हुजुर….! तनिक तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ सुने कि ‘हम पत्रकार है, हमारा काम जनसमस्या को दिखाना है, जनसमस्या का निस्तारण होता है नही होता ये शासन और प्रशासन का काम है’

तारिक़ आज़मी

देखिये साहब, हम साफ़ साफ़ कहते है कि हम तो कछु कहते ही नही है। जो कहिन हमरे कक्का कहिन है। तो हमसे हमरे कक्का अकसरे कहते रहते है कि ‘बतिया है कर्तुतिया नाही……’। अब हम कईसे अपने कक्का को समझाए कि हमारे हिस्से क़ा काम ऊ नही है। हम अपने हिस्से का काम बतियाने का करते है। तो तनिक लिख देते है। अब केहू समस्या दिखाई दे तो हम समस्या बतिया देते है। हम खूदही तो समस्या हल करवाने नही लगेगे।

अब आप सोच रहे होंगे कि ई कौन सी बतियाँ हुई भाई कि ई बतिया बताने के लिए ‘मोरबतियाँ’ आ गई। दरअसल मामला तनिक गम्भीर है। मामला ये है कि वाराणसी नगर निगम जो खुद को सफलता हेतु अपनी पीठ थपथपाया करता है, के दावो की असली हकीकत विगत काफी समय से हम ज़ाहिर करते रहते है। हकीकत ये भी है कि किसी को बुरा नही लगता है। चाहे वह काली महल की रोड का प्रकरण हो अथवा लहँगपूरा का झाड़ू न लगने का मामला या फिर लोहता के लटकते बिजली के तार।

ऐसी कई जनसमस्या है जिसको हमने प्रमुखता से उठाया। विभागों ने संज्ञान लिया और जनसमस्याओ का निस्तारण भी हुआ है, मगर ये निस्तारण विभागों ने किया है न कि हमने। हम ‘खबर के असर’ जैसे लफ्जों से भी परहेज करते है। विगत सप्ताह से हम दालमंडी स्थित सीवर की समस्या को एक बार फिर से उठा रहे है। दरअसल समस्या की मूल जड़ इस इलाके के ध्वस्त सीवर है। हम सीवर की समस्या को आम जन के बताये अनुसार उठा रहे है। इसका शायद विभाग को बुरा नही लगता होगा। किसी और को भी बुरा नही लगता होगा। मगर एक सज्जन है ऐसे भी कि उनको बुरा इतना लगता है कि क्या बताये।

वैसे स्वयं असफल व्यापारी नेता है, तो वही जननेता बनने की चाहत भी धरी रह गई उनकी तो असफलता हाथ यहाँ भी लग गई। अब कमाल की बात ये है कि एक से एक ज्ञान उनके भी है। अब उनको कौन समझाये कि भाई हम पत्रकार है। हमारा काम जनसमस्या को उजागर करना है। न कि खुदही जाकर उसको हल करवाना है। हल होती है नही होती है यह विभाग जाने। हमसे क्या मतलब है। हम तो सिर्फ विभाग की नाकामी उसको दिखाते रहेगे। जिस नाकामी को विभाग छिपा रहा होगा उसको हम लगातार उजागर करेगे। ‘उनका जो पैगाम है वह अहल-ए-सियासत जाने, अपना तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहाँ तक पहुचे।’

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