‘भ्रष्टाचार’ रोकने वाले लोकपाल को चाहिए 5 करोड़ की 7 BMW कारें? विपक्ष ने पूछा: ‘यह लोकपाल है या शौकपाल!’

शफी उस्मानी

नई दिल्ली: देश में भ्रष्टाचार से लड़ने वाली शीर्ष संस्था लोकपाल (Lokpal) ने अपने अधिकारियों के लिए 7 लग्जरी BMW कारें खरीदने का टेंडर जारी किया है। लगभग ₹5 करोड़ की लागत से 7 BMW 3 सीरीज़ 330 Li (M स्पोर्ट) कारें खरीदने के इस फैसले ने देश भर में एक नई बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस ‘फिजूलखर्ची’ पर तीखे सवाल उठाए हैं, जिसके बाद लोकपाल की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगने लगे हैं।

क्या है पूरा मामला?

लोकपाल ने हाल ही में एक सार्वजनिक टेंडर जारी किया है, जिसमें अध्यक्ष और छह सदस्यों के लिए सात BMW 3 सीरीज़ 330 Li (लॉन्ग व्हीलबेस) कारों की मांग की गई है। एक अनुमान के मुताबिक, एक कार की कीमत लगभग ₹69.5 लाख है, जिससे कुल खर्च ₹5 करोड़ से अधिक हो सकता है।

  • किसके लिए खरीद: लोकपाल के वर्तमान अध्यक्ष (Justice A.M. Khanwilkar, Retd.) और छह सदस्यों के लिए ये कारें खरीदी जानी हैं। लोकपाल में स्वीकृत पदों की संख्या आठ है।
  • टेंडर की शर्त: टेंडर में सप्लायर को कारों की डिलीवरी के बाद लोकपाल के ड्राइवरों और नामित कर्मचारियों के लिए एक सप्ताह का व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए भी कहा गया है।

विपक्ष और आलोचकों का तीखा हमला

जैसे ही इस टेंडर की खबर सार्वजनिक हुई, विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लोकपाल पर हमला बोल दिया। उनका कहना है कि जिस संस्था का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए हुआ था, वह अब खुद सरकारी पैसे की बर्बादी कर रही है।

  • शौकपाल’ का तंज: कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य विपक्षी नेताओं ने लोकपाल पर तंज कसते हुए कहा कि यह अब लोकपाल नहीं बल्कि शौकपाल’ बन गया है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) और शिवसेना ने भी इस कदम की कड़ी आलोचना की है।
  • वरिष्ठ वकीलों ने उठाए सवाल: वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा कि लोकपाल संस्था को खत्म कर दिया गया है और इसके सदस्य अब अपनी ‘विलासिता’ से खुश हैं।
  • पी. चिदंबरम ने की तुलना: पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों को भी मामूली सेडान कारें दी जाती हैं, तो लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को BMW क्यों चाहिए? उन्होंने उम्मीद जताई कि कम से कम कुछ सदस्य इन लग्जरी कारों को लेने से मना कर देंगे।
  • सफलता पर भी प्रश्न: आलोचकों ने लोकपाल के अब तक के प्रदर्शन पर भी सवाल उठाया है। उनका कहना है कि अपने छह साल के अस्तित्व में, लोकपाल ने भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में कोई बड़ी कार्रवाई या सजा नहीं दिलाई है, लेकिन अब यह महंगी कारों पर जनता का पैसा खर्च कर रहा है।

जवाब में क्या कहता है लोकपाल?

विवाद बढ़ने के बाद, लोकपाल के सूत्रों ने इस आलोचना को पूरी तरह से अनावश्यक और निराधार” बताया है। सूत्रों के अनुसार, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत, लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बराबर सुविधाएं और वेतन-भत्ते मिलते हैं।

सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने भी हाल ही में अपनी कारों को BMW 3 सीरीज में अपग्रेड किया है, जिसके बाद लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों के लिए भी यही कदम उठाया गया है। इससे पहले अध्यक्ष के पास स्कोडा सुपर्ब और सदस्यों के पास टोयोटा कोरोला अल्टिस कारें थीं।

निष्कर्ष: जनता की कमाई और संस्था की प्राथमिकता

यह विवाद सिर्फ़ सात BMW कारों की खरीद का नहीं है, बल्कि यह ईमानदारी की रखवाली करने वाली संस्था की प्राथमिकताओं और सरकारी ख़र्चों की पारदर्शिता पर एक बड़ा सवाल है। देश की जनता भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनी संस्था से काम देखना चाहती है, न कि करोड़ों की गाड़ियों पर खर्च। अब देखना यह होगा कि जन-विरोध और राजनीतिक दबाव के चलते लोकपाल इस टेंडर पर पुनर्विचार करता है या फिर अपनी योजना पर आगे बढ़ता है।

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