कर्णाटक: प्रसिद्ध मंदिर के सफाई कर्मी के दावे ‘महिलाओं, युवतियों सहित 100 से अधिक बलात्कार पीडितो को दफनाये जाने’ पर जाँच हेतु बनी एसआईटी, उठ रहे आरोपों पर बड़े सवाल, जाने क्या है पूरा मामला

तारिक आज़मी
डेस्क: कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु में एक सफाईकर्मी के दावे जिसमे उसने कहा था कि 1995 से 2014 के बीच बलात्कार की शिकार लड़कियों, महिलाओं और पुरुषों के क़रीब 100 शव अलग-अलग जगहों पर दफ़नाए थे। शिकायतकर्ता धर्मस्थल स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक संस्था में काम करता था और उसने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 183 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया है। उसका कहना है कि वह इतने सालों तक चुप रहा क्योंकि उसे उस समय के उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने जान से मारने की धमकी दी थी।

क्या है पूरा मामला और आरोप
जिस सफाईकर्मी ने यह शिकायत दर्ज कराई है, उसकी पहचान सुरक्षा कारणों से उजागर नहीं की गई है। वह श्री क्षेत्र धर्मस्थल मंजुनाथ स्वामी मंदिर, जिसे धर्मस्थल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, वहां सफाईकर्मी के रूप में काम करता था। यह मंदिर दक्षिण भारत का एक प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है, जिसकी स्थापना करीब 800 साल पहले हुई थी। यह एक शैव मंदिर है, जहां वैष्णव परंपरा के पुजारी होते हैं और इसका प्रबंधन जैन वंशजों के हाथ में है। शिकायतकर्ता ने बताया है कि उसने 1995 से 2014 के बीच नेत्रावती नदी के किनारे नियमित रूप से सफ़ाई का काम किया।
कुछ समय बाद, उसके काम का स्वरूप बदल गया और उसमें ”गंभीर अपराधों के साक्ष्य छिपाने” की ज़िम्मेदारी भी शामिल हो गई। उसने बताया कि उसने कई महिला शव देखे जो ‘बिना कपड़ों के थे और जिन पर यौन हिंसा और मारपीट के स्पष्ट निशान थे।’ उसके मुताबिक़, जब उसने इस बारे में पुलिस को बताने की बात कही तो उसके सुपरवाइज़रों ने मना कर दिया। उसका दावा है कि जब उसने आदेश मानने से इनकार किया, तो उसे धमकियां दी गईं। कहा गया, ‘हम तुम्हें टुकड़ों में काट देंगे, तुम्हारा शव भी बाकी लोगों की तरह दफ़ना दिया जाएगा, हम तुम्हारे पूरे परिवार को मार डालेंगे।’
क्या है उठ रहे हैं ये बड़े सवाल:
- इतने सालों तक खामोशी क्यों? – सबसे पहला और बड़ा सवाल यही है कि सफाईकर्मी ने इतने सालों तक इस भयावह सच को क्यों छुपाए रखा? क्या उस पर कोई दबाव था, या अब उसे किसी तरह का डर नहीं है?
- पुलिस की भूमिका पर संदेह – अगर यह दावा सच है, तो क्या पुलिस को इसकी भनक नहीं लगी? क्या स्थानीय प्रशासन और पुलिस इसमें शामिल थे, या वे अपनी ड्यूटी निभाने में असफल रहे?
- शवों की पहचान और परिवार – यदि शव वाकई दफनाए गए थे, तो क्या उनकी पहचान कभी हो पाई? क्या उनके परिवार वालों को कभी पता चला कि उनके साथ क्या हुआ? यह उन परिवारों के लिए एक असहनीय दर्द होगा।
- दावे का आधार क्या है? – सफाईकर्मी के इस दावे का क्या आधार है? क्या उसके पास कोई सबूत है जो उसके बयान की पुष्टि कर सके? पुलिस को इन दावों की गहराई से जांच करनी होगी।
- राजनीतिक साजिश की संभावना? – ऐसे गंभीर आरोप अक्सर राजनीतिक रंग भी ले लेते हैं। क्या इस दावे के पीछे कोई राजनीतिक मंशा है या यह सिर्फ एक सनसनीखेज बयान है?
क्या हुआ अब तक इस मामले में
कर्नाटक पुलिस ने इस दावे की जांच शुरू कर दी है। यह देखना होगा कि इस जांच से क्या सामने आता है। यह मामला सिर्फ कर्नाटक का नहीं, बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था और कानून प्रवर्तन एजेंसियों पर सवाल खड़ा करता है। अगर यह दावा सच साबित होता है, तो यह देश के इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक होगी। इस दावे के सामने आने के बाद एक महिला भी आगे आई हैं, जिनकी बेटी दो दशक पहले लापता हो गई थी। उन्होंने पुलिस से अपील की है कि अगर शवों की पहचान होती है, तो वह डीएनए जांच के लिए तैयार हैं। 22 साल से ज़्यादा पुराने इस मामले में पुलिस अब तक यह तय नहीं कर पाई है कि जांच कैसे आगे बढ़ेगी। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों की एक टीम ने जांच को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केवी धनंजय ने कहा है, ‘ऐसा लगता है कि सामूहिक क़ब्रों की खोज से बचने और उन लोगों को बचाने की रणनीति अपनाई जा रही है, जिनके नाम इन दावों की पुष्टि होने पर सामने आ सकते हैं।’ इस बीच कर्नाटक सरकार ने रविवार को इस मामले में जांच के लिए एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) गठित की है। इस एसआईटी का नेतृत्व डीजीपी रैंक के अधिकारी प्रणब मोहंती कर रहे हैं। इस स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम में इंटरनल सिक्योरिटी डिविजन के डीजीपी प्रणब मोहंती, डीआईजी, रिक्रूटमेंट एम0 एन0 अनुचेत (जो पहले गौरी लंकेश हत्या मामले की जांच से जुड़े रहे हैं), बेंगलुरु सिटी आर्म्ड रिज़र्व हेडक्वॉर्टर की डीसीपी सौम्या लता और इंटरनल सिक्योरिटी डिविजन के, बेंगलुरु के एसपी जितेंद्र कुमार दयामा शामिल हैं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस गोपाल गौड़ा समेत कई वरिष्ठ वकीलों ने मांग की थी कि इसमें विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया जाए। इस मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था, ‘सरकार किसी दबाव में काम नहीं करेगी। हम क़ानून के अनुसार कार्रवाई करेंगे। अगर पुलिस इस मामले में एसआईटी की सिफ़ारिश करती है, तो सरकार एसआईटी गठित करेगी।’










