तारिक़ आज़मी
वाराणसी के हालात दिन प्रतिदिन बद से बदतर होते जा रहे है। खबरनवीसी करने वाले शमशान घाटो पर शवो की ताय्दात गिन रहे है। बेशक लाइन लगने लगी है शवो की। चिता की आग ठंडी नही हो पा रही है। एक साथ कई कई चिताए जल रही है। घाट पर खड़े होकर अगर आप देखे तो जीवन के समस्त मोह आपके समाप्त हो जाते है। लगता है और अहसास होता है कि आखरी मुकाम तो यही है। फिर किस बात की जद्दोजेहद कर रहे है। मगर अब हालात और ज्यादा ख़राब हो चुके है। शवो के अंतिम संस्कार में भी लाइन लग रही है। घंटा दो घंटा से लेकर तीन घंटे तक का वक्त लग रहा है। साधन सीमित है और शव अधिक है।
कब्रिस्तानो के भी हाल कुछ बहुत अच्छे नही है। कल जुमेरात को अकेले नेशनल इंटर कॉलेज में शाम तक एक दर्जन से अधिक मय्यत की नमाज़ जनाज़ा होने की जानकारी आसपास के नागरिक दे रहे है। अब आप सोचे जब सिर्फ एक जगह इतनी ताय्दात है तो बकिया जगह क्या हाल होगी। कब्रस्तानो के इंतेजामिया परेशान है कि कब्रों में नई कब्रे कौन सी है और पुरानी कौन सी है। कब्र कहा बने और कहा न बने। रसीदे तो बाद में भी काटी जा सकती है। मगर कब्रों का स्थान सही चुना जाये। सभी को अपने परिजनों के कब्र के पास पेड़ की साया चाहिए होती है। मगर पेड़ अगर हर जगह लग जायेगे तो फिर कब्रे कहा बनेगी ये भी फिक्र कब्रिस्तान के इंतेजामिया को काफी है।
इन आपदा के समय में कब्र खोदने वालो ने अवसर तलाश लिया है। इसको आप क्या कहेगे वो लफ्ज़ आप खुद तलाश करे। हमारे लफ्ज़ काफी कडवे होंगे लोग फतवा लेकर घर तक आ सकते है। वैसे भी एक है जो लोगो को मेरे नाम पर भड़काना शुरू कर देगा। बहरहाल, छोडिये उसको काबुल में गधे भी होते है। अब बात मुद्दे पर ही रखते है। कब्र खोदने वालो ने इस आपदा में अपने बेहतरीन अवसर तलाश लिए है। अमूमन हर एक कब्रिस्तान के एक या दो कब्र खोदने वाले फिक्स होते है। उनको मालूम भी रहता है कि कहा कब्र खोदना है और कहा नही। मगर हालात ऐसी हो चली है कि कब्र खोदने वालो की ताय्दात भी बढ़ गई है।
शमशान पर लकड़ी का दाम दूना लेने पर संज्ञान प्रशासन ने लिया और सख्त रुख अपना लिया तो सभी ट्रैक पर आ गए। मगर ये कब्र खोदने वाले है। इनके साथ कौन सख्त रुख अपनाएगा। अमूमन एक कब्र की खुदवाई 1500 से लेकर 2 हज़ार तक की होती है। मगर आपदा के समय अपने नखरे के साथ कब्र खोदने वालो ने अपना दाम दूना और कही तीन गुना कर रखा है। अब कम से कम 4 हज़ार कब्र खोदने का उनको पैसा चाहिए होता है। आपने जरा मोल भाव किया तो तुरंत उनका फरमान हो जायेगा कि जाओ हमारे पास वक्त नही है दुसरे से करवा लो। अब यूनिटी इतनी तगड़ी है कि एक ने कहा 4 हज़ार तो दूसरा 5 हज़ार ही मांगेगा। आपको झक मार कर देना है क्योकि पहले वाला अब खोदेगा नही।
हाल कुछ ऐसे होते जा रहे है कि कल तक भैया भैया करने वाले ये कब्र खोदने का काम करने वाले आज खुद को सबसे बड़ा कारोबारी बना लिए है। सीधे सीधे सौदा कर रहे है। आपदा में अवसर की जानकर तलाश कर डाली है। एक कब्र खोदने वाला इस समय 6 से लेकर 8 कब्रे खोद रहा है। हाल कुछ ऐसी होती जा रही है कि पहले हम कब्र खोदने वालो को वक्त देते थे कि फलनवा वक्त मिटटी पड़ेगी। तब तक कब्र तैयार कर लेना। अब वो जनता को वक्त दे रहा है कि फलनवा वक्त कब्र बन पायेगी तब मिटटी लेकर आना। उसके पहले नही हो पायेगी।
इसको क्या कहेगे आप ? लफ्ज़ आप खुद चुने ऐसे लोगो के लिए। एक इंसान जिसने अपने किसी करीबी को खोया है उसके अंतिम संस्कार के लिए भी ये कब्र वाले आखरी दमड़ी तक लेने को तैयार है। गरीब की मय्यत के लिए मोहल्ले वालो ने अब सहयोग करना शुरू कर दिया है। मगर हम है कि वक्त ये भी गुज़र जायेगा कहकर खुद को तसल्ली देते है। सिर्फ कब्र वाले ही क्यों, आप देखे कफन का दाम बढ़ गया है। उसके दाम में भी इजाफा हो चूका है। बोलेगे आप किससे ?
यही नही, कब्र में लगने वाले बॉस की मांग को देखते हुवे बांस बेचने वालो ने अपना दाम अलग बढ़ा दिया है। पहले हरा बांस जिस दाम में मिलता था उस दाम में अब सुखा बांस भी नहीं मिल रहा है जिसको कोई पूछता नही था। हरा चाहिए तो सुखा भी मिला दे रहे है। मज़बूरी में लोग ले रहे है। वजह ये है कि चाहिए ही चाहिए। सबसे बड़ी बात होती है कि ग़मगीन इंसान फिर पैसो का मुह नही देखता है और मुहमांगी कीमत दे देता है।
अब प्रशासन की नज़र की बात करेगे। तो एक बात बताये। प्रशासन आखिर क्या क्या देखे ? प्रशासन मरीजों के इलाज को देखे, या उनके लिए अस्पतालों की व्यवस्था करे, या फिर शमशान की लकडियो पर ध्यान दे, या फिर कफ़न वालो को देखे या फिर एक एक कब्रस्तान पर कब्र खोदने वालो को देखे। आप अपनी हिफाज़त खुद भी तो कर सकते है। कुछ आवाज़ तो आप भी उठा सकते है। जैसे कब्र खोदने वालो की यूनिटी हो रखी है कि एक एक को फोन करके बता दे रहे है कि इतना माँगा तो कब्रस्तान की इंतेजामिया कमेटी इसका हल निकाल सकती है। वो दाम तय कर दे कि कब्र यहाँ खोदने वाले को इतना मेहनताना मिलेगा। शायद मसला हल हो जायेगा। मगर सवाल ये उठेगा कि घंटी कौन बांधेगा ? तो इसके जवाब आपको तलाशने है। आप तलाशो। हमको क्या है मोरबतियाँ लिख देना। जो मन आया लिख दिया। जो लिखा सही लिखा के तर्ज पर लिख दिया। बतिया तो आपो समझे हो कि गलत न लिखे हु, और ऊ जो हित्वा दे दुस्मनवा बने है उहो समझे है कि गलत न है। मगर का करे ? विरोध करे के है तो तारिक़ आज़मी का नामे सही। भैया…..! भैया………! भैया…………..!
तारिक़ आज़मी डेस्क: तिहाड़ की सुरक्षा पर एक बार फिर से बड़ा सवाल उठा है।…
शफी उस्मानी डेस्क: राजस्थान के दौसा जिले में रेप के बाद प्रेग्नेंट महिला की हत्या…
अनिल कुमार पटना: बिहार के मोतिहारी में बीती 30 अप्रैल को दायल के तिरहा गांव…
अनुराग पाण्डेय डेस्क: राहुल गांधी के अमेठी की बजाय रायबरेली से लड़ने पर कांग्रेस नेता…
ईदुल अमीन डेस्क: कर्नाटक में महिलाओं के कथित अश्लील वीडियो और उत्पीड़न के मामले में…
आफताब फारुकी डेस्क: कथित भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद मुख्यमंत्री…