आशियाना बनाना चाह रही है। जिसके बाद अब अरशद मियाँ के पेट में दर्द चालू है और वह काम रोको अभियान में जुटे है। उनका कहना है कि मामला बटवारे का अदालत में विचाराधीन है।

खुद अरशद का भवन है विकास प्राधिकरण में विवादित

हमने इस भवन के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण के दस्तावेज़ तफ्तीश किया तो वहा खुद अरशद का निर्मित भवन विवादों में घिरा दिखाई दे रहा है। ये एक लम्बी दास्ताँ है जिसको अगले अंक में आवश्यकता पड़ने पर बताया जायेगा।

सवालों में पंचायत करने वाले   

इस पंचायत को आज से एक दशक लगभग पहले हल करवाने वालो पर भी अब सवाल उठ रहे है कि आखिर वह सभी जो मुआज्ज़िज़ शख्सियते इस मामले को हल करवाने के लिए बैठे थे वह कैसे मामला हल करवाए थे कि आज एक दशक के लगभग होने को है और अभी तक इस मामले का समाधान जो लिखवाया गया था नही हुआ। या फिर शायद सिर्फ एक अय्यारी अरशद के तरफ से हुई थी कि मामले में पहले अपना बनवा लो बाद मे इनको परेशान किया जायेगा। हो तो यही रहा है। वही अरशद से जुड़े एक सूत्र ने बताया है कि अरशद चाहते है कि यह लोग अपना हिस्सा उनको बेच कर चले जाए।

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