बिहार SIR पर चुनाव आयोग का दावा – ‘वोटर लिस्ट में 18 लाख ऐसे लोग शामिल जिनकी हो चुकी है मौत…!’

अनिल कुमार

पटना, बिहार: बिहार की सियासत में आजकल एक नया भूचाल आया हुआ है, और इसकी वजह है चुनाव आयोग का वो चौंकाने वाला दावा, जिसमें कहा गया है कि राज्य की वोटर लिस्ट में 18 लाख से भी ज्यादा ऐसे नाम शामिल हैं जिनकी दुनिया से विदाई हो चुकी है। जी हाँ, चुनाव आयोग का दावा है कि 18 लाख मृत मतदाता! यह आंकड़ा न सिर्फ हैरान करने वाला है, बल्कि कई बड़े सवाल भी खड़े करता है।

दरअसल, यह पूरा मामला बिहार राज्य निर्वाचन आयोग (SIR) की मतदाता सूची के सत्यापन से जुड़ा है। चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से इस सत्यापन प्रक्रिया में पाया है कि वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में ऐसे नाम हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि एक पल के लिए यकीन करना मुश्किल हो जाता है। चुनाव आयोग के सूत्रों की मानें तो यह गड़बड़ी कहीं न कहीं मतदाता सूची के नियमित अपडेट न होने और सही तरीके से जांच-पड़ताल न होने का नतीजा है।

अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची का गहन सत्यापन बेहद जरूरी है ताकि ऐसी विसंगतियों को दूर किया जा सके। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक बड़ा सवालिया निशान है। यह सवाल हर किसी के मन में है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में मृत लोगों के नाम वोटर लिस्ट में कैसे बने हुए हैं? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

  • अपडेट की कमी: लोगों की मृत्यु के बाद उनके परिजनों द्वारा इसकी जानकारी सही समय पर संबंधित अधिकारियों तक न पहुंचाना।
  • कर्मचारियों की लापरवाही: मतदाता सूची के पुनरीक्षण और सत्यापन में लगे कर्मचारियों द्वारा समुचित जांच न करना।
  • तकनीकी खामियां: डेटा एंट्री में गलतियाँ या पुराने डेटा का सही तरीके से हटाया न जाना।

इस दावे के बाद से बिहार की राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दल इसे सरकार और निर्वाचन आयोग की लापरवाही बता रहे हैं, तो सत्ता पक्ष इस पर सफाई देने में जुटा है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है, और हर कोई इस मुद्दे को अपने फायदे के लिए भुनाने की कोशिश कर रहा है। चुनाव आयोग ने इस गंभीर मामले का संज्ञान लेते हुए अब मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए एक विशेष अभियान चलाने की बात कही है।

यह अभियान कितना सफल होता है, और कितने मृत मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन यह घटना एक बार फिर इस बात को रेखांकित करती है कि चुनावी प्रक्रिया में छोटी सी भी चूक बड़े सवाल खड़े कर सकती है। फिलहाल, बिहार की जनता और राजनीतिक दल, दोनों ही चुनाव आयोग के अगले कदम पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं।

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