गीतकार ‘अनजान’ की जयंती पर विशेष: ‘खाईके पान बनारस वाला’ लिखने वाले ‘अनजान’: बनारस की गलियों से उठकर जिसने बॉलीवुड को नचाया…!

'अनजान'....! जिन्होंने कहा था कि 'बनारस ने सिखाया कि जीवन एक गीत हैं जिसमे दर्द और मुस्कान दोनों छिपे है।'

तारिक आज़मी

PNN24 न्यूज़, वाराणसी: बनारस की मिट्टी का जादू और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की बगिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की शिक्षा… जब ये दोनों मिलते हैं, तो कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं बनता। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के उस महान गीतकार की, जिसने अपने गीतों में पूरब का ठेठ अंदाज़ घोला और जिसने फिल्म इंडस्ट्री को अपने इशारों पर जमकर नचाया—जी हां, उनका नाम था अनजान’। जिन्होंने कहा था कि ‘बनारस ने सिखाया कि जीवन एक गीत हैं जिसमे दर्द और मुस्कान दोनों छिपे है।’

उनका असली नाम लालजी पांडेय था, लेकिन फिल्म जगत ने उन्हें उनके कलम के नाम ‘अनजान’ से पहचाना।

महामना की बगिया से गीतों का सफर

  • जन्म और शिक्षा: लालजी पांडेय का जन्म 28 अक्टूबर 1930 को वाराणसी में हुआ। उनकी शुरुआती शिक्षा यहीं हुई और उन्होंने बीएचयू (BHU) से एम.कॉम. तक की पढ़ाई पूरी की।
  • साहित्यिक नींव: बनारस के साहित्यिक माहौल और कवि सम्मेलनों ने उनके भीतर के कवि को पाला-पोसा। यहीं उन्होंने अपनी कविताओं और शायरी से दोस्तों के बीच लोकप्रियता हासिल की।
  • मुंबई की राह: कहते हैं कि स्वास्थ्य कारणों और एक बेहतर भविष्य की तलाश में, 1953 में वह मुंबई आ गए। मुंबई में उन्होंने शुरू में ट्यूशन पढ़ाकर गुज़ारा किया, लेकिन दिल में तो गीतों का समंदर हिलोरें मार रहा था।

अमिताभ बच्चन की आवाज़ और अनजान की कलम

अनजान को उनकी ठेठ हिंदी और पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोलियों की मिठास को फिल्मी गीतों में पिरोने के लिए जाना जाता है। उनका करियर तब आसमान छू गया, जब उनकी जुगलबंदी सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी के साथ बनी।

  • सफलता की कहानी: 1976 में आई फिल्म दो अनजाने’ के गीत लुक छिप लुक छिप जाओ ना” से शुरू हुआ यह सफर डॉन’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘लावारिस’ और खून पसीना’ जैसी फिल्मों में यादगार बन गया।
  • अमर नग़मा: उनका सबसे प्रतिष्ठित गीत, जिसने बनारस को एक खास पहचान दी, वह है फिल्म डॉन’ का खाईके पान बनारस वाला”। कहा जाता है कि उन्होंने यह गाना महज़ 20 मिनट में लिख दिया था। यह गीत आज भी हर पार्टी और जश्न की शान है।

अनजान के कुछ सदाबहार गीत:

  • “ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना”
  • “रोते हुए आते हैं सब, हँसता हुआ जो जाएगा”
  • “अपनी तो जैसे-तैसे कट जाएगी, आपका क्या होगा जनाबे अली”

करीब तीन दशकों तक हिंदी सिनेमा को 1500 से अधिक यादगार गीत देने वाले इस महान कलाकार का 13 सितंबर, 1997 को निधन हो गया। उनके पुत्र समीर, जो खुद एक मशहूर गीतकार हैं, पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। बनारस का यह लाल, अपनी कलम के ज़रिए आज भी करोड़ों दिलों में ज़िंदा है।

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