क्या बिहार चुनाव में एसआईआर और ‘वोट चोरी’ मुद्दा असर करेगा? विपक्ष का ‘परमाणु बम’ बनाम जनता की ‘रोटी-रोजगार’

ईदुल अमीन
पटना/नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है और इस बार चुनावी मैदान में एक ऐसा मुद्दा गूँज रहा है, जो पारंपरिक जातिगत समीकरणों को चुनौती दे रहा है। यह मुद्दा है ‘वोट चोरी’ का, जिसे विपक्ष ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (SIR)’ की प्रक्रिया से जोड़ा है। सवाल यह है: क्या राहुल गांधी और तेजस्वी यादव द्वारा उठाया गया यह ‘एसआईआर और वोट चोरी’ का आरोप बिहार की जनता के बीच सच में असर करेगा?
विपक्ष का ‘वोट चोरी’ नैरेटिव: क्या है पूरा मामला?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने ‘एसआईआर’ प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के इस विशेष पुनरीक्षण (SIR) के नाम पर लाखों मतदाताओं के नाम जानबूझकर हटा दिए हैं।
- मुख्य आरोप: विपक्ष का दावा है कि 30 लाख से ज़्यादा नाम पिछली लोकसभा सूची से गायब हैं।
- निशाने पर कौन? विपक्ष का कहना है कि यह एक ‘सुनियोजित साज़िश’ है जिसके तहत मुख्य रूप से दलितों, अल्पसंख्यकों और गरीब तबके के वोटरों को निशाना बनाया गया है।
- प्रचार का तरीका: राहुल गांधी ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकालकर इस मुद्दे को एक बड़े आंदोलन का रूप देने की कोशिश की है, जिसमें ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ जैसे नारे गूँजे हैं।
विपक्ष इस मुद्दे को लोकतंत्र की हत्या और भाजपा की ‘वोट चोरी शाखा’ के रूप में पेश कर रहा है।
चुनाव आयोग का रुख़: सफाई और डेटा
चुनाव आयोग (ECI) ने इन आरोपों को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताकर खारिज कर दिया है। आयोग ने अपनी सफाई में कहा है कि एसआईआर एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मृत, पलायन कर चुके या डुप्लीकेट वोटरों के नाम हटाकर मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करना है।
- ईसीआई का डेटा: आयोग के अनुसार, इस प्रक्रिया में 3 लाख नाम हटाए गए और 21.53 लाख नए नाम जोड़े गए हैं, जिससे कुल मतदाता संख्या 7.42 करोड़ हो गई है।
- आयोग की चुनौती: सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर सुनवाई हुई, जहाँ ईसीआई ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने पुनरीक्षण पर संतोष व्यक्त किया है।
ग्राउंड रियलिटी: क्या जनता इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है?
असली सवाल यह है कि बिहार का आम वोटर, जो लंबे समय से बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, क्या ‘वोट चोरी’ के इस नैरेटिव को चुनावी मुद्दा मानेगा?
एक हालिया सर्वे (वोट वाइब) के अनुसार:
- रोटी-रोजगार हावी: बिहार के 70% से अधिक मतदाता बेरोज़गारी, बिजली-सड़क, भ्रष्टाचार और महंगाई को मुख्य चुनावी मुद्दा मानते हैं।
- SIR का सीमित असर: केवल 21% लोगों ने ही एसआईआर/वोट चोरी के मुद्दे को चुनावी मुद्दा माना है। ग्रामीण इलाकों में इसका असर और भी कम है।
यह डेटा दिखाता है कि विपक्ष ने इस मुद्दे पर जितनी ऊर्जा लगाई है, उतनी ज़मीन पर शायद इसे तवज्जो नहीं मिल रही है। मतदाता को सीधे प्रभावित करने वाले ‘पेट के मुद्दे’ अब भी सबसे ऊपर हैं।
निष्कर्ष: ‘भावनात्मक’ मुद्दा या ‘व्यावहारिक’ मुद्दा?
‘वोट चोरी’ का आरोप विपक्ष के लिए एक ‘भावनात्मक’ मुद्दा हो सकता है, जो उनके पारंपरिक वोट बैंक (दलित, अल्पसंख्यक) को एकजुट करने की क्षमता रखता है, लेकिन यह ‘व्यावहारिक’ तौर पर उतना मज़बूत नहीं है जितना रोजगार या सुशासन का मुद्दा।
अगर चुनाव तक विपक्ष इस नैरेटिव को जनता की रोज़मर्रा की समस्याओं से नहीं जोड़ पाया, तो यह मुद्दा चुनावी नतीजों पर कोई बड़ा असर नहीं डाल पाएगा। बिहार में चुनाव आज भी जातिगत समीकरण, विकास और चेहरा देखकर लड़ा जाता है। एसआईआर का मुद्दा विपक्ष के लिए शोर पैदा कर सकता है, लेकिन वोटों की बारिश करने के लिए उन्हें अब भी जनता के बीच जाकर जमीनी समस्याओं का समाधान पेश करना होगा।










