सत्यकथा पर आधारित तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: प्रायश्चित में टपकता आंसू ……….!

यह कहानी नही बल्कि एक हकीकत है। फिर भी इस सच्चाई को बताने में रोचक बनाने हेतु पात्र एवं घटना स्थल के नाम परिवर्तित कर दिए गए है, यह सत्यकथा पर आधारित है। जो वास्तविक घटना से सम्बंधित है। बेशक इसका सम्बन्ध जीवित और मृत व्यक्ति से है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचना नही बल्कि समाज में एक सन्देश अपने बड़ो के सम्मान हेतु है।

तारिक आज़मी

एक बार एक दफ्तर में मेरा जाना हुआ था। दफ्तर के अधिकारी एक अच्छे दार्शनिक और हमारे मित्र थे। लगभग डेढ़ दशक पहले की बात है, जब मैं उनके दफ्तर गया था। वह सुक्तिवाक्य सप्ताह में एक बार लिखते थे और वह सोमवार से लेकर शनिवार तक उनके टेबल की शोभा ही नहीं बढाता था, बल्कि आगंतुको का ध्यान भी आकर्षित करता था। ऐसा ही एक सूक्ति वाकया लगभग डेढ़ दशक पहले मैंने उनके टेबल पर पढ़ा था जो आज भी मेरे स्मरण में है। वाक्य था ‘आपका एक पल का गुस्सा, आपके और आपके परिवार का जीवन बर्बाद कर सकता है।’

PNN24 न्यूज़ लेकर आया है एक हिला देने वाली सच्ची कहानी, जिसे लेखक तारिक आज़मी (Tariq Azmi) अपनी ने मोरबतियाँ (Morbatiyan)’ में बड़ी संवेदनशीलता से पिरोया है। यह सिर्फ़ एक सच्ची कहानी नहीं, बल्कि समाज के उस क्रूर चेहरे का आईना है, जो कामयाबी को पचा नहीं पाटा है और खुद की ज़िंदगी तबाह कर देता है।

बेशक यह सूक्ति वाक्य डेढ़ दशक पहले मैंने पढ़ा था। परन्तु जेल में एक ऐसी घटना से मैं रूबरू हुआ जो इस सूक्ति वाक्य को अक्षरशः साबित कर रहा है। मेरी सोच है कि ‘यदि आप इसके ऊपर विश्वास करते है कि कोई एक शक्ति है जो इस पूरी श्रृष्टि को चलाती है जिसे आप ईश्वर, अल्लाह अथवा किसी अन्य नाम से पुकारते है तो बेशक एक शक्ति और भी है जो आपको आपके कर्तव्यों से भटकाती है जिसको आप शैतान का नाम दे सकते है। अगर वह सृष्टि चलाने वाली वह शक्ति आपको जीवन में कामयाबी देती है तो उसको संभाल न पाने के लिए वह शैतान ही होता है जो आपके मन मस्तिष्क को भटकाता है। इसी लिए कामयाबी को अपने सर पर नशे के तौर पर नही चढ़ने देना चाहिए।

मोरबतियाँ’ उस दर्द को बयाँ करती है जब किसी व्यक्ति जो एक गंभीर अपराध करता है और उसका दोषी मान लिया जाता है, तो प्रायश्चित में उसको आंसू भी नहीं मिल पाते है, कहानी का केंद्र प्रायश्चित (Atonement) है—वो अनवरत दर्द जो सज़ा भोग रहे व्यक्ति के दिल में सुलगता है। यह लेख पाठक को उस पीड़ित आत्मा की यात्रा पर ले जाता है, जहाँ उसके हर आँसू में प्रायश्चित की गहरी छाप झलकती है।

राजन सिंह पिता उनके बचपन में ही गुज़र चुके थे। वह एक शिक्षक थे और राजन सिंह की माँ शांति सिंह भी एक शिक्षित महिला थी। शांति सिंह के मांग का सिंदूर जिस समय धुल गया था उस वक्त राजन सिंह महज़ डेढ़ साल के आयु को ही पूरा कर पाए थे। शांति सिंह के सामने पूरा जीवन पड़ा था। मगर उनके गोद का नन्हा मुन्ना राजन अब यतीम हो चूका था। शांति सिंह के पति सत्यनारायण सिंह एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे, जिनके जगह पर शांति सिंह को नौकरी मिल गई। जिसके बाद शांति सिंह एक पिता और माँ दोनों की भूमिका राजन सिंह के लिए निभाने लगी थी। घर के अन्दर एक माँ, बहु, बेटी और बेटे तथा पिता की पूरी ज़िम्मेदारी एक अकेली शांति सिंह ही निभाती रही।

यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सिर्फ़ आँसुओं हमारे प्रायश्चित को पूरा कर सकते है? जानिए, कैसे ‘मोरबतियाँ’ की ये सत्यकथा हमारी आत्मा को झकझोर कर रख देती है और क्षमा के असली अर्थ को समझाती है।

वक्त कब पंख लगा कर उड़ता चला गया इसका तो पता नही चला मगर बिन पिता के साए राजन सिंह ने सिक्षा में उपलब्धी हासिल किया और लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी में गोल्ड मैडल पाकर वकालत शुरू कर दिया। बहुत ही कम समय में राजन सिंह के नाम की तूती अदालतों की दहलीज़ पर गूंजने लगी। कामयाबी ऐसा लगने लगा कि राजन सिंह के कदमो की गुलाम बन चुकी है। जब राजन सिंह अदालत के अन्दर अपनी दलील पेश करते तो लगता को शिक्षित शेर दहाड़ रहा हो। उनके विपक्ष के अधिवक्ता अपने आधे आत्मविश्वास को इसीलिए खो देते थे कि उनके सामने राजन सिंह है।

राजन सिंह की चर्चाये सिर्फ लखनऊ ही नही बल्कि आसपास के जनपद में भी गूंजने लगी थी। कामयाबी हासिल हुई तो राजन के दोस्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। कामयाबी के साथ राजन के शौक भी बढे और ‘सूर्य अस्त, राजन मदिरा पीकर मस्त’ के तर्ज पर राजन का जीवन चलने लगा था। कालेज के समय से ही सीमा राजन को पसंद करती थी। अब जब राजन के साथ कामयाबी जुडी तो सीमा की पसंद और भी बढती चली गई। एक ही मोहल्ले में रहने के बावजूद भी सीमा राजन से मिल तो नही पाती थी मगर घर से निकलने के समय छत पर सीमा सिर्फ राजन को देखने के लिए ही इंतज़ार करती थी।

शांति सिंह भी अपनी नौकरी से सेवानिवृत हो चुकी थी और सरकार अच्छी रकम बतौर पेंशन दे रही थी। शांति सिंह ने अपनी बेटी रोशनी जो राजन से तीन साल बड़ी थी का विवाह बड़ी धूम धाम से किया था। अब राजब का भी घर बसाने के लिए शांति देवी सोचने लगी। दिमाग में उनके सीमा आई और रिश्ता लेकर वह सीमा के घर गई। राजन एक कामयाब युवक था और सीमा के घर वालो ने तत्काल ही रिश्ना कबुल कर लिया। शादी बड़ी धूम धाम से हुई और शांति सिंह ने चैन की सांस लिया कि सभी कर्तव्यों से वह छुट्टी पा चुकी है।

बेशक शांति सिंह ने यह सोचा होगा मगर कुदरत ने तो कुछ और ही मंज़ूर कर लिया था। शाति के बाद राजन सिंह की शराब ने उनको अपने अन्दर डुबो लिया और शायद राजन का पतन भी शुरू हो चूका था। दूसरी तरफ शराब के नशे ने सीमा और राजन के बीच का प्यार धीरे धीरे कम करना शुरू कर दिया था और शराब झगड़े का कारण बन रही थी। राजन अब शराब के नशे में अदालतों की चौखट पर भी जाने लगा था, जो राजन अदालत में खड़े होने पर फैसले अपने दलील से खुद की तरफ करवाता था, वक्त ने ऐसा करवट लिया कि नाकामी का दूसरा नाम राजन बन गया। मुवक्किल उससे दूर होते गए और काम न होने के कारण गरीबी करीब होती गई।

गरीबी दरवाज़े से अन्दर आई और राजन तथा सीमा की मुहब्बत खिड़की से बाहर चली गई। सीमा राजन का घर छोड़ कर अपने मायके जाकर अपने एक बेटे के साथ रहने लगी। दूसरी तरफ राजन के शराबखोरी ने शांति सिंह की चिंता ऐसे बढ़ा दिया कि उन्होंने खाट पकड़ लिया। दूसरी तरफ राजन की बहन रोशनी अपने भाई और माँ के लिए चिंतित रहती थी, मगर ससुराल में लड़की कितनी मजबूर होती है यह रोशनी से ज्यादा किसको पता होगा, क्योकि कामयाब राजन सिंह अपने जीजा संजय को भी एक बार अपने घर पर जमकर अपमानित कर चूका था और संजय ने ससुराल से अपने रिश्ते खत्म कर लिए थे।

रोशनी अपने पति के साथ थी और सिर्फ फोन पर ही माँ के हाल लेने का एक रास्ता उसके पास था। दूसरी तरफ माँ शांति की पेंशन राजन शराब में उड़ा रहा था। शांति ने बिस्तर पकड़ा और अपने शब्दों को शांत कर लिया। राजन शराब में डूबता जा रहा था। आखिर आई वह होली जिसमे रंग नहीं बल्कि खून बहा था। होली का दिन गुज़र चूका था और राजन शराब के नशे में धुत था। रात गहरी होती जा रही थी, मगर शराब के जाम खत्म नही हो रहे थे। शांति के पास पेंशन के महज़ दो हज़ार ही बचे थे और महीना अभी आधा बाकि था। राजन तभी आता है और शांति से और शराब लेने के लिए पैसे मांगने लगता है। माँ आखिर पैसे देने से मना करती है और उसके मुख से उसकी व्यथा निकल जाती है कि ‘अब हमको मुक्ति दे दो।’ इतना सुन कर नशे में धुत राजन पास पड़ी पत्थर की चक्की उठाता है और अपनी माँ के सर पर यह कहते हुवे दे मारता है कि ‘ठीक है मुक्ति ले लो’।

बिमारी से कमज़ोर हो चुकी शांति चंद सेकेण्ड भी तड़प नही सकी और इस दुनिया से कूच कर गई। राजन पास पड़े पैसे लेता है और दुबारा शराब ले आता है। रात गुज़र गई और सूबह हो गई। पड़ोसियों ने राजन के आगन में शन्ति को खून से लथपथ देखा तो रोशनी को खबर दिया। रौशनी का पति संजय अपनी सास के स्नेह में अपना पुराना अपमान भूल कर आता है तो शांति की लाश उसको मिलती है। आनन् फानन में बात जंगल में आग की तरह फ़ैल गई और मौके पर पुलिस आ गई। राजन ने रात को इतनी शराब पिया था कि पुलिस को उसे उठा कर ले जाना पड़ा। शांति की लाश को पुलिस ने पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया। राजन का नशा जब कम हुआ तो उसको रात की बाते याद आई और माँ की याद में तड़प कर रोने लगा।

पुलिस ने विधिक कार्यवाही शुरू किया और पूरा लखनऊ ही इस घटना से दहल उठा। जो राजन बतौर अधिवक्ता अदालत में दहाड़ता था आज पुलिस की पहनाई गई हथकड़ी के साथ उसी अदालत में खड़ा था। अदालत ने राजन को जेल भेज दिया। वक्त गुज़रता गया और राजन के केस में सुनवाई शुरू हुई। गवाह से लेकर सबूत तक सभी राजन के खिलाफ थे। अदालत ने राजन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और काले कोट पहनने वाला राजन अब जेल के काल कोठरी में कैदियों वाला सफ़ेद कुर्ता पैजामा पहनता है। जिस्म भले राजन का साथ है मगर मन और मस्तिष्क सभी खत्म होता जा रहा है। मानसिक रूप से कमज़ोर हो चूका राजन रोज़ दवाये खाता है।

तारिक़ आज़मी
प्रधान सम्पादक
PNN24 न्यूज़

अब राजन की आँखों में सिर्फ पश्चाताप के आंसू है। रोशनी भाई के स्नेह में रो लेती है मगर भाई के अन्दर अपने माँ के कातिल को आज भी माफ़ नही कर पाई है। 15 साल गुज़र गए मगर रोशनी ने भाई की कलाई पर राखी नही बांधी। हर सुबह अब राजन के लिए दर्द लेकर आती है और माँ की याद में प्रायश्चित का आंसू टपकता है। घटना बेशक बहुत पुरानी हो चुकी है, इस जेल के बंद कमरे में रहते हुवे वह बात तो और भी पुरानी होती जा रही है। लेकिन जब भी राजन की आंखे बंद होती है तो वह सारा दृश्य आँखों के सामने ऐसे खड़ा होता है जैसे कल की ही बात हो। राजन को अब सोने के लिए जेल के अस्पताल से मिलने वाली नींद की दवा ही नींद ला पाती है।

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