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तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – आखिर किसको नहीं है अमन प्यारा जो हर विवाद को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास कर रहा है ?

तारिक आज़मी

वाराणसी। मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब साहब का एक उम्दा शेर है कि “हर बात पर कहते हो कि तू क्या है? तुम्ही कहो ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है ?” आज सुन रहा था। एक बेहतरीन ग़ज़ल का ये शेर आज कल के वाराणसी में चल रहे मामलो में बड़ा सटीक भी बैठता है। अगर गौर करे तो आपको भी लगेगा कि आज तारिक आज़मी मजाक करने के मूड में नहीं है। बेशक आज मज़ाक के अल्फाजो का इस्तेमाल करने का मन नही हो रहा है। वाराणसी में महज़ दस दिनों के अन्दर चार ऐसे विवाद हुवे है जिसको सांप्रदायिक विवाद देखने वाले के नज़र में बनाने का प्रयास हुआ है। बेशक ये बेहद निंदनीय कृत्य है। समझ नही आता कि हर बात को सांप्रदायिक रंग देने की आखिर कोशिश क्यों हो रही है। बेशक पुलिस इसका मुहतोड़ जवाब दे रही है और मंशा धरी की धरी रह जा रही है। आइये आदमपुर के तीनो वाक्यात पर गौर-ओ-फिक्र करते है।

आदमपुर के चौहट्टा लाला खान में दो पक्षों का विवाद

आदमपुर थाना क्षेत्र के चौहट्टा लाल खान की गिनती शहर बनारस के पुराने शहरों में होती है। वैसे तो बनारस का इतिहास पढने के लिए एक बड़ा जीवन शायद कम पड़े। इसी तवारीखी झरोखों के साथ ये इलाका है चौहट्टा लाल खान। राजघाट स्थित रौज़ा लाल खान साहब का है। उनके नाम पर ही इस इलाके का नाम चौहट्टा लाल खान पडा था। लाल खान साहब का इतिहास अथवा उनके नाम पर क्यों पडा इस इलाके का नाम ये एक लम्बी बात हो जाएगी तो हम अपने मुद्दे पर कायम रहते है।

कभी चौहट्टा लाल खान बहुत संवेदनशील हुआ करता था। कई बड़े हिस्ट्रीशीटर इस इलाके में रहते थे। मगर वक्त ने करवट लिया। एक दो को छोड़ कर सभी हिस्ट्रीशीटर शराफत की ज़िन्दगी बाद में जीकर रुखसत हो चुके है। एक दो जो बचे है वो कही और क्या कुछ करेगे खुद की ज़िन्दगी के मरहले में तवे पर रोटियों का इंतज़ाम करने में मेहनत मजदूरी कर रहे है। लगभग ढाई दशक से अधिक समय से इस इलाके में कोई बड़ा अपराध नही हुआ। छोटी मोटी चोरी जैसी घटनाए तो हर इलाके में हो जाती है। इनकी बात करना बेकार की बात है।

इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी इस इलाके के अन्दर खासियत है कि इस इलाके में कभी सांप्रदायिक विवाद नही हुआ। आपसी सौहार्द का इलाका रहा है चौहट्टा लाल खान। इस इलाके के सौहार्द का उदहारण केवल इससे आप समझ सखते है कि मस्जिद का किरायदार हिन्दू समुदाय के भी है। आपस में दोनों पक्ष मिल जुल कर रहते है। रमेश बाबु के यहाँ कोई कार्यक्रम पड़ेगा तो निसार मिया का आना ज़रूरी रहता है। निसार मिया की ईद पर सेवई नरेश बाबु के बिना फीकी रहती है। बीमार होने पर अरुण चौधरी से लाइन लगा कर दवा लेते है। बच्चो को टाफी बिस्कुट से लेकर सुबह की चाय का सामान पंडित जी से कल्लन मिया के यहाँ भी जाता है। जब 90 के दशक में देश के कई हिस्से सालाना त्यौहार के तरीके से कर्फ्यू झेलते थे तो भी इस इलाके में कोई अशांति कभी नही हुई।

मगर विगत दिनों दो बच्चो की लड़ाई दो पक्षों में बदल गई। इसको सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास किया गया। खुद बढ़ चढ़ कर लोगो ने हडकंप मचाने की कोशिश किया। किसकी खता किसकी नही इस मुद्दे पर बात ही करना बेकार है। ये इन्साफ अदालत करेगी। मगर घटना में 16 नामज़द है और 7 लोगो की गिरफ़्तारी हो चुकी है। सिर्फ आपको इस गिरफ़्तारी की बात मैं इस लिए बता रहा हु कि आप स्थिति को समझे। नफरत कौन बो रहा है। गिरफ्तार लोगो में एक शोषन और दूसरा सेठ का भाई बबलू नाम आप ध्यान दे और इलाके में पता करे। बबलू की सुबह ही रतन की दूकान से बीडी लेने से होती है और शोषण मिया को दिन भर कैश रतन की दूकान से ही चाहिए था। दोनों पक्ष एक दुसरे का पडोसी है। पडोसी के बीच झगड़े अक्सर होते ही रहते है। तो क्या ये विवाद दो पड़ोसियों का विवाद न होकर सांप्रदायिक हो गया ? वो सिर्फ इसलिए कि दोनों पक्ष एक समुदाय के नहीं थे ? कमाल ही कहेगे लोगो की सोच का इसको और क्या कहेगे।

कोनिया दो पक्षों का विवाद

इसके बाद होता है आदमपुर इलाके में ही स्थित कोनिया में दो पक्षों का विवाद। इस इलाके के आसपास के सम्भ्रांत लोग जो बेशक खामोश रहे और है भी के बातो को ध्यान दे तो ये विवाद दो नशाखोरो के बीच का था। एक दारु पी रहा था तो दूसरा ताड़ी। विवाद एक दुसरे को पहले हंसी मजाक में बोली अवाजा कसने से शुरू हुआ। पहले मजाक मज़ाक कब सुजाक सुजाक बन गया पता ही नही चला। घमासान हो गई। यहाँ भी मौका परस्तो ने अपना रंग दिखाने की कोशिश किया। मगर एक बार फिर आदमपुर पुलिस ने चाल को कामयाब नही होने दिया।

ताड़ी पी रहा पक्ष एक समुदाय का था तो दारू का पक्ष दुसरे समुदाय का था। दोनों नशे में एक दुसरे का मजाक उड़ा रहे थे। ये मजाक कब मारपीट और दो पक्षों के विवाद में बदल गया किसी को पता नही चल सका। पुलिस ने मौके पर पहुच कर 2 मिनट में स्थिति संभाल लिया। दोनों पक्ष तितर बितर हो गए। दोनों पक्ष के लोगो को छोट आई। वो ज़ख्म था, मगर उसका भी वर्ग निर्धारित कर देने का प्रयास हुआ। इस प्रयास को असफल करते हुवे थाना आदमपुर प्रभारी निरीक्षक ने मामले में दोनों पक्ष के तरफ से मुकदमा दर्ज कर लिया।

अब आप सोचे, दो नशेडी जो अक्सर आपस में लड़ते रहते है वो सांप्रदायिक कैसे हो गया। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने इसको सांप्रदायिक विवाद करार देने में कोई कसार नही छोड़ी थी। खबर की तमीज न जानने वाले भी बवाल जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। उनको शायद शब्दों की अपनी परिभाषा न पता हो मगर इम्मे उम्मे सब पढ़ के बैठे होने का दावा कर देते है। इस मामले को मौके पर ही बढने से पहले संभाला जा सकता था। अगर दोनों पक्ष को कोई एक सम्भ्रांत नागरिक आकर दो थप्पड़ लगाता दोनों का नशा उतर जाता फिर दोनों आपस में चंदा करके दुबारा नशा कर रहे होते विवाद न करते। मगर ऐसा नही हुआ।

कोनिया में दो पूर्व परिचितों के बीच चला चाकू    

ये प्रकरण भी कुछ ऐसे ही हुआ। दोनों युवक एक दुसरे के पूर्व परिचित थे। सूत्र बताते है कि महज़ 100 रूपये की बात थे। अब पैसा किसका किसके ऊपर बकाया था इस बहस में न पड़कर सिर्फ रकम देखे कितनी थी। महज़ 100 रूपये। इस विवाद में ट्राली चालक किशोरी को दुसरे पक्ष ने चाक़ू मार दिया। इसको इत्तेफाक कहेगे कि घटना के महज़ 5 मिनट के अन्दर जानकारी होने पर क्षेत्र में ही गश्त कर रहे थाना प्रभारी आदमपुर सिद्धार्थ मिश्रा और और उनके 5 मिनट बाद एसीपी कोतवाली प्रवीण सिंह मौके पर पहुच गए। घायल को उपचार के लिए भेजा और शांति व्यवस्था कायम कर दिया। इस प्रकरण में भी दो सम्प्रदाय को जोड़ने का प्रयास हुआ था मगर तब तक मामला ठंडा हो गया क्योकि नौटंकी करने पर डंडा भी नज़र आ गया था। मामले में पीड़ित की लिखित शिकायत पर चार लोगो के नाम पर एफआईआर हुई।

पुरानी घटनाए याद है क्या ?

इन दरमियान मुझको आदमपुर में वर्ष 2017 में घटित घटनाओं की याद ताज़ा करवा बैठी। उस समय आदमपुर थाना प्रभारी राजीव सिंह थे। बैक 2 बैक कई घटनाए हुई अधिकतर घटनाओं के पीछे आपसी नशाखोरी रही। मगर उसको सांप्रदायिक नाम देने का प्रयास ज़बरदस्त हुआ था। एक तो मजेदार प्रकरण मुझको आज भी याद है। दो पक्षो में झगड़ा हुआ। बात ज़बरदस्त मारपीट में बदल गई। मौके पर पुलिस को सुचना सांप्रदायिक विवाद की दी गई। सियासत अपनी रोटी सेक रही थी। दोनों पक्ष के तरफ से ऍफ़आईआर हो गई।

थाने पर पीड़ित से अधिक सियासत दिखाई दे रही थी। इस्पेक्टर राजीव सिंह भाग दौड़ करते हुवे पसीने से नहाए हुवे थे। कुछ कलम भी मौके पर इंतज़ार में थी कि क्या हुआ ? आपसी हसी मजाक चल रहा था हम लोगो का। ऐसे में एक सियासत टपक पड़ी और बात को सांप्रदायिक विवाद साबित करने की कोशिश करने लगे। मेरे मुह से अचानक निकल पड़ा “अमा छोडो नेता जी, बस एक हफ्ते के अन्दर दोनों एक साथ बैठ कर पियेगे।” हुआ भी कुछ यही। एक हफ्ता मैंने ज्यादा वक्त बता दिया था। महज़ चौथे दिन दोनों को मैंने खुद देखा कि एक साथ बैठ कर कोने में दो गिलास बीच में रखे है। हफ्ते के अन्दर ही दोनों पक्ष सुलह के लिए अधिकारियो के यहाँ दौड़ने लगा कि हम सुलह चाहते है। खत्म हो गया सांप्रदायिक मामला। आप इसको जानकर जोर से हंस रहे होगे। मगर ये हकीकत है।

क्या करना चाहिए

वैसे वर्त्तमान में ज़रूरत है कि शांति समिति के लोग आगे आये। इलाको एक सम्भ्रांत लोगो को अब ज़िम्मेदारी अपने मोहल्ले की उठाने में कोई गुरेज़ नही होना चाहिए। विवाद बढने से पहले ही उसको मौके पर ही ठंडा कर देना चाहिए। ज़रूरत पड़े तो दोनों पक्षों को आमने सामने बैठा कर मामला हल करवा देने में कोई हर्ज नही है। सब मिला कर अमन-ओ-सुकून कायम रखना मकसद होना चाहिए।

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