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वाराणसी – फिर आखिर पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) इस प्रकरण में क्यों रूचि रख रहे थे.

यासमीन खान “याशी”
वाराणसी. कभी कभी पुलिस की ईमानदारी उसके ऊपर भारी पड़ जाती है. कुछ ऐसा ही कल से आदमपुर थाना क्षेत्र के मछोदरी में चल रहा है. घटना कुछ इस प्रकार है कि क्षेत्रिय सभासदों और आम जन की लिखित शिकायत रहती थी कि मछोदरी पुलिस चौकी के पास कुड़ेखाने के आगे सड़क पर ही ट्रक ड्राईवर अपने वाहनों को पार्क कर देते है जिससे कूड़े फेकने वाले लोग सडको पर ही कूड़ा फेक कर चले जाते है और क्षेत्र में गन्दगी का अम्बर लगा रहता है. शिकायत का संज्ञान लेकर मौके पर जाकर स्थानीय चौकी इंचार्ज को महंगा पड़ गया.

मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों और क्षेत्रिय नागरिको के अनुसार 27 जनवरी की रात को लगभग दस बजे क्षेत्रिय चौकी इंचार्ज राजेश यादव अपने चौकी पर तैनात मात्र दो कांस्टेबलो सहित मछोदरी के कुदेखाने के पास अवैध रूप से सड़क पर खड़े ट्रैको पर कार्यवाही करने के उद्देश्य से मौके पर गए मौके पर एक ट्रक बीच सड़क पर खड़ा देख कर उसके कागजात मांगे गए. ट्रक ड्राईवर के पास कागजात नहीं था. ट्रक ड्राईवर ने अपने मोटर मालिक को एक बड़ा पत्रकार बताते हुवे कहां की उनसे बात कर ले. अब जैसा अमूमन वाहन चेकिंग के दौरान होता है वैसा ही हुवा कि चौकी इंचार्ज ने ट्रक मालिक से फ़ोन पर बात नहीं किया और कहा कि जिसको बात करनी हो वह मौके पर आये. कुछ देर बाद मौके पर दो सज्जन आये जिनमे से एक ने खुद को सुरेश उर्फ़ पप्पू सेठ कह कर अपना परिचय लखनऊ से प्रकाशित एक दैनिक अख़बार राष्ट्रीय सहारा का संवाददाता बताया और कहा कि मुझको पुलिस अधिक्षक ग्रामीण ने भेजा है. ट्रक छुडवाने के लिए. अब अधिकारी का नाम और साथ में पत्रकार की धौस दिखा रहे साहेब के साथ आये एक अन्य सज्जन ने मौके पर एक अन्य ट्रक ड्राईवर से मार पीट और गाली गलौज करने का प्रयास शुरू कर दिया. प्रत्यक्षदर्शियो के अनुसार कथित पत्रकार महोदय ने भी मौके पर जोरदार अपनी इंट्री दर्ज करवानी चाही और कहा कि मैंने कहलवाया था कि मै अगर आ गया तो बहुत बुरा हो जायेगा. उनके इस हरकतों से चौकी इंचार्ज और क्षेत्रिय नागरिक भी भड़क गए. माहोल अपने खिलाफ बनता देख कर तत्काल कथित पत्रकार महोदय ने मान मनौवल की स्थिति बनाई और बार बार पुलिस अधिक्षक ग्रामीण की सिफारिश देने लगे. अंततः चौकी इंचार्ज ने चेतावनी देते हुवे ट्रक छोड़ दिया.
घटना तो साहेब सिर्फ इतनी थी. मगर बात इसके बाद बढ़ गई जब कथित पत्रकार ने कुछ दुरी पर जाकर 100 पर फ़ोन किया और पुलिस को अपनी शिकायत नोट करवाया कि स्थानीय चौकी इंचार्ज मुझसे 500 रुपया घुस मांग रहे है. शिकायत दर्ज करवाने के बाद मौके से तुरंत ही कथित पत्रकार महोदय सरक लिए. अब 100 की गाडी आकर मौके पर इनको तलाश कर रही है मगर ये साहेब नहीं मिले. इसके बाद नाटक का पर्दा सुबह फिर से उठा जब कथित पत्रकार महोदय ने वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक वाराणसी को शिकायती प्रार्थना पत्र देकर गुहार लगाया कि मुझसे चौकी इंचार्ज ने अभद्रता की है और 500 रुपया ट्रक पीछे घुस मांगी है. वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक भी शिकायत सुन कर तत्काल कार्यवाही का निर्देश अपने अधिनस्तो को दे दिया.
मामला पत्रकारों से जुडा हुवा जानकार इसकी जानकारी स्थानीय पत्रकारों को दिया गया और इस सम्बन्ध में पत्रकार अपने स्तर से खोजबीन शुरू कर दिए. आखिर पत्रकार के साथ अभद्रता की बात सामने आ रही थी. शाम को कथित घटना स्थल पर क्षेत्र के पत्रकार इकठ्ठा होकर घटना को जानने का प्रयास क्षेत्रिय नागरिको से कर रहे थे. घटना पूरी तरह संदिग्ध दिखाई दे रही थी. तभी रूटीन चेकिंग को निकले स्थानीय थाना प्रभारी आशेष नाथ सिंह भी मौके पर आ गए. सभी पत्रकारों को एक साथ देख उन्होंने भी वहा रुकना ज़रूरी समझा और इकठ्ठा होने का कारण पूछ बैठे. कारण जानने के बाद उनके द्वारा भी विवेचना शुरू कर दिया गया.
अब बड़ा सवाल कथित पत्रकार महोदय का राष्ट्रीय सहारा का पत्रकार होने का था. मेरे द्वारा इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय सहारा के जिम्मेदारो से फ़ोन पर बात किया गया तो पता चला की इस नाम के कोई सज्जन न तो कभी थे और न ही है. अब बात यह थी कि फिर ये कथित सज्जन है कौन. कुछ देर के उपरांत एक ट्रांसपोर्टर के द्वारा अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर हमको नंबर दिया गया. जब कथित पत्रकार महोदय से एक पत्रकार के द्वारा बात कर घटना को जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बताया कि जी भाई मैं सहारा का पत्रकार था मगर अब नहीं हु अब छोड़ दिया है. इस पर पत्रकार द्वारा उनसे जब यह बताया गया कि प्रभु हमारी जानकारी के अनुसार आप कभी भी सहारा के पत्रकार नहीं थे. तो भाई साहेब फ़्लैट हो गए कहा भैया हम आकर आपसे अभी मिलते है. हम लोग भी अब उनसे मिलने की लालसा पाल बैठे थे. लगभग आधे घंटे बाद सज्जन मौके पर उपस्थित हुवे और घटना का ब्यौरा बताना शुरू किया तब तक मौके पर सम्बंधित चौकी इंचार्ज भी आ गए. उनको देख अब मान्यवर के होश फाख्ता हो चुके थे. स्थानीय थाना प्रभारी आशेष नाथ सिंह ने इस सम्बन्ध में विवेचना शुरू कर दिया और हम सभी कुछ देर मूकदर्शक बन गए क्योकि घटना पत्रकार से जुडी न होकर एक कारोबारी से जुडी थी.
यक्ष प्रश्न आखिर वाराणसी के पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) का इससे क्या सम्बन्ध है –
थाना प्रभारी द्वारा कथित पीड़ित के बताये अनुसार क्षेत्रिय उन सभी नागरिको को बुलाया गया जिनके सम्बन्ध में उक्त कथित पीड़ित बता रहे थे. मौके पर आये सभी क्षेत्रिय नागरिक उसी घटना को बता रहे थे जिसका वर्णन ऊपर किया गया है. इसके बाद सज्जन के द्वारा उनके एक मित्र ट्रांसपोर्टर का हवाला दिया गया. जो क्षेत्र का ही संभ्रांत नागरिक है, उसको भी बुलाया गया और पूछा गया तो उसने भी घटना से इंकार कर दिया. अंततः हमलोगों के साथ बैठे एक पत्रकार बोल ही पड़े कि आपका काम जब हो गया था आपसे कोई पैसा नहीं माँगा गया जैसा आप बता रहे हो तो फिर आपने शिकायत किस बात की किया है ? (गौरतलब हो कि कथित पीड़ित द्वारा बार बार हम लोगो से भी यही कहा गया है कि मुझको मेरे ट्रक ड्राईवर ने बताया था कि साहेब पैसा मांग रहे है,  मुझसे किसी ने पैसा नहीं माँगा है)
उनका जवाब सुनकर हम सब भी हैरान हो गए. मान्यवर ने बताया कि मैं तो कोई शिकायत नहीं करने वाला था बस पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) ने मुझको सुबह फ़ोन करके बुलाया था और कहा कि आप शिकायत करो. हम सिर्फ इस बात से हैरान है कि उक्त कथित पीड़ित के बताये अनुसार इस प्रकरण में पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) व्यक्तिगत रूचि रखते है. आखिर उनकी रूचि इस प्रकरण में क्यों है ? हमने जब इस सम्बन्ध में पूछा की आपका कैसे परिचय पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) से तो उनका जवाब था कि उनके एक मित्र पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) के परिचित है. लगभग एक घंटा चली बातचीत में उस युवक ने 20 बार कम से कम पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) के नाम की दुहाई दिया. एक फ़ोन पर बातचीत में जिसकी रिकॉर्डिंग भी सुरक्षित है में उसने खुल कर कहा कि मुझको पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) ने फ़ोन करके बुलाया था और शिकायत करने को कहा था.
खैर साहेब मान्यवर की शिकायत है तो थाना प्रभारी ने स्पष्ट शब्दों में कहाकि आपको जब आकर मुकदमा दर्ज करवाना हो करवा ले. उक्त प्रार्थना पत्र अभी हमको प्राप्त नहीं हुवा है. आप अन्य कोई प्रार्थना पत्र देते है तो हम अभी मुकदमा दर्ज कर उसकी प्रति आपको दे देंगे अन्यथा उक्त प्रार्थना पत्र जब भी हमारे पास आता है आप आकर मुक़दमे की कॉपी ले लीजियेगा.
मगर सवाल अजीब है. अगर कथित पीड़ित की कही बात को सत्य माना जाए तो फिर सवाल उठता है कि वाहन चेकिंग के बीच पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) को कौन सी व्यक्तिगत रूचि थी जो उन्होंने कथित पीड़ित को सुबह खुद फ़ोन करके बुलाया कि शिकायत करो. अगर आरोप लगाने वाले के आरोपों पर ध्यान दिया जाए तो उनसे अपने आरोप में कहा है कि यहाँ चौकी इंचार्ज क्षेत्र में आने वाले हर ट्रक से 500 रुपया लेते है. अब सवाल यह है कि अगर यह आरोप सही है तो इस चौकी क्षेत्र में लगभग 100 ट्रक रोज आती है यानी लगभग 50 हज़ार रोज की यहाँ वसूली होती है. अगर आरोप सही है तो बड़े कंजूस है साहेब यहाँ के. इतना कमाने के बाद भी पुलिस चौकी गिर रही है उसकी मरम्मत चौकी इंचार्ज साहेब नहीं करवा रहे है. कमाल है साहेब आरोपो का क्या है कुछ भी लगता रहता है, अब सत्य क्या है यह आरोप लगाने वाला या फिर जिसपर आरोप लग रहा है यह फिर भगवान् जाने मगर एक बात तो साहेब समझ से परे है कि इस प्रकरण में पुलिस अधिक्षक (ग्रामीण) का नाम बार बार आरोप लगाने वाला ले रहा है आखिर क्यों ?
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