तारिक़ खान
डेस्क: श्रीलंका के एक बड़े पावर प्रजोक्ट को सीधे गौतम अडानी ग्रुप को देने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर पीएम मोदी द्वारा दबाव दिए जाने का दावा करने वाले अधिकारी के बयान के बाद सियासी बयानबाजी का दौर शुरू हो गया था। जिसके बाद उस श्रीलंकाई अधिकारी ने अपना बयान वापस ले लिया है। अब जानकारी मिल रही है कि उस अधिकारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। साथ ही राष्ट्रपति राजपक्षे ने इसका जोरदार खंडन किया। वहीं, श्रीलंका के बिजली प्राधिकरण के प्रमुख द्वारा वापस लिए गए आरोप पर सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं की है।
समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार, फर्डिनेंडो ने पैनल को बताया कि राष्ट्रपति राजपक्षे ने “मुझे बताया कि वह मोदी के दबाव में थे”। एक दिन बाद, राष्ट्रपति राजपक्षे ने ट्विटर पर इसका खंडन किया। राष्ट्रपति राजपक्षे ने ट्वीट किया था: “मन्नार में एक पवन ऊर्जा परियोजना के संबंध में एक COPE समिति की सुनवाई में CEB अध्यक्ष द्वारा दिए गए एक बयान का मैं खंडण करता हूं। मैं स्पष्ट रूप से किसी विशिष्ट व्यक्ति या संस्था को इस परियोजना को प्रदान करने के लिए प्राधिकरण से इनकार करता हूं।”
इस बाबत उनके कार्यालय ने एक लंबा बयान भी जारी किया, जिसमें परियोजना पर किसी को प्रभावित करने का जोरदार खंडन किया गया था। बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्होंने मन्नार में किसी भी व्यक्ति या किसी संस्थान को पवन ऊर्जा परियोजना देने के लिए किसी भी समय प्राधिकरण नहीं दिया था।” राष्ट्रपति राजपक्षे के कार्यालय ने कहा, “श्रीलंका में वर्तमान में बिजली की भारी कमी है और राष्ट्रपति चाहते हैं कि जल्द से जल्द मेगा बिजली परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी आए।
हालांकि, ऐसी परियोजनाओं को प्रदान करने में कोई अनुचित प्रभाव नहीं डाला जाएगा। बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए परियोजना प्रस्ताव सीमित हैं। लेकिन परियोजनाओं के लिए संस्थानों के चयन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जो श्रीलंका सरकार द्वारा पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली के अनुसार सख्ती से किया जाएगा,” राष्ट्रपति राजपक्षे के कार्यालय द्वारा बयान जारी करने के एक दिन बाद, फर्डिनेंडो ने श्रीलंकाई दैनिक द मॉर्निंग में माफी मांगते हुए कहा कि “अप्रत्याशित दबाव और भावनाओं” के कारण, उन्हें भारतीय प्रधान मंत्री का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था।
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