अमीर ख़ान मुत्तक़ी: ‘आतंकवादी’ की लिस्ट में नाम, फिर भी भारत की दहलीज पर! समझिए तालिबान विदेश मंत्री के दिल्ली दौरे का अर्थ और पाकिस्तान की बेचैनी की असली वजह
राजनीति और कूटनीति की दुनिया में कब, क्या समीकरण बदल जाए, कोई नहीं जानता। इसका ताजा और सबसे चौंकाने वाला उदाहरण हैं अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी (Amir Khan Muttaqi)। यह वही शख़्स हैं, जिनका नाम आज भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की उस प्रतिबंधित सूची (Sanctioned List) में शामिल है, जिसे आम भाषा में 'अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की लिस्ट' कहा जाता है। लेकिन, विडंबना देखिए कि वही 'प्रतिबंधित' मुत्तक़ी अब संयुक्त राष्ट्र की विशेष छूट के साथ भारत की धरती पर हैं और दिल्ली में द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत कर रहे हैं।

तारिक खान
नई दिल्ली: अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान-प्रशासित सरकार के विदेश मंत्री मौलवी अमीर ख़ान मुत्तक़ी का भारत दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक और राजनयिक रूप से बेहद संवेदनशील रहा। मुत्तक़ी का नई दिल्ली में ‘गर्मजोशी से स्वागत’ हुआ, लेकिन यह यात्रा एक बड़े विरोधाभास को सामने लाती है: मुत्तक़ी वो व्यक्ति हैं जिनका नाम अभी भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आतंकवादी प्रतिबंधित लिस्ट में दर्ज है।

कौन हैं अमीर ख़ान मुत्तक़ी?
अमीर ख़ान मुत्तक़ी तालिबान के सबसे पुराने और प्रमुख नेताओं में से एक हैं।
- पुराना कनेक्शन: 1990 के दशक में तालिबान के पहले शासनकाल के दौरान भी वह शिक्षा मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे।
- प्रतिबंध का कारण: UNSC ने उन्हें प्रस्ताव 1988 (Resolution 1988) के तहत प्रतिबंधित व्यक्तियों की सूची में शामिल किया हुआ है। उन पर 90 के दशक में हुई हिंसा और आतंकवाद से जुड़े रहने का संदेह है। इस प्रतिबंध के कारण वह अंतर्राष्ट्रीय यात्रा नहीं कर सकते थे।
- तालिबान सरकार में पद: 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद, उन्हें कार्यवाहक विदेश मंत्री बनाया गया। तालिबान की अंतरिम सरकार के लगभग सभी शीर्ष नेता, जिनमें प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद और गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी भी शामिल हैं, इसी यूएन की प्रतिबंध सूची में हैं।
‘आतंकी’ मुत्तक़ी को भारत दौरे की छूट कैसे मिली?
किसी भी प्रतिबंधित व्यक्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करना संभव नहीं होता, जब तक कि यूएन कमेटी विशेष रूप से इसकी अनुमति न दे।
- UNSC की छूट: मुत्तक़ी को यह यात्रा संभव बनाने के लिए यूएन सुरक्षा परिषद कमेटी से विशेष छूट (Special Exemption) लेनी पड़ी। यह छूट मानवीय या कूटनीतिक बातचीत के लिए दी जाती है।
- कड़ी निगरानी: हालांकि, यह छूट उनके ‘आतंकवादी’ दर्जे को नहीं हटाती, बल्कि केवल यात्रा प्रतिबंध में अस्थायी ढील देती है।
इस दौरे के क्या हैं मायने?
मुत्तक़ी का यह दौरा भारत-तालिबान संबंधों में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है, जो कई मायनों में जटिल है।
- भारत की बदली नीति: भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन मानवीय और विकास सहायता के ज़रिए अफ़ग़ान लोगों से संबंध बनाए रखे हैं। मुत्तक़ी का यह दौरा दिखाता है कि भारत अब पर्दे के पीछे की बातचीत से आगे बढ़कर तालिबान के साथ उच्च-स्तरीय संपर्क स्थापित कर रहा है।
- सुरक्षा और स्थिरता: भारत की मुख्य चिंता अफ़ग़ान धरती से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को लेकर है। इस दौरे में क्षेत्रीय सुरक्षा और सीमा पार आतंकवाद पर बात होना तय है। भारत तालिबान से यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वे अपनी ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी तत्वों को न करने दें।
- पाकिस्तान को झटका: तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच मुत्तक़ी का भारत दौरा, पाकिस्तान के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। भारत इस मौके का उपयोग अफ़ग़ानिस्तान में अपना रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए कर रहा है।
- मानवीय सहायता और विकास: मुत्तक़ी अपनी इस यात्रा में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल समेत कई अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। बातचीत का मुख्य एजेंडा चाबहार बंदरगाह, भारत द्वारा दी जा रही मानवीय सहायता (अनाज, दवाइयां) और काबुल में भारतीय दूतावास के विस्तार पर हो सकता है।
यह दौरा वैश्विक कूटनीति के विरोधाभास को दर्शाता है, जहाँ एक ओर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं उन्हें आतंकवादी घोषित करती हैं, वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय स्थिरता और भू-राजनीतिक हितों के लिए उनसे बात करना मजबूरी बन जाती है।
विरोधाभास और राजनयिक पेच
अमीर ख़ान मुत्तक़ी यूएन की 1988 सैंक्शन लिस्ट के तहत यात्रा प्रतिबंधों (Travel Ban) का सामना करते हैं। इस लिस्ट में शामिल कोई भी व्यक्ति कानूनी तौर पर यूएन सुरक्षा परिषद की विशेष छूट (Waiver) के बिना किसी देश की यात्रा नहीं कर सकता। उनकी पिछली भारत यात्रा यूएन की मंजूरी नहीं मिलने के कारण रद्द कर दी गई थी। हालांकि, हालिया दौरे में यूएन से जरूरी छूट मिलने के बाद ही उनका भारत आना संभव हो पाया।
भारत ने इस दौरे को लेकर अपनी उत्सुकता जाहिर की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने ट्वीट कर मुत्तक़ी का स्वागत किया और द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय मुद्दों पर बातचीत की उम्मीद जताई। यह तालिबान के अगस्त 2021 में सत्ता संभालने के बाद से भारत और काबुल के बीच पहला उच्च-स्तरीय मंत्रिस्तरीय संपर्क है।
पाकिस्तान में क्यों बढ़ी बेचैनी?
मुत्तक़ी का भारत दौरा पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए गहरी राजनयिक बेचैनी का सबब बन गया है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
- राजनयिक बढ़त (Diplomatic Edge): पाकिस्तान हमेशा से अफ़ग़ानिस्तान पर अपना ‘रणनीतिक प्रभाव’ मानता रहा है। भारत का मुत्तक़ी जैसे शीर्ष तालिबान नेता से सीधे और उच्च-स्तरीय संपर्क स्थापित करना, क्षेत्र में भारत की राजनयिक पहुंच को मजबूत करता है। पाकिस्तान इसे अपने प्रभाव को कम करने की कोशिश के तौर पर देख रहा है।
- सुरक्षा चिंताएं: भारत ने तालिबान प्रशासन से स्पष्ट रूप से कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं होना चाहिए। इस बातचीत में आतंकवाद और सुरक्षा सहयोग पर चर्चा होने से पाकिस्तान में यह डर बढ़ा है कि तालिबान-भारत संबंध, पाकिस्तान-स्थित आतंकी समूहों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं।
- सहायता और मानवीय संबंध: भारत ने तालिबान के सत्ता में आने के बावजूद अफ़ग़ान लोगों को मानवीय सहायता (गेहूं, दवाएं, टीके) पहुंचाना जारी रखा है। मुत्तक़ी की यात्रा भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच लोगों से लोगों के मजबूत संबंधों को दर्शाती है, जबकि पाकिस्तान के रिश्ते तालिबान से तनावपूर्ण बने हुए हैं।
मुत्तक़ी ने भारत में विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से विस्तृत बातचीत की। उनका यह दौरा यह दिखाता है कि भारत, तालिबान सरकार को मान्यता दिए बिना भी, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों और क्षेत्रीय सुरक्षा हितों के लिए व्यवहारिक कूटनीति (Pragmatic Diplomacy) अपना रहा है। यह चाल सीधे तौर पर पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान नीति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।











