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महाराष्ट्र सरकार प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘राज्यपाल और स्पीकर ने गलती किया है, उद्धव सरकार ने बिना फ्लोर टेस्ट के इस्तीफा दिया इसीलिए उनकी सरकार बहाल नही कर सकते’

तारिक़ खान

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज शिवसेना में फूट संबंधित मामले में कहा कि वह उद्धव ठाकरे सरकार की बहाली का आदेश नहीं दे सकती क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था। मगर साथ हगी बेंच ने यह भी माना है कि फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल का फैसला और व्हिप नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला गलत था।

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी माना कि शिंदे समूह द्वारा समर्थित गोगावाले को शिवसेना पार्टी के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का निर्णय ही वैध नही था। पीठ ने टिप्पणी किया कि लोगों द्वारा सीधे चुने गए विधायकों का कर्तव्य कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना है और संविधान के अनुच्छेद 212 का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता है कि सदन की सभी प्रक्रियात्मक दुर्बलताएँ न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं।

पीठ ने नबाम रेबिया मामले में दिए गए फैसले को भी बड़ी पीठ को भेज दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने 14 फरवरी 2023 को मामले की सुनवाई शुरू की थी और 16 मार्च 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

अदालत ने कहा कि ‘अध्यक्ष ने यह पहचानने का प्रयास नहीं किया कि दो व्यक्तियों – श्री प्रभु या श्री गोगावाले – में से कौन सा राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत सचेतक था। अध्यक्ष को केवल राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त सचेतक को ही मान्यता देनी चाहिए।‘ पीठ ने कहा कि कोई गुट या समूह अयोग्यता की कार्यवाही के बचाव में यह तर्क नहीं दे सकता कि उन्होंने मूल पार्टी का गठन किया था। विभाजन का बचाव अब दसवीं अनुसूची के तहत उपलब्ध नहीं है और कोई भी बचाव दसवीं अनुसूची के भीतर पाया जाना चाहिए क्योंकि यही वर्तमान में मौजूदा है।

अदालत ने कहा कि अगर स्पीकर और सरकार अविश्वास प्रस्ताव को दरकिनार करते हैं, तो राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाना उचित होगा। हालांकि, यह कहा गया कि जब श्री फडणवीस ने सरकार को लिखा तो विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा था। पीठ ने कहा कि ‘विपक्षी दलों ने कोई अविश्वास प्रस्ताव जारी नहीं किया। राज्यपाल के पास सरकार के विश्वास पर संदेह करने के लिए कोई वस्तुनिष्ठ सामग्री नहीं थी। राज्यपाल द्वारा भरोसा किए गए प्रस्ताव ने यह संकेत नहीं दिया कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते थे। भले ही यह मान लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर निकलना चाहते थे, उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया था।” यह कहते हुए कि शक्ति परीक्षण का उपयोग आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और इंटर-पार्टी या इंट्रा-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है। पीठ ने कहा, “राज्यपाल द्वारा भरोसा किए गए किसी भी पत्राचार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते थे। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके निष्कर्ष निकाला कि श्री ठाकरे ने विधायकों के बहुमत का समर्थन खो दिया है। विधायकों द्वारा व्यक्त की गई सुरक्षा चिंताओं का सरकार के समर्थन पर कोई असर नहीं पड़ता। यह एक बाहरी विचार था जिस पर राज्यपाल ने भरोसा किया। राज्यपाल को पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था।।। पत्र यह संकेत नहीं दे रहा था कि कि श्री ठाकरे ने समर्थन खो दिया। श्री फडणवीस और 7 विधायक अविश्वास प्रस्ताव के लिए आगे बढ़ सकते थे। ऐसा करने से कोई चीज उन्हें रोक नहीं रही थी।”

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